जब संसद का सत्र शुरू होगा, उस समय देश के करोड़ों लोग अपनी पुरानी नोटों को भुनाने, अपने बैंक खातों से रुपया निकालने और अपना रुपया बैंकों के अपने खातों मंे डालने के लिए बैंकों और डाकघरों के सामने कतार लगाकर खड़े होंगे। उनकी बेचैनी संसद में भी प्रतिघ्वनित होगी और काले धन पर अब तक के सबसे बड़े हमले का श्रेय ले रही सरकार को उनकी बेचैनी पर जवाब देना होगा। बहुत संभव है कि इस बार विपक्ष नहीं, बल्कि सत्तापक्ष की संसद की कार्रवाइयों में हो हल्ला कर व्यावधान डालें।

जब नोटबंदी की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर की शाम 8 बजे की थी, तो देशभर में आम तौर पर उस घोषणा का भारी स्वागत किया गया था, क्योंकि अपने आपमें यह निर्णय अच्छा ही है और इसके कारण नकली नोट, हवाला बाजार, आतंकवाद और ड्रग की तस्करी पर नियंत्रण होता है। इससे काले धन पर भी कुछ चोट पहुंचती है। इसलिए लोगो को लगा कि सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ दिनों के लिए लोगों को इसके कारण परेशानी हो सकती है और लोग कुछ दिनों की परेशानी को सहने के लिए भी पूरी तरह से तैयार थे।

लेकिन परेशानी के ये दिन बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि लोगों को सही मात्रा में नये और वैध नोट मिल नहीं पा रहे। पूरा बैंकिंग तंत्र अपने क्षमता से ज्यादा काम कर रहा है, लेकिन फिर भी लोगों की समाप्त हुई क्रयशक्ति वापस नहीं आ रही है। खुद वित्तमंत्री ने बताया कि रविवार तक बैंको ने 50 हजार करोड़ वैध रुपये लोगों को दिए, लेकिन उनमें 40 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा दो हजार के नये नोट हैं, जो 500 के नोटों के अभाव में बाजार मे चल ही नहीं सकते, क्योंकि बाजार में 100 रुपये के नोटों का भारी अभाव है और 500 रुपये का नोट नोटबंदी के पहले 6 दिनों तक बाजार में लाया ही नहीं गया है। इसलिए कह सकते हैं कि प्रभावी रूप से बैंकिंग व्यवस्था ने करीब 10 हजार करोड़ रुपये की क्रयशक्ति पैदा की। कहते हैं कि करीब 14 लाख करोड़ रुपये के नोटों को बंद किया गया। जाहिर है सरकार के उस निर्णय से 14 लाख करोड़ रुपये की क्रयशक्ति का हरण हुआ है, जबकि इस लेख को लिखे जाते वक्त मुश्किल से बैंकिंग व्यवस्था में 10 हजार करोड़ रुपये की क्रयशक्ति लोगों को प्रदान की है।

जिस तरह चारों तरफ अफरातफरी का माहौल है, उससे साफ लगता है कि सरकार ने बिना किसी तैयारी किए यह घोषणा कर डाली है। इसके कारण इस घोषणा का स्वागत करने वाले लोगों को ही बेवजह तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। नोटबंदी की घोषणा करने के पहले सरकार ने इसपर विचार ही नहीं किया कि इससे जो क्रयशक्ति का ह्रास होगा, उसकी भरपाई कैसे की जाएगी। यदि विचार किया भी होगा, तो उसने विचार करते वक्त बाजार की वास्तविकताओं पर ध्यान नहीं दिया जाय।

500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर उनसे बाजार को नुकसान की भरपाई 2000 के नोटों से करने की रणनीति मूर्खतापूर्ण थी। इसी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक 500 और 1000 रुपये का नोट भी छपवा रहा था, लेकिन उनकी छपाई रिजर्व बैंक की प्राथमिकता नहीं थी। यही कारण है कि 1000 रुपये का नया नोट तो अभी तक बाजार में नहीं आया है और 500 का नोट बहुत देर से आया है। जहां तक 100 रुपये की नोट की बात है, तो वह पहले से ही बहुत संख्या मंे प्रचलन में थी।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जिस दिन दो बड़े नोटों को बंद करने की घोषणा हुई, उस दिन बाजार में साढ़े सत्रह लाख करोड़ रुपये की राशि प्रचलन में थी। उनमें से सिर्फ दो बड़े नोटों का योगदान 84 फीसदी था। यानी एक झटके में सरकार ने साढ़े 14 लाख करोड़ रुपये को अवैध घोषित कर दिया गया। शेष 16 फीसदी राशि में 100 रुपये, 50 रुपये, 20 रुपये 10 रुपये और 5 रुपये के नोट थे। सरकार नये नोटों के साथ 100 रुपये के पुराने नोटों का भी इस्तेमाल बाजार में जान फूंकने मे कर रही है। एटीएम मशीनों से इस लेख को लिखे जाते वक्त सिर्फ 100 रुपये के नोट ही निकल रहे हैं। जाहिर है, उसका स्टाॅक बहुत ज्यादा नही बचा है और वह कभी भी समाप्त हो सकता है। यदि 500 का नोट जल्द से जल्द पर्याप्त मात्रा मे नहीं लाया गया, एटीम मशीन भी बेकार हो जाएंगे और पूरा का पूरा दबाव बैंकों और डाकघरों पर ही पड़ने लगेगा और उनके द्वारा जारी किए गए 2000 के नोट मर रहे बाजारों को जिंदा करने मे नाकाम हो जाएंगे।

और इस विफलता की गूंज संसद के दोनों सदनों में सुनाई देगी। संसद की कार्यवाही का संसद के बाहर भी असर पड़ सकता है। इस योजना को लागू करने के पहले सही तैयारी नहीं करने के लिए विपक्ष सरकार ऊपर हमले तो करेगा ही, अन्य मसले भी उठाए जा सकते हैं, जिनमें एक मसल सितंबर महीने मे भारतीय बैकों में हुई रिकाॅर्ड डिपोजिट का भी है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार ने अपने लोगों को नोटबंदी की सूचना समय रहते दे दी थी और उन्होंने अपने बड़े नोट बैंकों में जमा कर दिए हैं। इस तरह सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा किया जाएगा। इस कदम से काले धन को मिटाया जा भी सकता है या नहीं, इस पर भी पूरी गहमागहमी रहने की संभावना है। (संवाद)