दोनों के बीच 10 साल से दोस्ती चल रही है। इस दोस्ती के बीच दोनों के कार्यकत्र्ताओं के बीच संदेह का माहौल भी रहता है। दोनों के बीच तनाव भी पैदा होते रहते हैं। लेकिन इसके बावजूद भी दोनों पिछले 10 साल से मिलकर महाराष्ट्र में सरकार चला रहे हैं और केन्द्र में भी दोनों 5 साल से ज्यादा समय से साथ मिलकर सत्ता की भागीदारी कर रहे हैं। साथ होने के बावजूद सोनिया गांधी इस बात को भुला नहीं पाई है कि 1999 में उनके खिलाफ विदेशी मूल के होने का सवाल उठाकर बगावत का झंडा बुलंद किया था। शरद पवार भी इस बात को नहीं भूल लाए हैं कि सोनिया के कारण किस तरह उन्हें कांग्रेस से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था।

पिछले दिनों श्री पवार ने बाला साहब ठाकरे से मुलाकात कर कांग्रेस को एक झटका दिया। उनकी तरफ से कहा गया कि वे बाला साहब के पास आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के आइपीएल के खेलने का विरोध न करने की अपील लेकर गए थे। पर इस बात को भला कौन मानेगा कि दोनों के बीच सिर्फ क्रिकेट के बारे में ही बातें हुई होंगी। श्री पवार ने बाला साहब से मुलाकात वैसे समय में की जब भाजपा भी शिवसेना के खिलाफ बोलने लग गई थी और लग रहा था कि श्री ठाकरे महाराष्ट्र में अलग थलग पड़ रहे हैं। पवार की उस मुलाकात ने निश्चय ही शिवसेना को सह अहसास करा दिया कि वह अकेली नहीं है।

दूसरी तरफ श्री पवार ने कांग्रेस को यह अहसास करा दिया कि उनके पास उसके अलावा और भी विकल्प है। जब वे श्री ठाकरे से मिले, उस समय कांग्रेस की ओर से उनपर महंगाई के लिए हमला बोला जा रहा था। श्री पवार हमले का जवाब देते हुए कह रहे थे कि महंगाई के लिए वे अकेले जिम्मेदार नहीं माने जा सकते, क्योंकि जो भी फेसला होता है वह कैबिनेट का फेसला होता है। कोई भी फेसला उनका व्यक्तिगत नहीं होता। उन्होंने कैबिनेट का नाम लेकर मह्रगाई के लिए जिम्मेदार लोगों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी घसीट लिया।

महंगाई के लिए पवार को जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेसी परोक्ष रूप से उनसे कुछ मंत्रालय ले लिए जाने की भी मांग करने लगे थे और कयास लगाया जाने लगा था कि उनके खाद्य और उपभोक्ता मामले का मंत्रालय उनसे वापस लिया जा सकता है और सिर्फ कृषि मंत्रालय से उन्हें संतुष्ट रहने के लिए कहा जा सकता है। जाहिर है इस तरह के दबाव के बीच शिवसेना प्रमुख श्री ठाकरे से मिलकर उन्होंने कांग्रेस का यह अहसास करा दिया कि वे चाहें तों ठाकरे के साथ भी जा सकते हैं।

कांग्रेस की समस्या यह है कि महाराष्ट्र में वह यदि किसी से गठबंधन कर सकती है, तो वह सिर्फ शरद पवार की ही पार्टी है। और अकेले कांग्रेस सत्ता में आने से रही। श्री पवार ने ठाकरे के साथ मुलाकात कर अपना राजनैतिक हित साध भी लिया है। अब कांग्रेस की ओर से उनके खिलाफ महंगाई को लेकर हमला कमजोर हो गया है। (संवाद)