इस तरह की बातें कर मुलायम ने स्पष्ट कर दिया कि वे एक साथ दो घोड़ों की सवारी कर रहे हैं। वे अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटाना भी नहीं चाहते और अमर व शिवपाल के पक्ष में सार्वजनिक रूप से खड़ा रहना चाहते हैं। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि अखिलेश बार बार कह रहे हैं कि यदि मुलायम उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए कहें, तो वे अपना पद तत्काल छोड़ देंगे और बिना किसी पद पर रहे समाजवादी पार्टी की जीत के लिए काम करेंगे। लेकिन मुलायम उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए नहीं कह रहे। वे चाहते हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश ही रहें। जब एक पत्रकार ने पूछा कि संकट दूर करने के लिए वे शिवपाल की मांग को पूरी करते हुए खुद मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन जाते, तो उनका जवाब था कि अब दो महीने के लिए मुख्यमंत्री बनकर क्या करेंगे।

पर क्या पार्टी को विभाजन से बचाने के लिए मुख्यमंत्री का पद दो महीने के लिए संभालना और अपने आपको मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में लोगों के सामने पेश कर चुनाव लड़ना किस रूप में मुलायम के लिए घाटे का सौदा है? राजनैतिक समझ तो यही कहती है कि यदि मुख्यमंत्री बनने से दोनों खेमे में एकता आ जाती है और सम्मिलित होकर पार्टी चुनाव लड़ती है, तो इसमें कोई बुरा नहीं है। दो महीने में तो 60 दिन होते हैं, यदि पार्टी बचाने के लिए किसी को दो दिनों के लिए भी मुख्यमंत्री बनना पड़े तो वह बन जाएगा।

मुलायम की करनी और कथनी को देखते हुए हम कह सकते हैं कि उनका पुत्रमोह पहले की तरह बना हुआ है और वे किसी भी रूप में अपने मुख्यमंत्री बेटे का नुकसान नहीं होने देना चाहते। वे अपने बेटे को सार्वजनिक रूप से लताड़ रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि वे अपने भाई शिवपाल को विद्रोह करने से रोक रहे हैं। लगता है कि शिवपाल ने पार्टी तोड़ने का मन बना लिया है और मुलायम सिंह इस बात से पूरी तरह भिज्ञ हैं। इसलिए वे अपने भाई को कोई मौका नहीं देना चाहते। इसके लिए सार्वजनिक तौर पर वे अपने भाई के साथ हैं, लेकिन अंदर अंदर वे बेटे के ही साथ हैं।

जहां तक चुनाव के बाद मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय करने की बात है, तो उसके बाद भी वही मुख्यमंत्री होगा, जिसे मुलायम चाहेंगे। अभी अपने बेटे को मुख्यमंत्री के पद पर बैठाए रखने के लिए जिस तरह की राजनीति मुलायम कर रहे हैं, उसे देखते हुए यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि चुनाव के बाद बहुमत मिलने या गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में भी मुलायम अपने बेटे का ही साथ देंगे। यदि कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाने की नौबत आई, तो कांग्रेस भी शिवपाल के ऊपर अखिलेश को ही वरीयता देगी, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से अखिलेश और लालू एक दूसरे की तारीफें समय समय पर करते रहे हैं। दोनों ने एक दूसरे को अच्छा व्यक्ति कहा है और जब प्रधानमंत्री पर सैनिकों के खून की दलाली करने का आरोप राहुल गांधी ने लगाया, तो अखिलेश ने उनका समर्थन किया।

मुलायम सिंह यादव किसी भी तरह से पार्टी में विभाजन को रोकना चाह रहे है और इसके लिए वे अपने भाई और बेटे मे से किसी को भी खोना नहीं चाहते- अब यह स्पष्ट हो गया है। पहले लग रहा था कि समाजवादी पार्टी मे संघर्ष बाप और बेटे के बीच में है, लेकिन मुलायम द्वारा अखिलेश को अपने पदों पर बनाए रखना यह साबित करता है कि लड़ाई बाप बेटे की बीच नहीं है, बल्कि चाचा और भतीजे के बीच ही है और मुलायम दोनों में से किसी को भी पार्टी से अलग होने का मौका नहीं देना चाहते।

पर सवाल उठता है कि इस तरह दो घोड़े की सवारी मुलायम कबतक करते रहेंगे? उनके भाई को भी अबतक अहसास हो गया होगा कि नेताजी का पुत्रमोह बना हुआ है और वे अपने बेटे को सार्वजनिक रूप से लताड़ कर अपने भाई को खुश रखने की कोशिश कर रहे हैं। बेटे को भी पता चल गया होगा कि नेताजी सार्वजनिक रूप से सिर्फ उन्हें लताड़ने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। इसलिए बेटा और भी आक्रामक होकर अपने चाचा को कमजोर करने की कोशिश करता रहेगा।

मुलायम सिंह ने कह रखा है कि अखिलेश सरकार चलाएं और शिवपाल पार्टी चलाएं, लेकिन सरकार तो पार्टी की ही होती है, इसलिए पार्टी चलाने वाले और सरकार चलाने वाले के बीच अच्छा तालमेल तो रहना ही चाहिए। प्रदेश अध्यक्ष होने की हैसियत से शिवपाल ने अखिलेश सरकार के एक मंत्री को पार्टी से ही निकाल दिया। अब अखिलेश क्या करेंगे? चूंकि वे समाजवादी पार्टी की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, इसलिए कायदे से उन्हे उस व्यक्ति को सरकार से बाहर कर देना चाहिए, जो पार्टी में अब नहीं रहा। पार्टी का अनुशासन तो यही कहता है, लेकिन यदि शिवपाल ने एक के बाद एक अनेक मंत्रियों को पार्टी से निकाल दिया, तो फिर अखिलेश की सरकार ही मंत्री विहीन हो जाएगी। जाहिर है, यह स्थिति ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकती।

और टिकट बंटवारे के समय जो घमासान मचेगा, उसके नेताजी क्या करेंगे? टिकट बांटने का अंतिम फैसला तो उन्हें ही करना है और उसमें वे अपने बेटे को तरजीह देंगे या अपने भाई को? और यदि टिकट बंटवारे के समय ही पार्टी टूट गई, तो फिर चुनाव का सामना एक विभाजित पार्टी के साथ वे कैसे कर पाएंगे? मुलायम सिंह दो घोड़ो की सवारी कर निश्चय ही एक बहुत बड़ा राजनैतिक खतरा उठा रहे हैं। (संवाद)