उस समस्या को राज्यपाल विद्यासागर राव ने हल कर दिया है। उन्होंने जयललिता के सारे मंत्रालय वित्तमंत्री ओ पनीरसेल्वम को सौंप दिए हैं। यह भी अधिसूचना जारी कर दी है कि जयललिता के अपना कामकाज संभालने तक पनीरसेल्वम ही कैबिनेट की अध्यक्षता करेंगे। पनीरसेल्वम जयललिता के विश्वासपात्र रहे हैं। जब दो मौकों पर जयललिता को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा, तो उन्होंने पनीरसेल्वम को ही मुख्यमंत्री बनाया था।
जयललिता के अस्पताल में रहने पर तरह तरह की अफवाह फैल रही थी। अस्पताल नियमित रूप से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी नहीं पेश कर रहा है और उनकी बीमारी के बारे में भी बहुत साफ साफ नहीं बता रहा है। इसके कारण तरह तरह के संशय लोगों के दिमाग में फैल रहे हैं। और लोग चाहते हैं कि स्थिति स्पष्ट हो जानी चाहिए कि उनकी अनुपस्थिति में उनका कार्यभार कौन संभालेगा। इस सवाल को अब हल कर दिया गया है। यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि समस्या कुछ हद तक हल हो गई है।
लेकिन जयललिता से संबंधित इस वाकये ने एक और सवाल खड़ा किया है ओर वह यह है कि क्या क्षेत्रीय नेताओं को अब अपनी अपनी पार्टियों में दूसरे और तीसरे नबर की स्थिति स्पष्ट करके नही रखनी चाहिए? दूसरे या तीसरे नंबर ही नहीं बल्कि पार्टियों मे नेता की वरिष्ठता की श्रृंखला भी तय किए जाने की जरूरत है।
आज देश में अनेक क्षेत्रीय पार्टियो का अस्तित्व है और उनमें कुछ प्रदेशों में सत्ता में भी हैं। लेकिन कुछ पार्टियों मे कोई नंबर दो का नेता ही नहीं है। जैसे ओडिसा में नवीन पटनायक मुख्यमंत्री हैं और वहां किसी को नहीं पता कि दूसरे नंबर का नेता उस पार्टी मे कौन है और सरकार में दूसरे स्थान पर कौन है।
वही हाल पश्चिम बंगाल का है, जहां ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं। उनकी तृणमूल पार्टी में उनके बाद कौन है- इसके बारे में कोई नहीं जानता। यही हाल मायावती की है। वे सरकार में नहीं है, लेकिन उनके सरकार में आने की संभावना बनी रहती है। बिहार के नीतीश कुमार की पार्टी में भी कोई नंबर दो नहीं है। अब तो वे पार्टी का अध्यक्ष भी बन गए हैं और मुख्यमंत्री तो पहले से ही हैं। लेकिन उनके बाद दूसरे नंबर का नेता कौन है, यह कोई नहीं जानता। आंध्र प्रदेश में चन्द्रबाबू नायडू के साथ भी यही सच है।
ये क्षेत्रीय दल पूरी तरह से एक नेता पर निर्भर हैं और उन नेताओ ने दूसरे और तीसरे नंबर की बात तो दूर, वहां यह भी नहीं कहा जा सकता कि दसवें नंबर पर कौन है। सच कहा जाय तो एक से दसवें नंबर तक एक ही नेता रहता है।
तमिलनाडु के जयलिलता वाकये से सभी क्षेत्रीय नेताओं को सीख लेनी चाहिए और अपनी पार्टी मे नेताओ की रैंकिंग कर देनी चाहिए, ताकि वैसी स्थिति पैदा नहीं हो, जैसी तमिलनाडु में हुई। (संवाद)
जयललिता की लंबी अनुपस्थिति के सबक
क्षेत्रीय दलों को नेतृत्व की श्रृंखला तैयार रखनी चाहिए
कल्याणी शंकर - 2016-10-14 14:21
तमिलनाडु की समस्या कुछ हद तक हल हो गई है। मुख्यमंत्री जयललिता के लंबे समय से अस्पताल मे रहने और आने वाले दिनो में भी अस्पताल में उनके रहने की संभावना ने राजनैतिक समस्या पैदा कर दी थी। सरकार नेतृत्व विहीन हो गई थी, क्योंकि प्रदेश में कोई उपमुख्यमंत्री नहीं है, जो मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में कार्यवाहक मुख्यमंत्री की भूमिका निभा पाता। जयललिता ने अपने मंत्रिमंडल में किसी को नंबर दो का स्थान भी नहीं दे रखा है, जो उनकी अनुपस्थिति में कैबिनेट की बैठक का नेतृत्व करे। उन्होने अपनी पार्टी में भी अपना नंबर दो किसी को नहीं बनाया है। यही कारण है कि उनके लगातार अस्पताल में रहने के कारण तरह तरह की आशंकाएं पैदा हो रही थीं और अंतरिम व्यवस्था की मांग तेज हो रही थी।