जिन दो क्षेत्रों में चुनाव हो रहे हैं, वे हैं शहडोल लोकसभा चुनाव क्षेत्र और नेपानगर विधानसभा क्षेत्र। दोनों पर पहले भाजपा का कब्जा था। दोनों क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों की मौत हो गई थी। उसके कारण ही वहां चुनाव कराने पड़ रहे हैं।

दोनों निर्वाचन क्षेत्रों की एक खास बात यह है कि दोनों सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।

वैसे तो दोनों सीटों पर जीत भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई हैं, लेकिन शहडोल लोकसभा चुनाव क्षेत्र उसके लिए ज्यादा महत्व रखता है। इसका कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वह दावा है, जिसमें उन्होने यह कहा था कि परेशानी होने के बावजूद देश के लोग उनको नोटबंदी के लिए आशीर्वाद दे रहे हैं।

शहडोल लोकसभा क्षेत्र में यदि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीत जाते हैं, तो मोदीजी और उनकी भारतीय जनता पार्टी को यह कहने का मौका मिलेगा कि देश की जनता ने नोटबंदी के उनके एलान को पसंद किया है। इसके द्वारा वह अपने विरोधियों का मुह भी बंद करेंगे।

लेकिन यदि हार हो गई, तो फिर विपक्ष के हौसले मजबूत होंगे और उनका आक्रमण मोदी सरकार पर दिनों दिन तेज होता जाएगा। भारतीय जनता पार्टी इस नोटबंदी को कालेधन पर अब तक के सबसे बड़े हमले के रूप में पेश कर रही है। हारने के बाद उसका यह दावा कमजोर पड़ने लगेगा।

शहडोल की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि झबुआ में हुए लोकसभा के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार हार गया था। यदि यहां भी हार हो जाती है, तो यह माना जाएगा कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की चमक कमजोर पड़ती जा रही है।

यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इस चुनाव को बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं, क्योंकि यह उनकी निजी प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। वे इसे कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भाजपा का यहां उम्मीदवार बना दिया है।

वैसे उनकी यह रणनीति उलटी पड़ती दिखाई दे रही है। इसका कारण यह है कि मंत्री होने के कारण अनेक लोग उम्मीदवार से नाराज हैं, क्योंकि उनके सारे काम वे करवा नहीं पाते हैं। इसका असर उम्मीदवार के चुनाव अभियान पर भी पड़ रहा है।

कांग्रेस ने पूर्व सांसद दलवीर सिंह की बेटी हिमाद्री सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह देखने में सुन्दर हैं और युवा भी हैं। उनकी सुन्दरता पर कटाक्ष करते हुए भाजपा उम्मीदवार ने एक बार अपनी जनसभा में एक फिल्मी गाने का मुखड़ा दोहरा दिया, ’’ दिल को देखो, चेहरा ने देखो। चेहरे ने लाखों को लूटा’’। कांग्रेस उम्मीदवार ने उसे भी अपना चुनावी मुद्दा बना दिया है और क्षेत्र के अनेक लोग भाजपा उम्मीदवार की उस करतूत को फूहड़ बता रहे हैं और गुस्से में हैं।

इस चुनाव पर 500 और 1000 रुपये के नोटों के बंद होने का भी पड़ रहा है। सबसे पहले तो इसके कारण सभी उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार प्रभावित हो रहे हैं। कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार और पार्टी रोजाना होने वाले खर्च के लिए पैसे उपलब्ध कराते हैं। उनके पास 500 और 1000 के पुराने नोट हैं, जो अब नहीं स्वीकार किए जाते और नये नोट उनके पास अभी तक आए नहीं हैं। इसके कारण भुगतान संकट की समस्या खड़ी हो रही है। कार्यकत्र्ता पुराने नोट लेकर उन्हें भुनाने के लिए बैंकों के सामने लाइन में खड़े हो जाते हैं और चुनाव प्रचार का काम प्रभावित हो जाता है।

नोट बंदी के कारण लोगों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि नोटबंदी के निर्णय को सही मानने वाले लोगों की संख्या भी बहुत है, लेकिन हो रही कठिनाई के कारण लोग सरकार के खिलाफ भी बोल रहे हैं। सरकार के इस निर्णय का असर मतदान पर जरूर पड़ेगा। कैसा असर पड़ता है, इसका पता तो 22 नवंबर को आने वाले नतीजे के बाद ही लगेगा, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि कांग्रेस उम्मीदवार इस समय बेहतर स्थिति में हैं।(संवाद)