और रक्षामंत्री पर्रिकर भी अपने पद की मर्यादा को भूलकर अभिनन्दन समारोहो मे शिरकत कर रहे हैं और गर्व के साथ सम्मान स्वीकार कर रहे हैं, मानो सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय सेना के जवानों ने नहीं बल्कि खुद रक्षामंत्री पर्रिकर ने किए हों।

इस सर्जिकल स्ट्राइक से देश को लोग खुश हैं। वे यही चाहते हैं कि जो हमारे देश में गड़बड़ी फैला रहे हैं, उनके खिलाफ सख्ती की जाय और उनके ठिकाने को समाप्त किया जाय, भले ही वह ठिकाना हमारे किसी पड़ोसी देश में क्यों न हो। मोदी सरकार ने ऐसा किया भी है और इसलिए देश की जनता खुश है। हालांकि यह भी सच है कि इससे देश में आतंकवाद के खतरे समाप्त नहीं हुए हैं। और सच यह भी है कि लोग चाहेंगे कि जब भी भारत पर आतंकी हमला हो, तो भारत कुछ ऐसी कार्रवाई करे, जिससे आतंकवादियों और उनके आका को यह लगे कि भारत के खिलाफ कार्रवाई कर वे अपने ठिकानों में चैन की नींद नहीं सो सकते।

अब सवाल उठता है कि आतंक का खतरा जब अभी भी बरकरार है और आने वाले दिनों में भी उसी तरह की सर्जिकल स्ट्राइक की उम्मीद हमारे देश के लोग करेंगे, तो फिर किसी विजेता की तरह रक्षामंत्री पर्रिकर अपना अभिनंदन क्यों करवा रहे हैं? सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला केन्द्र सरकार का फैसला था न कि रक्षा मंत्रालय और रक्षामंत्री का निजी फैसला, फिर उसका निजी श्रेय लेने पर पर्रिकर क्यों तुले हुए हैं? प्रधानमंत्री ने सर्जिकल स्ट्राइक पर अपनी पार्टी के लोगों से उन्माद से बचने की अपील की है, फिर अभिनंदन समारोहों द्वारा उन्माद बढ़ाने की कोशिश क्यों की जा रही है? सबसे शर्मनाक बात यह है कि यह कोशिश प्रधानमंत्री के मना करने के बावजूद की जा रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ने भी सर्जिकल स्ट्राइक के लिए प्रशंसा की है। पाकिस्तान यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि उसके इलाके में घुसकर भारतीय सेना ने किसी तरह की कार्रवाई की है। पाकिस्तान यह मानेगा भी नहीं, क्योंकि वह आधिकारिक रूप से यह स्वीकार नहीं करता है कि उसके इलाके में भारत विरोधी आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया जाता है या वहां से घुसपैठ कराई जाती है। उसके इलाके में आतंकवादियों के कैंप हैं, उसे आधिकारिक रूप से पाकिस्तान स्वीकार नहीं करता, इसलिए उन आतंकवादी कैंपों पर किसी भारतीय हमले को भी वह स्वीकार नहीं करेगा।

लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह की हताश प्रतिक्रिया पाकिस्तान व्यक्त कर रहा है, उससे जाहिर है कि वह भारतीय दावे को सही मान रहा है। वह अपनी संसद का विशेष सत्र बुला चुका है। सेनाध्यक्ष और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मतभेद की खबरें आ रही हैं। हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना भारत से बदला लेने की कसमें खा रहे हैं। पाकिस्तान के रक्षामंत्री परमाणु हमले का डर दिखा रहे हैं। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ आतंकी हाफिज सईद की जुबान बोल रहे हैं। इस सबसे पता चलता है कि पाकिस्तान उस सर्जिकल स्ट्राइक से बुरी तरह आहत है।

पर यह तो सच है कि पाकिस्तान उस हमले से ही इनकार कर रहा है और वह उसे साबित करने की कोशिश भी कर रहा है। उसी कोशिश में उसने विदेशी मीडिया का दौरा उन क्षेत्रों में करवाया, जहां भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक की बात की जा रही थी। इसकी पृष्ठभूमि में यदि केजरीवाल ने सबूत जारी करने को कहा, तो भारतीय जनता पार्टी के लोगों की प्रतिक्रिया बहुत ही हिंसक दिखाई पड़ी। केजरीवाल ने मांग नहीं की थी, बल्कि एक सुझाव दिया था कि पाकिस्तान के झूठ को एक्सपोज करने के लिए भारत को सबूत दिखा देने चाहिए। पाकिस्तान के झूठ का भारत ने अनेक बार पर्दाफाश किया है और यदि एक बार और कर दिया जा, तो इसमे कुछ भी बुरा नहीं है।

केन्द्र सरकार सबूत दे या नहीं दे, यह पूरी तरह उस पर छोड़ दिया जाना चाहिए। उसे देश ही नहीं विदेशों के सामने भी अपने को एक जिम्मेदार सरकार के रूप में पेश करना पड़ता है। इसलिए उसे निर्णय लेने की छूट दी जानी चाहिए, लेकिन किसी तरह का सुझाव देने या किसी तरह की मांग रख देने से इस तरह का बवाल नहीं खड़ा किया जाना चाहिए, जिस तरह का बवाल भारतीय जनता पार्टी केजरीवाल के उस सुझाव के बाद कर रही है।

वैसे अब मीडिया ने उसके सबूत भी जुटाने शुरू कर दिए हैं। पाकिस्तान को इस मामले में झूठ साबित करने के लिए वे प्रमाण काफी हैं और सरकार को अब किसी प्रकार की सबूत देने की जरूरत नहीं है। वैसे सेना ने जब खुद कहा कि उसने हमला किया है, तो फिर हम अपनी सेना की ही बात मानेंगे, न कि पाकिस्तान की। इसलिए केजरीवाल के सुझााव को केन्द्र सरकार द्वारा सीधे शब्दों में दरकिनार भी किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए उनके खिलाफ प्रदर्शन करना और देशद्रोह का मुकदमा करना किसी भी तौर पर उचित नहीं माना जा सकता। लोकतांत्रिक देश में इस तरह की मांग करना गलत नहीं हैं। और गलत को गलत साबित करने का भी एक लोकतांत्रिक तरीका होता है, पर यहां तो भीड़ निर्णय करने का अधिकार ले रही है। भीड़ का निर्णय कैसा होता है, हम उसे जानते हैं। हमें अपने लोकतंत्र को भीड़तंत्र से बचाना होगा। (संवाद)