इसकी कोई उम्मीद भी नहीं दिखाई दे रही है कि दोनों भाई में से कोई भी महाराष्ट्र की सीमा को पार कर किसी अन्य प्रदेश में प्रवेश पा सकेंगे। महाराष्ट्र के अंदर भी अपना वजूद बनाए रखने के लिए दोनों भाइयों को किसी न किसी विभाजनकारी मुद्दे से चिपका रहना पड़ता है।

जब उनके पास कोई मुद्दा नहीं रह जाता, तो दोनों भाई पृष्ठभूमि में खिसक जाते हैं और फिर इंतजार करते है किसी मुद्दे के उभरने का। जैसे ही उनको कोई मुद्दा मिलता है, वे फिर एकाएक सक्रिय हो जाते हैं।

शिवसेना की स्थिति इस समय बेहतर है, क्योंकि वह भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर केन्द्र और प्रदेश की सत्ता में भागीदारी कर रही है। हालांकि वह कभी महाराष्ट्र के अंदर भाजपा का बड़ा पार्टनर हुआ करती थी और वहां मुख्यमंत्री उसी का हुआ करता था। अब भाजपा वहां उससे बड़ी पार्टी हो गई है और मुख्यमंत्री भी अब भाजपा का ही है। आगे भी उम्मीद है कि भाजपा वहां शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से बड़ी पार्टी बनी रहेगी, भले ही शिवसेना और महाराष्ट्र को अपनी बपौती समझती रहे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि राज और उद्धव के बीच पड़ी फूट के कारण वहां भारतीय जनता पार्टी उन दोनों से ज्यादा ताकतवर हो गई है। लेकिन यदि दोनो एक दूसरे से अलग नहीं भी होते, तब भी शायद भाजपा उनसे ज्यादा ताकतवर हो जाती। इसका कारण यह है कि भाजपा राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है और कांग्रेस के पतन के साथ यह देश भर में ताकतवर हो रही है।

यदि दोनों पार्टियां महाराष्ट्र से बाहर निकलना चाहती हैं, तो उन्हें अपनी सोच को भी महाराष्ट्र से बाहर लाने की कोशिश करनी चाहिए। उसे महाराष्ट्र तक सीमित रखेंगे, तो वे भी महाराष्ट्र तक ही सीमित रहेंगे। उन्हें अपनी सोच को भी उदार करना होगा। अपना रवैया भी उन्हें खुला रखना होगा।

कभी कभी पीढ़ी का बदलाव भी पार्टियों के चरित्र को बदल देता है। उत्तर प्रदेश में यह देखा जा सकता है। वहां 43 साल के अखिलेश यादव पार्टी को बदलने के लिए तत्पर दिखाई पड़ रहे हैं। वे आपराधिक तत्वों से पार्टी को मुक्त रखना चाह रहे हैं और उसके कारण उन्हें अपने पिता और चाचा के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

लेकिन उद्धव के बेटे ने इस तरह के बदलाव के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई है। वे भी अपने पिता और दादा के पद चिन्हों पर चलते हुए दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि शिवसेना अभी भी मुह काला करने की अपनी राजनीति पर चल रही है।

राज ठाकरे ने एक बार फिर सक्रियता दिखाई। इस बार वे एक फिल्म जिसमें एक पाकिस्तानी कलाकार ने काम किया था, के खिलाफ सक्रिय होने के कारण वे चर्चा में थे। करण जौहर की इस फिल्म को सिनेमा घरों में नहीं दिखाए जाने की वे मांग कर रहे थे और धमकी दे रहे थे कि जिन सिनेमा घरों मे उन्हें दिखाया जाएगा, उन सिनेमा घरों मे वे उपद्रव करेंगे। हालांकि अब उन्होंने अपना विरोध वापस ले लिया है, क्योकि करण जौहर के साथ उनकी सौदेबाजी हो गई, जिसके तहत अब आगे किसी भी फिल्म में किसी पाकिस्तानी कलाकार से काम नहीं करवाया जाएगा।

अब राज ठाकरे अगले मुद्दे का इंतजार करेंगे। लेकिन इस क्रम में उनकी पार्टी न सिर्फ एक प्रदेश तक सीमित होकर रह गई है, बल्कि वहां की राजनीति में भी वह हाशिए पर पहुंच गई है। जिस प्रकार की राजनीति वे कर रहे हैं, उसे देखकर तो हम यही कह सकते हैं उनकी पार्टी हाशिए पर बने रहने के लिए अभिशप्त है। (संवाद)