आर्थिक विकास, अनिवार्यत: शहरीकरण को बढा़वा देता है क्योंकि शहर और कस्बे व्यक्तिगत गतिविधियों के लिए बृहद आर्थिक साधन मुहैया कराते हैं । शहरी विकास में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को नागरिक सुविधायें प्रदान करना शामिल होता है । संविधान के 74वें संशोधन को देखते हुए, इसका ताल्लुक शहरी क्षेत्र की स्थानीय संस्थाओं को सशक्त बनाना है ताकि वे बेहतर नागरिक सुविधायें प्रदान करने वाली संपोषणीय लोकतांत्रिक संस्थायें बन सकें ।
शहरी विकास मंत्रालय की परिकल्पना, न्न आर्थिक रूप से जीवंत, समावेशी, कार्यकुशल और संपोषणीय नगरों का निर्माण करना है । न्न मंत्रालय का मिशन, उच्च स्तरीय शहरी अधोसंरचना का निर्माण कर शहरी नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के माध्यम से शहरों को आर्थिंक विकास के इंजन के रूप में बढा़वा देना है ।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार स्थानीय प्रशासन राज्यों का विषय है और इसके क्षेत्र में लोगों को नागरिक सुविधायें मुहैया कराने के अलावा शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना है । यद्यपि भारतीय संघीय ढांचे के अंतर्गत शहरी विकास का दायित्व मुख्य रूप से राज्य सरकारों का है, केन्द्र सरकार नियोजन की वृहद व्यवस्था का मार्गदर्शन करती है और शहरी अधोसंरचना के उन्नयन के लिये वित्तीय संसाधन प्रदान करती है । मंत्रालय अपने कार्यक्रमों और योजनाओं के जरिये इन समस्याओं को हल करने के प्रयास के साथ-साथ स्थिति में सुधार के लिए राज्यों को सशर्त आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है ।
मिशन मोड पद्धति
मलिन और तंग बस्तियों में शोचनीय स्थिति में रहने वाले लोगों सहित अन्य शहरी लोगों को बेहतर अधोसंरचनात्मक सुविधायें प्रदान करने की शहरों और कस्बों की चिर प्रतीक्षित मांगों को पूरा करने के लिए 3 दिसम्बर, 2005 को जेएनएमयूआरएम की शुरूआत की गई । चुने हुए 63 शहरों में शहरी अधोसंरचना के विकास हेतु राज्य सरकारों को सुधारों से जुड़ी केन्द्रीय सहायता प्रदान करने के लिये मिशन की पद्धति वाला दृष्टिकोण अपनाया गया । इसमें चालीस लाख से अधिक जनसंख्या वाले 7 शहर, 10 लाख से ऊपर किन्तु 40 लाख से नीचे की जनसंख्या वाले 28 शहर और राज्यों की राजधानियों, धार्मिक, ऐतिहासिक महत्व के तथा पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण जैसे 28 चुनिंदा शहर शामिल हैं । वर्ष 2009 में तिरूपति और पोरबंदर - दो और शहरों को मिशन मोड वाले शहरों में शामिल कर लिया गया है । इन्हें मिलाकर मिशन मोड वाले कुल शहरों की संख्या 65 हो गई है ।
जेएनएनयूआरएम का मिशन वक्तव्य - बेहतर शहरी अधोसंरचनासेवा प्रदान व्यवस्था, सामुदायिक भागीदारी और नागरिकों के प्रति शहरी स्थानीय निकायों की जवाबदेही पर जोर देते हुए चिह्नित शहरों का सुधार प्रेरित, त्वरित और नियोजित विकास करना है ।
मिशन में दो उप-मिशन शामिल हैं । उप-मिशन एक शहरी अधोसंरचना और अभिशासन (यूआईजी) के लिये और उप-मिशन दो - शहरी गरीबों के लिये बुनियादी सुविधायें (वीएसयूपी) प्रदान करने के लिये । यूआईजी का दायित्व मंत्रालय के पास है, जबकि बीएसयूपी का दायित्व आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के पास है । मिशन का कार्यकाल (2005-2006 से) 7 वर्ष का है । यूआईजी घटक का जोर मुख्य रूप से जलापूर्ति, स्वच्छता, जलमल निकासी, ठोस कचरा प्रबंधन, सड़क, शहरी परिवहन और शहरों के पुराने घने इलाकों के पुनर्विकास से जुड़ी बुनियादी परियोजनाओं पर है, ताकि उनमें बेहतर बुनियादी सुविधायें मुहैया करायी जा सकें और औद्योगिकव्यावसायिक प्रतिष्ठानों को माकूल क्षेत्रों में ले जाया जा सके ।
जेएनएनयूआरएम के तहत सहायता की शर्तें इस प्रकार हैं -
· शहरों में निर्वाचित संस्थायें होनी चाहिए ।
· राज्य सरकारों और शहरी स्थानीय संस्थाओं को सुधारों को अंजाम देने का संकल्प दर्शाने वाले समझौता ज्ञापनों (एमओयू) का निष्पादन करना होगा ।
· सभी अनिवार्य और ऐच्छिक सुधार मिशन की अवधि में ही पूरे करने होंगे ।
यूआईजी के अंतर्गत केन्द्रीय स्वीकृति और निगरानी समिति (सीएसएमसी) ने 58038.18 करोड़ रुपये की 515 परियोजनाओं को मंजूरी दी है । सीएसएमसी, परियोजनाओं की मंजूरी भी देती है और कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा भी करती है । वर्ष 2009 के दौरान, शहरी अधोसंरचना और अभिशासन हेतु अतरिक्त केन्द्रीय सहायता (एसीए) का 7 वर्षीय आवंटन 25,500 करोड़ रुपये से बढा़कर 31,500 करोड़ रुपये कर दिया गया है । वर्ष 2009-10 के लिये यूआईजी का आबंटन 5960.13 करोड़ रुपये है, जिसके विरुद्ध 31.12.2009 तक 2857.27 करोड़ रुपये एसीए के तहत जारी किये जा चुके थे ।
प्रोत्साहन पैकेज
इसके अतिरिक्त, अर्थव्यवस्था के दूसरे प्रोत्साहन पैकेज के एक अंग के रूप में मिशन शहरों में चरणबद्ध कार्यक्रम के तहत शहरी परिवहन के लिये बसें खरीदने के लिये जेएनएनयूआरएम के तहत अनुमति दी गई है । अब तक 61 मिशन शहरों के लिये 4723.94 करोड़ रुपये की लागत से 15260 बसों की खरीद की मंजूरी दी जा चुकी है।
वर्ष 2008-09 के दौरान, छोटे और मझौले शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिये 7 वर्षीय आवंटन का घटक शुरू के 6400 करोड़ रुपये से बढा़कर 11400 करोड़ रुपये कर दिया गया ताकि केन्द्र उन लम्बित परियोजनाओं के बारे में विचार कर सके जिनके बारे में राज्य सरकारों ने केन्द्र सरकार से सिफारिश की थी।
दिसम्बर, 2005 में, मिशन के शुरू होने के बाद से, देशभर के शहरी क्षेत्रों में सुधार कार्यक्रमों में तेजी आई है और उनमें उल्लेखनीय प्रगति हुई है । अब तक, राज्य और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलवी) के स्तर पर कुल मिलाकर जो प्रगति हुई है, वह चौथे वर्ष तक संकल्पित सुधारों का 50 प्रतिशत से अधिक है । महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में अच्छी प्रगति हुई है । कुछ अन्य उपलब्धियां भी हासिल हुई हैं । तीस शहर दोहरी प्रविष्टि उपार्जन आधारित लेखा प्रणाली (डबल एन्ट्री अक्रुएल बेस्ड एकाउंटिंग सिस्टम) की ओर बढ च़ुके हैं, 16 शहरों ने संपदाकर संग्रह में 85 प्रतिशत उपलब्धि प्राप्त की है, 46 शहरों में गरीबों को सेवायें प्रदान करने के लिये आंतिरक आबंटन निर्धारित किया है और 20 राज्यों ने जिला योजना समितियां गठित करने के लिए कदम उठाए हैं । विशाखापट्नम, नासिक, पुणे, मुम्बई, चेन्नई और मदुरई में जलापूर्ति की लागत की 100 प्रतिशत वसूली हो चुकी है । गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ, ओडिशा, राजस्थान, झारखंड, सिक्किम, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और पुडुचेरी में मुद्रांक शुल्क घटा कर 5 प्रतिशत कर दिया गया है । 11 राज्यों से सामुदायिक भागीदारी कानून बनाया गया है, जिससे विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी में इजाफा हुआ हे । इसके अलावा, 17 राज्यों में सार्वजनिक प्रकटन कानून (पब्लिक डिस्क्लोज़र लॉ) भी बनाया गया है । (पीआईबी फीचर)
भारत में संपोषणीय नगरों का निर्माण
तसनीम एफ खान - 2010-02-11 11:56
जनगणना, 2001 में लगाए गए अनुमान के अनुसार भारत की एक अरब 2 करोड़ 80 लाख की जनसंख्या में से करीब 28 करोड़ 50 लाख लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जो कि कुल जनसंख्या का 27.82 प्रतिशत है । इसके अतिरिक्त, भारत के महारजिस्ट्रार ने वर्ष 2006 में अनुमान लगाया था कि 2011 में अगली जनगणना होने तक शहरी जनसंख्या में करीब 7 करोड़ 20 लाख की और वृद्धि हो जाएगी और अगले 25 वर्षों में देश की 67 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहने लगेगी ।