सीपीआई ने भी जयराजन के मसले पर कड़ा रुख अपना रखा था। उसके कारण सीपीएम को बीच का रास्ता अपनाने या किसी तरह के समझौते पर पहुंचने का विकल्प नहीं रह गया था।

इस निर्णय ने दो तरह से काम किया है। सबसे पहले तो उसने विपक्षी यूडीएफ के एक मुद्दे को छीन लिया है। इसे मुद्दा बनाकर विपक्ष सरकार को परेशान करने की कोशिश कर रही थी। इस निर्णय ने दूसरा काम यह किया है कि इससे सत्तारूढ़े मोर्चे के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के पास कड़ा संदेश गया है कि किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार स्वीकार नहीं किया जाएगा।

फिलहाल तो एक समस्या का हल निकल गया है, लेकिन इतना काफी नहीं है। उसे अभी बहुत कुछ करना होगा और वह भी बहुत तेजी से। यदि विलंब हुआ तो विपक्षी पार्टियों को बहुत जल्द ही मौका मिल जाएगा और वे एक बार फिर सरकार के खिलाफ हमलावर हो जाएंगी।

सीपीएम और उसके नेतृत्व वाले मोर्चे के लिए चिंता का एक कारण तो यही है कि जयराजन वाली घटना घट गई। पार्टी सत्ता में यह कहते हुए आई थी कि वह एक भ्रष्टाचार मुक्त शासन देगी, लेकिन वह अपने वायदे को निभाने में विफल रही और जयराजन कांड हो गया।

यह सच है कि जयराजन के खिलाफ तेज कार्रवाई से पार्टी बदनाम होने से बच गई और उसने साबित कर दिया कि उसकी सरकार पिछली सरकार की तरह नहीं है कि मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपो के बावजूद लंबे बरसे तक उसे नहीं हटाया जाता।

पर सीपीएम को यहीं नहीं रुकना चाहिए और मंत्री के इस्तीफे के लिए अपनी पीठ थपथपाते रहने की जरूरत भी नहीं है। उसे इसकी चिंता भी करनी चाहिए कि जयराजन अभी भी अपने रिश्तेदारों को अनेक बड़े पदों पर की गई नियुक्तियों को सही ठहरा रहे हैं।

जयराजन कह रहे हैं कि वे एक माफिया की साजिश के शिकार हो गए हैं। उनका दावा है कि वे उस माफिया के हितों के खिलाफ काम कर रहे थे। इसलिए उन्होंने साजिश करके उन्हें हटा दिया, लेकिन उनके इस दावे में दम नहीं है।

सीपीएम की केरल ईकाइ्र के सचिव के बालाकृष्णन और मुख्यमंत्री पी विजयन ने कहा है कि जयराजन ने यह अहसास करते हुए इस्तीफा दे दिया कि उन्होंने नियुक्तियों मे गड़बड़ी कर दी थी।
इसलिए जयराजन को सफाई देने से रोकना चाहिए, अन्यथा संदेश यह जाएगा कि उन्हें इसलिए हटाया गया, क्योंकि उनके हटाने के अलावा एलडीएफ सरकार के पास कोई अन्य विकल्प ही नहीं रह गया था। बयानबाजी कर जयराजन यह भी बता रहे हैं कि वे पार्टी द्वारा दिए गए कारणो से सहमत नहीं हैं। (संवाद)