हमारी पत्रकारिता का स्तर बहुत गिर गया है। पत्रकार सही रिपोर्टिंग तक नहीं कर पाते हैं। पटना हाई कोर्ट की एक खबर को भी सही तरीके से नहीं बताया और दिखाया गया और देश दुनिया में यही बात फैली कि हाई कोर्ट ने शराबबंदी पर ही रोक लगा दी है, जबकि एक पुराने कानून को कोर्ट ने अवैध घोषित किया था। मीडिया यह संदेश दे रहा था कि पिछले महीने विशेष सत्र बुलाकर नीतीश सरकार ने जो नया कानून बनाया था, उसे अवैध घोषित किया गया, जबकि बाद में पता चला कि नये कानून को तो कोर्ट ने अपने फैसले में छुआ ही नहीं था, बल्कि एक पुराने कानून को गलत घोषित कर दिया था।
इसलिए शराबबंदी के कथित खिलाफ उस फैसले पर खुश होने वाले लोगों की खुशी क्षणिक साबित हुई और नीतीश कुमार ने कह दिया कि पुरानी अधिसूचना खारिज हुई है, जो अप्रैल महीने में जारी की गई थी। लेकिन उसके बाद सितंबर महीने में जो मद्यनिषेध कानून बना है, वह अपनी जगह पर बरकरार है। वह कानून बिहार की दोनो सदनों से पास हुआ था और राज्यपाल ने उस पर दस्तखत भी कर दिया था। राज्यपाल के दस्तखत के बाद वह कानून पूरी तरह अस्तित्व में आ गया था। उस कानून को 2 अक्टूबर से लागू करने का मंत्रिमंडल ने सितंबर महीने में ही निर्णय कर लिया था। उस निर्णय पर किसी तरह की अदालती रोक नहीं है। लिहाजा नीतीश सरकार ने उसे दो अक्टूबर से लागू भी कर दिया।
इसलिए जिस शराबबंदी को बंद करने की बात की जा रही थी, वह अभी भी जारी है। सच तो यह है कि जिस कानून को हाई कोर्ट ने खारिज किया है, उससे भी कड़ा कानून आज अमल में है। शराब बंदी का विरोध भारी पैमाने पर हो रहा है। शराब के कारोबार से जुड़े लोगों ने ही इस मसले को कोर्ट में चुनौती दी थी। शराब के धंधेबाजों से प्रभावित लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं और खासकर अभिजात्य समुदाय का एक बड़ा वर्ग इसके खिलाफ है, जो शराब पीने का अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। मीडिया के लोग भी ज्यादातर शराबबंदी के खिलाफ हैं। यही कारण है कि नीतीश सरकार को इस मसले पर जबर्दस्त दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
जिस नये कानून के तहत 2 अक्टूबर से मद्यनिषेध अभी लागू हुआ है, उस कानून को भी अदालत में घसीटा जाएगा और शराब के व्यापारी और प्रतिबद्ध उपयोगिता उसे एक बार फिर चुनौती देंगे। पता नहीं, यह कानून अदालत की कसौटी पर खोटा साबित होता है या खरा उतरता है, लेकिन इस बात तो तय है कि नीतीश कुमार अपने इस कदक को वापस नहीं लेने वाले हैं और जो भी संविधानसम्मत कानून होगा, उसे वे बनवा ही लेंगे।
पर सवाल उठता है कि नीतीश कुमार ने शराबबंदी को आखिर अपनी प्रतिष्ठा का सवाल क्यों बना रखा है? लोग सवाल खड़े कर रहे हैं कि इसके द्वारा वे कल्याणकारी कामों के लिए राजस्व एकत्र करते थे, पर एकाएक उन्होंने राजस्व एकत्र करने वाली अपनी इस मुर्गी की गर्दन को क्यों उमेठ रहे हैं?
सवाल का एक जवाब तो खुद सवाल करने वाले ही दे रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री बनना है और इसके लिए उन्होंने शराबबंदी के द्वारा अपनी ब्रांडिंग की है। इससे वाहियात जवाब और कुछ नहीं हो सकता। सच तो यह है कि इसके कारण नीतीश ने आभिजात्य वर्ग के शराबप्रेमियों से उन्होंने टकराव मोल ले लिया है और वे उनकी छवि खराब करने पर तुले हुए हैं। इसके कारण मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग नीतीश विरोधी हो गया है। उसके विरोधी होने का एक कारण तो शराब माफिया का उनपर प्रभाव हो सकता है और दूसरा कारण उस वर्ग का खुद शराबप्रेमी होना भी है। आखिर शराब न पीने का दुख तो उन्हें भी सालता होगा।
दरअसल नीतीश द्वारा शराबबंदी का असली कारण चुनाव के पहले बिहार की महिलाओं से किया गया उनका वादा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सत्ता में एक बार फिर आने पर वे शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देंगे। उनकी जीत के पीछे का एक बड़ा कारण उनका किया गया वह वायदा भी था। बिहार चुनाव में महिलाओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा वोट महिलाओं को पड़े। नीतीश कुमार द्वारा स्थानीय निकायों के चुनावों में 50 फीसदी सीटें महिलाओं को आरक्षित कर दिए जाने के कारण वहां महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ है और सशक्तिकरण के साथ साथ ही महिलाओ ंपर अत्याचार भी बढ़ गए हैं, क्योंकि अनेक पुरुष महिलाओं को सशक्त देखकर उन्हे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। शराब उन पुरुषों को और बहशी बना देती है, जिसकी शिकार महिलाएं हो जाती हैं।
शराबबंदी के बाद बिहार में महिलाओं पर होने वाले घरेलू अत्याचार की घटनाएं घटी हैं। अन्य अनेक प्रकार के अपराध भी कम हुए हैं। एक शोध के अनुसार बिहार में अपराध 27 फीसदी कम हो गए हैं। जाहिर है, अपराध का संबंध शराब से है और नीतीश कुमार महिला सशक्तिकरण की गति को तेज करने, अपराध पर लगाम लगाने और अनेक प्रकार की सामाजिक बुराइयों से बिहार को छुटकारा दिलाने के लिए शराबबंदी पर जोर दे रहे हैं। वे राजनीति में हैं और यदि कुछ बेहतर कर रहे हैं, तो अपनी राजनीति में उसका लाभ लेना भी चाहेंगे। इसमे क्या गलत है? (संवाद)
बिहार में शराबबंदीः आखिर क्यों इतने व्यग्र हैं नीतीश कुमार
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-10-03 17:47
पटना हाई कोर्ट ने नीतीश कुमार सरकार द्वारा अप्रैल में जारी की एक गई एक अधिसूचना को अवैध करार दिया। उसी अधिसूचना के तहत शराबबंदी लागू की गई थी और उच्च न्यायालय के आदेश आने तक उसी कानून के तहत हजारों लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। नीतीश कुमार के लिए वह आदेश एक बड़ा झटका था। संयोग से उसी दिन शहादबुद्दीन की जमानत को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे जेल भिजवा दिया। शहाबुद्दीन को मिले जेल के लिए नीतीश कुमार उस रोज अपनी पीठ थपथपाते और सबसे बड़ी बात कि वे प्रदेश भर के अपराधियों को कड़ी चेतावनी देतेए, लेकिन उसी दिन शराबबंदी को लेकर पटना हाई कोर्ट के उस आदेश ने शहाबुद्दीन की फिर गिरफ्तारी की खबर को कमजोर कर दिया।