मुख्यमंत्री फडनविस उस अभूतपूर्व शांति वाले आंदोलन का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ ओबीसी, मुस्लिम और दलितों के बीच भी तनाव बन रहे हैं।
एक नाबालिग मराठा लड़की के साथ बलात्कार और उसकी हत्या ने इस आंदोलन का बीजारोपण किया। आरोप है कि उस लड़की के साथ बलात्कार तीन दलितों ने किया। वह अहमदनगर जिले की घटना थी। उसके बाद मराठा लगातार आंदोलित हो रहे हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि उस आंदोलन का कोई नेता नहीं हैं। उसमें कोई राजनेता भी शामिल नहीं हैं। शरद पवार और अशोक चैहान जैसे मराठा नेताओं ने उस आंदोलन का नैतिक समर्थन किया है।
मराठाओं की तीन मांगें हैं। पहली मांग आरक्षण पाना है। दूसरी मांग अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून को समाप्त करना अथवा बदलाव करना है। उनकी तीसरी मांग मराठा लड़की के बलात्कार के आरोपियो को जल्द से जल्द सजा देने की है।
अनुसूचित जाति/ंजनजाति (अपराध निरोधक) कानून के तहत दलितों की भावनाओं का अपमान करने वाले को कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है। इस मुकदमे के पंजीकरण के साथ ही जेल हो जाती है। यदि कोई दलित यह कह दे कि उसकी जाति का नाम लेकर उसे गाली दी गई है, तो उस पर ही मुकदमा और गिरफ्तारी हो जाती है। इस कानून का भारी दुरुपयोग हो रहा है। मराठों का ऐसा दाव है।
मराठों का पहला मूक मोर्चा 10 अगस्त को औरंगाबाद में हुआ। उस मोर्चे को जबर्दस्त सफलता मिली। उस सफलता की उम्मीद शायद किसी को भी नहीं थी। उसके बाद से 40 मोर्चे निकल चुके हैं। उसमंे लड़कियां और महिलाएं तख्ती लेकर निकलती हैं, जिसमें लिखा होता है कि अहमदनगर जिले की उस पीड़ित लड़की के दोषियों को सजा मिले। मोर्चे में करीब 30 फीसदी महिलाओं की भागीदारी होती है। राजनीतिज्ञ अभी तक उन मोर्चो से दूरी बनाए हुए हैं, ताकि उसके विफल होने का जिम्मा उनके ऊपर न आ जाए।
मराठा नाराज क्यों हैं? आरक्षण की उनकी मांग तो बहुत पुरानी है और वे 1980 के दशक से ही इसकी मांग कर रहे हैं। 2009 के चुनाव के पहले शरद पवार ने इसका समर्थन किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले केन्द्र की यूपीए सरकार ने मराठों को आरक्षण भी दे दिया था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। उस आदेश में मराठों को 16 फीसदी का आरक्षण दिया गया था।
फडनसि सरकार अभी सांसत में पड़ी हुई है। मराठों के अपने दावों के अनुसार प्रदेश में उनकी आबादी 34 फीसदी है, लेकिन ओबीसे के अनेक नेताओं का मानना है कि उनकी आबादी 10 फीसदी से ज्यादा नहीं है। आबादी जो भी हो, अबतक के 18 मुख्यमंत्रियो मे 13 मराठा ही हुए हैं। इस समय मुख्यमंत्री एक गैरमराठा है।
महाराष्ट्र में मराठों का क्रीमीलेयर बहुत ही शक्तिसंपन्न है। जमीनों पर तो उनका कब्जा है ही, व्यापार में भी वे बहुत आगे हैं। उनके पास अधिकांश चीनी मिले हैं। निजी शैक्ष्कि संस्थाओ पर भी उनका ही एकाधिकार है। सहकारी समितियां भी उनके ही कब्जे में हैं। इस तरह वे महाराष्ट्र के सबसे संपन्न समुदाय हैं और किसी भी रूप में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नहीं है।
लेकिन उनका दर्द यह है कि जो उनसे बहुत पीछे थे, अब उनकी बराबरी पर आ रहे हैं और ऐसा आरक्षण के कारण हो रहा है। उन्हें लगता है कि यदि उन्हें आरक्षण मिल गया, तो समाज में वे अपनी बढ़त फिर से स्थापित कर लेंगे।
भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि मराठों की आरक्षण की मांग नहीं मानी जा सकती, जबकि शिवसेना उसका समर्थन कर रही है। उसके कारण गठबंधन पर दबाव पड़ रहा है। (संवाद)
बहुआयामी है मराठा आंदोलन
भाजपा-शिवसेना गठंबधन पर इससे पड़ रहा है दबाव
कल्याणी शंकर - 2016-09-30 11:09
आरक्षण पाने के लिए आंदोलनों का दौर जारी है। पहले गुजरात के पाटिदार आरक्षण की मांग कर रहे थे। उसके बाद गुजरात के पाटीदारों की बारी थी। फिर आंध्र प्रदेश के कापू आरक्ष पाने के लिए आंदोलित हो गए। अब महाराष्ट्र के मराठों की बारी है। अभी तक वे शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन उन्होने कह रखा है कि वे अपना आंदोलन तेज कर देंगे।