हांगझाउ में दुनिया की आर्थिक समस्याओं पर चिंता व्यक्त की गई। उन समस्याओं को हल करने के लिए सम्मिलित प्रयास का संकल्प भी सभी देशों ने लिया, लेकिन कोई ठोस योजना पर सहमत होने में वे विफल रहे।

सम्मेलन में यह महसूस किया गया कि संरक्षणवाद विश्व के आर्थिक विकास का एक बहुत बड़ा रोड़ा है। नये नये प्रयोग करना और निवेश करने से ही दुनिया का विकास हो सकता है। सिर्फ वित्तीय और मौद्रिक नीतियों से विश्व का विकास नहीं होने वाला है।

इस सम्मेलन का मुख्य मुद्दा था विश्व अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य और दुनिया को वित्तीय दुर्दशा से बाहर करने के उपाय। लेकिन इस बैठक में बहुपक्षीय वार्ताओं से ज्यादा द्विपक्षीय वार्ताओं का जोर देखा गया। इसमें लोग राजनैतिक मसलों को उठाते दिखाई पड़ रहे थे। कोई राजनैतिक आतंकवाद की बात कर रहा था, तो कोई वित्तीय आतंकवाद की बात कर रहा था। चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर में अपने वर्चस्व स्थापित करने की चर्चाएं भी इस शिखर सम्मेलन के दौरान हुई।

भारत ने भी इस शिखर सम्मेलन में अपनी समस्याओं से विश्व समुदाय को आगाह किया। उसने आतंकवाद की चर्चा की। भारत ने इस मंच का इस्तेमाल आतंकवाद पर हमला करने में किया। बिना नाम लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ बयान दिए। काले धन के मसलों को भी उन्होंने उठाया। उन्होंने इसके लिए बैंको को जिम्मेदार बताया, जो काले धन रखने वालों की जानकारी अपने बिजनेस सेक्रेट के नाम पर जारी नहीं करते।

उन्होंने कहा कि समूह-20 के देशों को काले धन की समस्या पर गंभीर होना चाहिए, क्योंकि इस समस्या के काले विकासशील देशों का विकास बाधित होता है।

विश्व अर्थव्यवस्था के बेहतर स्वास्थ्य के लिए कुछ कदम उठाने में यदि यह शिखर सम्मेलन नाकाम रहा, तो इसे हम चीन की विफलता ही मानेंगे, क्योंकि यह सम्मेलन वहीं हो रहा था और लोगों के बीच मसलों पर आमराय बनाने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी उसी की थी।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन विफल इसलिए रहा, क्योंकि वह खुद अनेक प्रकार की आर्थिक समस्या से जूझ रहा है। शिखर सम्मेलन में आरोप लगे कि चीन ने उत्पादन की अपनी क्षमता का बहुत ज्यादा विकास कर लिया है, जिसके कारण विश्व अर्थव्यवस्था में असंतुलन पैदा हो गया है। इस्पात उद्योग इसका सबसे बड़ा शिकार है।

यूरोपियन संघ चीन को लेकर सबसे ज्यादा नाराज था। उसका कहना है कि चीन के कारण यूरोपियन संघ के देशों में इस्पात उद्योग मंे मंदी का दौर चल रहा है। उसके शिकार दुनिया के अन्य अनेक देश भी हो रहे हैं।

उन देशों मे भारत भी शामिल है। चीन में इस्पात की उत्पादन क्षमता बहुत ज्यादा है और वह इस क्षमता को कम भी नहीं कर सकता। ज्यादा उत्पादन के कारण वह अपने इस उत्पाद को दुनिया के अन्य देशों में डंप कर रहा है, जिसके कारण उन देशों के अपने इस्पात उद्योग प्रभावित हो रहा है। भारत भी इसका असर महसूस कर रहा है। चीन से सस्ता इस्पात मिलने के कारण लोग ज्यादा से ज्यादा आयात पर निर्भर हो रहे हैं और चीन से होने वाला इस्पात आयात तेजी से बढ़ा है। (संवाद)