प्रधानमंत्री का यह फैसला किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा आर्थिक मोर्चे पर लिया गया यह अब तक का सबसे अधिक साहसिक फैसला है। सच कहा जाय तो काले धन पर अब तक इतना कड़ा प्रहार किया ही नहीं गया था। वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था में चल रही सभी करेंसियों में करीब 80 से 85 फीसदी इन्हीं दो बड़े नोटों का योगदान है। जाहिर है, इन दोनों नोटों के रूप मे ंसबसे ज्यादा काला धन इकट्ठा किये गये थे। अब वे काले धन मिट्टी के हो जाएंगे। उनका एक हिस्सा तो जाली नोटों का है और जो असली नोटों का काला धन है, उसके बारे में वित्तमंत्री संकेत दे रहे हैं कि वे भी बैंको में जमा किए जा सकते हैं, लेकिन उस पर टैक्स लगेंगे और वर्तमान कानूनों के तहत जो दंड और सजा का प्रावधान हैं, उनका सामना भी काले धन के मालिको को करना होगा। पता नहीं।

माफी योजना के तहत को 45 फीसदी का टैक्स लिया जा रहा था, पता नहीं अब सरकार अपने काले धन को उगाजर करने वाले पर किस दर से टैक्स लगाएगी और इसके अतिरिक्त किस तरह की सजा उन्हें दी जाएगी। बहुत उम्मीद है कि काला धन के ज्यादातर मालिक सामने आएंगे ही नहीं या गरीब लोगों का इस्तेमाल कर वे अपने काले धन के कुछ हिस्सों को सफेद करना चाहेंगे। टैक्स भरवा देंगे और सजा पाने के लिए किसी गरीब को आगे कर देंगे।

इसलिए बेहतर यही होगा कि सरकार इन दोनों नोटों में रखे काले धन के मालिको को कोई रियायत नहीं दें। उनके पास पड़ी करेंसियों को वैसे ही पड़ा रहना छोड़ दें। कुछ राजस्व प्राप्ति के लोभ में पड़कर सरकार काला धन के मालिको को एक और राहत का मौका न दें। उम्मीद है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली सिर्फ सैद्धांतिक बातें कर रहे थे। शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन पर की गई अपनी सर्जिकल स्ट्राइक मे उन्हें भी भरोसे में नहीं लिया, क्योंकि वित्तमंत्री के रूप में वे विदशों में जमा काले धन को देश वापस लाने में विफल रहे हैं और किसी प्रयास के पहले ही वे नकारात्मक बातें करने लगते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना पद संभालने के बाद पहली बार अपने कदम से साबित किया है कि वे काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ वास्तव में गंभीर हैं। वैसे सरकार की यह योजना आने वाले समय में भ्रष्टाचार रोकने की कोई गारंटी नहीं देती, हां भ्रष्टाचार द्वारा इकट्ठा किए गए काले धन को उन्होंने जरूर समाप्त करने की कोशिश की है। इसके लिए उनकी जितनी सराहना की जाय, वह कम है, लेकिन इस मोर्चे पर उठाया गया यह पहला कदम हो सकता है, अंतिम नहीं।

काले धन की समस्या बहुत ही व्यापक है। कहते हैं कि काले धन की अर्थव्यवस्था आधिकारिक अर्थव्यवस्था से भी बड़ी हो गई है। इसलिए सिर्फ एक कदम उठाकर इसका खात्मा नहीं किया जा सकता। काला धन सिर्फ नोटों के रूप में ही नहीं रखा जाता। इसे बैकों मे भी रखा जाता है। इसके लिए अनेक बेनामी खाते खुलवाए जाते हैं और अनेक कागजी कंपनियां खड़ी कर ली जाती है। उन बेनामी खातों और कागजी कपंनियों के खातों पर हमला करना भी जरूरी है। हो सकता है उन खातों में उतना काला धन जमा हो, जितना 5 सौ और एक हजार के नोटों में भी नहीं हों। काला धन के विशेषज्ञ कुछ अर्थशास्त्रियों का तो कहना है कि भारतीय बैंको में बेहिसाब काला धन पड़ा हुआ है। इंटननेट और इनफाॅर्मेशन टेक्नालाजी के इस युग में उन पर हमला करना भी कठिन नहीं है। क्या नरेन्द्र मोदी उस दिशा में भी कदम उठाएंगे?

काले धन की चर्चा करते हुए एक बार मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कहा था कि सबसे ज्यादा काला धन रियल इस्टेट में है। यानी गलत तरीके और आयकर विभाग को धता बताते हुए जिन लोगों ने काला धन कमाए, उन्होंने उसका बहुत बड़ा हिस्सा जमीन जायदाद में लगा रखे हैं। जमीन जायदाद की कीमतों में हुई भारी वृद्धि उस सेक्टर में लगे काले धन के कारण ही हुई है। वैसे इस क्षेत्र में मंदी पहले से ही चल रही है और रियल इस्टेट की कीमतें पहले से ही गिर गई हैं। यहां खरीद बिक्री का एक बड़ा हिस्सा काले नोटों से ही होती थी। उनके समाप्त होने के बाद रियल इस्टेट में और भी मंदी आएगी और उस मंदी के साथ ही उसमें लगा काला धन अपन आप अपनी कीमत खोने लगेगा। पर फिर भी सरकार को प्रयास कर काले धन के रूप् में जो जमीन जायदाद है, उसका पता लगाकर उसे कब्जे मे लेना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर देनी चाहिए।

5 सौ और दो हजार के नये नोट भी बाजार में आ रहे हैं। सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब सरकार पुराने नोटों को समाप्त कर रही है, तो नये नोटों को क्यों ला रही है? एक कारण तो यह हो सकता है कि जिनके पास सफेद धन वाले बड़े नोट हैं, उनको बदले में नया नोट तेजी से देने के लिए सरकार ने ये दोनों नये नोट चलाए होंगे। लेकिन एक बार पुराने नोटों के रूप में सग्रहित काले धन को अपने कब्र में दफन करने के बाद सरकार को इन नये नोटो को वापस ले लेना चाहिए और सौ रुपये से ज्यादा के नोट अंततः रहने ही नहीं चाहिए। (संवाद)