सपा को एक आदमी की पार्टी कहा जा सकता है। यह मुलायम की पार्टी हैं, जो पिछले 50 साल से राजनीति में हैं। वे एक किसान के पुत्र हैं, जो शिक्षक और पहलवान हुआ करते थे। राजनीति में भी उन्होंने पहलवान की भूमिका निभाई है और बहुत बार दिखाया है कि पछाड़ भी सकते हैं और पछाड़ खाकर भी फिर खड़े हो सकते हैं।

वे एक कट्टर लोहियावादी हैं और 1977 में प्रदेश सरकार में मंत्री बनने के पहले तीन बार विधायक रह चुके थे। 1980 में चुनाव हारने के बाद वे विधान परिषद में आ गए थे। वे तीन बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं। पहली बार वे 1989 में मुख्यमंत्री बने। तब वे जनता दल में थे और अजित सिंह को पछाड़कर मुख्यमंत्री बने थे। दूसरी बार वे 1993 में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री थे। तीसरी बार वे 2003 में मुख्यमंत्री बने। वे चाहते तो चैथी बार 2012 में भी मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को अपनी जगह मुख्यमंत्री बना दिया।

समाजवादी पार्टी का गठन उन्होने 1992 में किया था। उसके पहले वे सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल और फिर समाजवादी जनता पार्टी मे थे। ये सभी पार्टियां एक ही धारा की पार्टी का अलग अलग नाम है। जैसे सोशलिस्ट पार्टी के विलय से जनता पार्टी का निर्माण हुआ था और जनता पार्टी से पुराने सोशलिस्ट निकलकर लोकदल बना बैठे। फिर लोकदल का जनता दल में विलय हो गया। जनता दल का जब विभाजन हुआ, तो मुलायम सिंह चन्द्रशेखर के नेतृत्व वाली समाजवादी जनता पार्टी में आ गए थे। 1991 के चुनाव में वे इसी पार्टी से चुनाव लड़े थे, लेकिन उसमें उनकी करारी हार हुई। फिर चन्द्रशेखर से अलग होकर उन्होंने अपनी एक अलग समाजवादी पार्टी बना ली, जो अभी तक चल रही है।

समाजवादी पार्टी बनाकर उन्होंने 1993 का चुनाव बसपा के साथ मिलकर लड़ा और भाजपा को हराकर एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन बसपा के साथ उनका रिश्ता खराब हो गया और उनकी सरकार गिर गई। फिर 1996 में वे लोकसभा में चुनकर आ गए। संयुक्त मोर्चे की सरकार का नेतृत्व करते हुए उन्हें दो बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिल सकता था, लेकिन लालू यादव के विरोध के कारण वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।

पहले देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार गिरने के बाद सीपीएम ने मुलायम को पीएम बनाने की जबर्दस्त मुहिम चलाई अन्य पार्टियां भी तैयार थीं, लेकिन लालू यादव अड़ गए और घोषणा कर दी कि यदि मुलायम को पीएम बनाया जाता है, तो उनका जनता दल सरकार में शामिल नहीं होगा, बल्कि विपक्ष में बैठेगा। उस समय लालू यादव जनता दल के अध्यक्ष थे और संयुक्त मोर्चा में उनके सबसे ज्यादा 44 सांसद थे। संयुक्त मोर्चा की दोनों सरकारों में मुलायम रक्षा मंत्री रहे।

1999 में अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की और यह संकेत दे रही थीं कि मुलायम सिंह उनका समर्थन करेंगे। यदि उस समय मुलायम उनका समर्थन करते, तो सोनिया प्रधानमंत्री शायद बन भी जातीं, लेकिन मुलायम ने वैसा करने से साफ इनकार कर दिया था।

2003 में मुलायम एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 2007 के विधानसभा चुनाव तक उस पद पर रहे। 2004 में गठित मनमोहन सरकार के खिलाफ उनकी पार्टी तीसरे मोर्चे का हिस्सा थी, लेकिन जब तीसरे मोर्चे ने परमाणु करार के मसले पर मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, तो मुलायम मोर्चे से अलग हो गए और मनमोहन की सरकार को बचा लिया।

मुलायम सिंह यादव देश की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन उनकी छवि एक ऐसे नेता की रही है, जो कभी भी अपना स्टैंड बदल सकते हैं। अनेक मौके पर उन्होंने ऐसा किया।

म्ुालायम सिंह ने अपने परिवार के लोगों को भारी संख्या में सत्ता के पदों पर बैठाया है और अब उन्हें उसके कारण ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उनके बेटे और भाई में संघर्ष है और उस संघर्ष के कारण ही मुलायम की राजनीति और उनकी पार्टी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। (संवाद)