जाहिर है, इस निष्कासन से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बहुत खुश नहीं होंगे, लेकिन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद उनके पास अब नहीं है और उन्हें यह कहकर चुप करा दिया गया है कि टिकट के बंटवारे में उनकी ही चलेगी। लेकिन सभी लोग जानते हैं कि टिकट बांटने का अंतिम अधिकार राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के पास ही है। अखिलेश ज्यादा से ज्यादा टिकटों के लिए सिफारिश ही कर सकते हैं। उनकी सिफारिश को मानना या नहीं मानना राष्ट्रीय अध्यक्ष की इच्छा पर निर्भर करता है।

और इस बीच अध्यक्ष के पद के रूप में मिले अधिकार का इस्तेमाल कर शिवपाल सिंह यादव अखिलेश को कमजोर करना चाहेंगे। इसकी शुरुआत भी उन्होंने कर दी है राम गोपाल यादव की बहन के बेटे को पार्टी से निकालकर।

गौरतलब हो कि पार्टी के अंदर मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश, रामगोपाल और शिवपाल सिंह सबसे ज्यादा ताकतवर नेता हैं। शिवपाल मुलायम के सगे भाई हैं, तो रामगोपाल भी रिश्ते के भाई हैं और उन्हें पार्टी के अंदर बहुत महत्व प्राप्त है। लेकिन शिवपाल और रामगोपाल में नहीं पटती। अनेक मौके पर दोनों एक दूसरे के खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं।

2012 के विधानसभा चुनाव के बाद जब मुख्यमंत्री पद के लिए शपथग्रहण होना था, तो शिवपाल नहीं चाहते थे कि अखिलेश मुख्यमंत्री बने। वे चाहते थे कि नेताजी खुद इस पद पर बैठें। उन्हें लगता था कि पार्टी के अंदर वे नेताजी के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं और उनका राजनैतिक वारिश वे ही हो सकते हैं। पर मुलायम सिंह यादव अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे और रामगोपाल इसकी जमकर पैरवी कर रहे थे।

सच कहा जाय तो विधानसभा चुनाव के पहले ही शिवपाल को पार्टी के अंदर कमजोर कर दिया गया था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वही थे, लेकिन उन्हें हटाकर अखिलेश यादव को अध्यक्ष बना दिया गया था। उसे तो उन्होंने स्वीकार कर लिया था, लेकिन जब अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने की मुहिम शुरू हुई, तो उन्होंनंे उसका विरोध करना शुरू किया और वे चाहते थे कि इस पद पर खुद मुलायम सिंह यादव ही बनें।

उन्होंने अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया और बदले में उन्हें यह आश्वासन मिला कि वे अपने मंत्रालय अपनी इच्छा के अनुसार ही चलाएंगे और उन्हें मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं है। उन्हें अनेक अच्छे अच्छे मलाईदार मंत्रालय भी मिल गए। एक अनुमान के अनुसार प्रदेश का आधा बजट शिवपाल के मंत्रालयों से ही संबंधित था।

अखिलेश मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उन्हें सरकार चलाने की पूरी आजादी कभी नहीं मिली। उन्हें मुलायम सिंह यादव का आदेश तो मानना ही पड़ता था। उसके अलावा वे शिवपाल यादव के मंत्रालयों में भी किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे। आजम खान को भी अखिलेश के अंदर काम करना पसंद नहीं था। इसलिए उन्होंने भी मुलायम को ही मुख्यमंत्री बनाने के बारे में अपनी राय दी थी। उन्हें शांत करते हुए उन्हें भी लगभग स्वायत्त मंत्री घोषित कर दिया गया।

अखिलेश को रामगोपाल यादव का पूरा समर्थन मुख्यमंत्री बनते समय मिला था। इसलिए अखिलेश उनके सामने कृतज्ञ होकर उनका आदेश मानने के लिए लगभग बाध्य थे। इसलिए व्यंग्य में यह कहा जाने लगा कि उत्तर प्रदेश में साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं। पहला मुख्यमंत्री खुद मुलायम सिंह यादव हैं, दूसरा मुख्यमंत्री शिवपाल ओर तीसरा रामगोपाल हैं। चैथे मुख्यमंत्री के रूप में आजम खान का नाम लिया जाता था और कहा जाता था कि अखिलेश यादव सिर्फ आधे मुख्यमंत्री हैं।

ताजा प्रकरण में वह जोक सही साबित हो गया है। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री का यह अधिकार है कि चाहे जिसे अपना मंत्री बनाए और मंत्रियों में अपनी इच्छा के अनुसार काम का बंटवारा करे। इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरापों का सामना करने वाले मंत्री गायत्री प्रजापति को बर्खास्त कर दिया था और अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से अनेक मंत्रालय ले लिए थे। पर उन्हें मुलायम का आदेश मानते हुए न केवल गायत्री प्रजापति को फिर से अपनी सरकार में लेना पड़ रहा है, बल्कि उन्हें अपने चाचा को अधिकांश मंत्रालय लौटाने पड़े।

विधानसभा चुनाव पर है और समाजवादी पार्टी को सरकार में होने का नुकसान मतदाताओं के बीच उठाना पड़ रहा है। वैसी स्थिति में उसके दुबारा बहुमत के साथ सत्ता में आने की संभावना कम ही है। उसकी यही कोशिश हो सकती है कि विधानसभा में उसे ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें, ताकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में छोटी छोटी पार्टियों और निर्दलीयों के समर्थन से वह फिर सरकार बना सके। इसके लिए उसे एकता बनाए रखना होगा।

लेकिन ऐसे वक्त में पार्टी के अंदर छिड़ा यह घमासान किसी को भी आश्चर्यजनक लगता है। यह आश्चर्यजनक हो सकता है, लेकिन यह अनायास नहीं है। सच तो यह है कि त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में यदि पार्टी ने जोड़ तोड़ से सरकार बनाई, तो उस गठबंधन सरकार का नेता कौन होगा, उसके लिए यह संग्राम चल रहा है। यही कारण है कि जब एक बार शिवपाल सिंह से पूछा गया कि मुख्यमंत्री कौन होगा, तो उन्होंने कहा कि अभी तो मुख्यमंत्री अखिलेश ही है और बाद में कौन होगा, इसका फैसला चुनाव के बाद होगा। पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल सिंह ने एक बार और स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी बहुमत पाएगी और बहुमत पाने के बाद अखिलेश ही मुख्यमंत्री बनेंगे। पर सवाल यह है कि यदि बहुमत नहीं आया और पार्टी बनाने की नौबत समाजवादी पार्टी की आई, तब मुख्यमंत्री कौन होगा? इसके जवाब के हल के लिए ही यह संग्राम छिड़ा हुआ है। (संवाद)