टाटा समूह में लगभग तीस कंपनियां हैं, जिनके मालिक होने का दावा टाटा संस नाम की कंपनी करती है। ये तीस कंपनियां शेयरब बाजार में लिस्टेड हैं। इनमें से टाटा कंसलटेंसी सर्विस और टाटा इन्वेस्टमेंट काॅर्प के अलाव अन्य कंपिनयों में टाटा संस की भागीदारी 21 से 31 फीसदी की ही है। लेकिन इन कंपनियों के बोर्डरूम पर कब्जा टाटा संस ने कर रखा है और इसके लिए वह स्वतंत्र निदेशकों का सहारा लेती रही है।
केन्द्र सरकार के वित्तीय संस्थानों के पास इन टाटा कंपनियों के शेयरों का एक बड़ा हिस्सा है। उन वित्तीय संस्थानों की सहायता से ही केन्द्र सरकार को इन कंपनियों में की जाने वाली गड़बड़ियों पर नियंत्रण करने की कोशिश करनी चाहिए। टाटा संस और उसके वर्तमान चेयरमैन कम शेयर होने के बावजूद इन कंपनियों पर अपना नियंत्रण करना चाह रहे हैं। केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप कर उनके प्रयासों को विफल कर देना चाहिए।
केन्द्र सरकार ने ऐसा पहले भी किया है। ऐसा उसने इंडियन टुबैको काॅर्पोरेशन के मामले में किया था। इस कंपनी का मुख्यालय कोलकाता में है। यह कंपनी तंबाकू के धंधे में लगी थी, लेकिन बाद में इसने अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योगों में अपने पैर पसारने शुरू किए थे, क्योंकि तंबाकू उद्योग का भविष्य अंधकारमय होता दिखाई पड़ रहा था। तंबाकू की इस कंपनी ने होटल उद्योग में भी दस्तक देना शुरू किया था।
इंडिया टुबैको काॅर्पोरेशन एक विदेशी कंपनी हुआ करती थी, क्योंकि विदेशियों ने ही इसको प्रमोट किया था। एक विदेशी कंपनी बाट्को की इसमें 31 फीसदी की हिस्सेदारी थी। उसने इस कंपनी के चेयरमैन को हटाकर इसके बोर्ड पर कब्जा करना चाहा था, क्योंकि भारतीय निदेशक अन्य क्षेत्रों में इसका विस्तार करना चाह रहे थे, जबकि ब्रिटेन की होल्डिंग कंपनी उसका विरोध कर रही थी। तब अपने वित्तीय संस्थानों की सहायता से भारत सरकार ने विदेशी होल्डिंग कंपनी के प्रयासो पर पानी फेर दिया था।
अब समय आ गया है कि केन्द्र सरकार टाटा के मामले मे भी उसी तरह का हस्तक्षेप करे। रतन टाटा साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमेन के पद से हटाकर खुद उनकी जगह आ गए हैं और उस कंपनी को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में कर लिया है। अब उसकी सहायता से उन टाटा कंपनियों पर भी अपना पूरा नियंत्रण करना चाह रहे हैं, जिनमें टाटा संस की हिस्सेदारी 50 फीसदी क्या एक तिहाई भी नहीं है।
टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा केमिकल्स, टाटा ग्लोबल बीवरेजेज, इंडियन होटल्स, वोल्टाज और टाइटन इंडस्ट्रीज पर टाटा संस का नियंत्रणकारी स्टेक नहीं है, लेकिन उन्हें टाटा संस और उसके चेयरमैन रतन टाटा अपनी जागीरदारी समझते हैं। जब से साइरस मिस्त्री को टाटा संस के अध्यक्ष पद से हटाया गया है, इन कंपनियो की शेयरो की कीमतें शेयर बाजार मे काफी गिर गई हैं। उनकी कीमत हजारो करोड़ रुपये गिर गई हैं। जाहिर है, इससे हजारों आम पब्लिक और खुद सरकार को नुकसान उठाना पड़ा है। और नुकसान न हो, इसके लिए केन्द्र सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। (संवाद)
टाटा कंपनियों को बचाने के लिए सरकार हस्तक्षेप करे
रतन टाटा निदेशकों की आजादी को खत्म कर रहे हैं
नन्तू बनर्जी - 2016-11-16 10:35
समय आ गया है कि केन्द्र सरकार को टाटा समूह के मामलों मे हस्तक्षेप करना चाहिए। टाटा कंपनियों का मालिक होने का दावा करने वाली कंपनी टाटा संस उन कंपनिययों के साथ खिलवाड़ कर रही है और उन्हें अस्थिर कर रही है। ये कंपनियां राष्ट्रीय महत्व की हैं और उनमें टाटा संस की हिस्सेदारी 50 फीसदी से भी कम है। उन कंपनियों के शेयरधारकों के हितों की रक्षा करना केन्द्र सरकार का कर्तव्य है और सबसे बड़ी बात यह है कि खुद केन्द्र सरकार के पास भी उन कंपनियों के शेयरो का एक बड़ा हिस्सा है। यानी केन्द्र को अपने वित्तीय हितों की रक्षा करने के लिए भी उनके मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए।