इसलिए जब दोराबजी की मौत के बाद प्रमुख के पद पर टाटा के ही एक रिश्तेदार को बैठाया गया। उस रिश्तेदार की मौत के बाद जेआरडी टाटा ग्रुप के अध्यक्ष बने। जेआरडी टाटा जमशेदजी के वंशज नहीं थे, लेकिन वे वृहद टाटा परिवार के हिस्सा थे। वे सबसे ज्यादा समय तक टाटा ग्रुप की अध्यक्षता करते रहे। वे 53 साल तक इस पद पर रहे। उनके जमाने में टाटा अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्होंने इसका काफी विस्तार कर लिया था। एअर इंडिया की शुरुआत उन्होंने ही की थी, जिसका इन्दिरा गांधी के दिनों में राष्ट्रीयकरण कर लिया गया था।
जेआरडी टाटा के बाद रतन टाटा इस ग्रुप के प्रमुख बने। वे न तो जमशेदजी टाटा के वंशज हैं और न ही जेआरडी टाटा के, लेकिन टाटा परिवार से उनका गहरा ताल्लुक रहा है। जमशेदजी टाटा के बेटे रतनजी टाटा की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने नवलजी को गोद लिया था। उसके पहले नवलजी एक अनाथालय में रह रहे थे। नवलजी को रतनजी ने अपना सरनेम टाटा दिया। रतन टाटा नवलजी की ही संतान हैं। टाटा परिवार से खून का रिश्ता न होने के बावजूद रतन टाटा रतनजी के पोते जैसे हुए।
यानी रतन टाटा के समय तक सिर्फ टाटा परिवार का ही कोई व्यक्ति इसका प्रमुख हुआ करता था। लेकिन यह परंपरा उसके बाद टूट गई। साइरस मिस्त्री को अध्यक्ष बनाया गया, जो पारसी तो हैं, लेकिन टाटा परिवार से नहीं हैं। उनके साइरस मिस्त्री के बाप दादा ने टाटा ग्रृप में बड़ी भागीदारी कर रखी थी। टाटा संस के 18 फीसदी से भी ज्यादा शेयर उनके पास हैं। यदि टाटा को छोड़ दिया जाय, तो सायरस मिस्त्री के पास टाटा संस को सबसे ज्यादा शेयर है।
गौरतलब हो कि टाटा संस टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है। इस ग्रुप में शेयर बाजार मे लिस्टेड 30 कंपनियां हैं। अनलिस्टेड कंपनियों की संखा तो और भी ज्यादा हैं। उन सब कंपनियों का नियंत्रण टाटा संस नाम की कंपनी ही करती है। इसलिए जो टाटा संस का प्रमुख होता है, वही पूरे समूह का प्रमुख होता है। टाटा समूह के अपने शेयरों की बदौलत और रतन टाटा के समर्थन से ही साइरस मिस्त्री 4 साल पहले टाटा समूह के अध्यक्ष बने थे।
जब रतन टाटा ने समूह का अध्यक्ष पद छोड़ा था, उस समय वे शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से पूरी तरह फिट थे। ग्रुप का नेतृत्व करने में भी वे सक्षम थे, लेकिन अपने द्वारा बनाए गए एक नियम के कारण उन्हें वह पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने नियम बना दिया था कि 75 साल की उम्र तक ही कोई टाटा ग्रुप की किसी कंपनी या खुद खुद ग्रुप की होल्डिंग कंपनी के किसी पद पर रह सकता है। वह नियम उन्होंने रूसी मोदी को टाटा स्टील के अध्यक्ष के पद से हटाने के लिए बनाया था।
रूसी मोदी टाटा स्टील के अध्यक्ष के रूप में बहुत ही प्रभावशाली प्रबंधक साबित हुए थे। उनकी काफी प्रतिष्ठा देश के सार्वजनिक जीवन में थी। और वे ठीकठाक काम कर रहे थे, लेकिन रतन टाटा को वह पसंद नहीं आया। रूसी मोदी की उम्र 75 साल होने वाली थी। रतन टाटा ने यह कहकर उन्हें उनके पद से हटा दिया कि टाटा समूह की यह नीति बना दी गई है कि 75 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को रिटायर कर दिया जाय।
रूसी मोदी को भी रतन टाटा ने उसी तरह से हटाया था, जिस तरह से साइरस मिस्त्री को हटाया गया। मोदी को भी किसी प्रकार की नोटिस नहीं दी गई थी। बोर्ड के एजेंडे में आमतौर पर रहता है कि अन्य मसलों पर भी बात हो सकती है, जिन्हें बोर्ड उचित समझे। उसी का हवाला देकर कहा गया कि चूंकि रूसी मोदी 75 साल के हो गए हैं, इसलिए उन्हें रिटायर्ड घोषित किया जाता है। इस तरह श्री मोदी टाटा स्टील के पद से हटा दिए गए।
लेकिन 75 साल की उम्र का वह नियम आगे भी काम करता रहा और जब रतन टाटा 75 साल के हो गए, तो उन्हें अपने बनाए गए नियमों के तहत ही रिटायरमेंट लेना पड़ा।
पर रिटायर होने के बावजूद रतन टाटा सत्ता का एक केन्द्र बने रहे। वे दोराबजी और रतनजी ट्रस्ट के चेयरमैन बने रहे। इन दोनों ट्रस्ट के पास टाटा संस के 66 फीसदी शेयर हैं। इसलिए जो भी टाटा संस का चेयरमैन होता है, वह इन दोनों ट्रस्टों का भी चेयरमैन होता है, लेकिन टाटा संस के प्रमुख के पद से हटने के बाद भी रतन टाटा इन ट्र्रस्टो के प्रमुख बने रहे। इस तरह ग्रुप का रिमोट कंट्रोल उनके हाथ में आ गया।
सवाल उठता है कि साइरस मिस्त्री को इन ट्रस्टों का अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया गया? इसका एक कारण तो यही हो सकता है कि रतन टाटा अपने को अभी भी फिट पा रहे थे और इसलिए नियम का पालन करते हुए वे समूह के प्रमुख के पद से हटने के बावजूद दोनों ट्रस्टों के प्रमुख बने रहे। एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि वे उन ट्रस्टों को टाटा की पारिवारिक संपत्ति समझते होंगे और अपने को टाटा का वारिस समझते हुए उस पर अपना कब्जा बरकरार रखना चाहते होंगे। वे साइरस मिस्त्री को अपनी इच्छा के अनुसार चलाना चाहते थे, लेकिन इस समय टाटा समूह की कुछ प्रमुख कंपनियां संकट के दौर से गुजर रही हैं। टाटा स्टील द्वारा कोरस को खरीदना भारी पड़ गया है। यह खरीद रतन टाटा ने ही अपने जमाने में की थी। दुनिया भर में स्टील उद्योग मंे मंदी चल रही है। उसने भी टाटा स्टील की हालत पतली कर रखी है। टाटा नानो भी विफल हो गया है और टाटा का डोकोमो के साथ साझीदारी कंपनी के गले ही हड्डी बन चुकी है। साइरस और रतन टाटा मे इन सबके कारण टकराव हुआ और उसकी परिणति हम साइरस मिस्त्री का चेयरमैन के पद से हटाने के रूप मे देख रहे हैं। इससे निश्चय ही देश के सबसे प्रतिष्ठित औद्योगिक समूह की प्रतिष्ठा को बहुत धक्का पहुंचा है। (संवाद)
टाटा समूह में घमसान
देश के सबसे बड़े औद्योगिक समूह की प्रतिष्ठा को धक्का
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-11-02 12:37
टाटा समूह में जो कुछ हो रहा है, वैसा अतीत में कभी भी नहीं हुआ था। जिस तरह से साइरस मिस्त्री को टाटा संस के अध्यक्ष पद से हटाया गया, वैसा पहले कभी नहीं किया गया था। इसके साथ यह भी सच है कि टाटा परिवार से बाहर का कोई भी व्यक्ति इस समूह का अध्यक्ष पहले नहीं बना था। जमशेदजी टाटा ने इस समूह की स्थापना 1868 में की थी। उनके दो बेटे थे- दोराबजी टाटा और रतनजी टाटा। जमशेदजी के बाद दोराबजी टाटा इस ग्रुप के प्रमुख बने थे। उनके छोटे भाई रतनजी टाटा की मौत उनसे पहले ही हो गई थी और दोनों भाइयों को कोई पुत्र नहीं था।