अन्य इलाकों की अपेक्षा उत्तरी जिलों में कैश की कमी का ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। इसका कारण है कि उत्तरी इलाकों में ज्यादा गांव हैं और गांवों में देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी बैंकिंग व्यवस्था का भारी अभाव है। समस्या उस समय और खराब हो गई जबकि स्थानीय सहकारी बैंकों को लेकर केन्द्र और भारतीय रिजर्व बैंक के फरमान जारी किए जाने लगे। उन फरमानों के कारण सहकारी बैंकों के कामकाज ठप्प होने लगे हैं।
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी वाम मोर्चे ने केन्द्रीय वित्त मंत्रालय से मांग की थी कि सहकारी बैंकों को मजबूत किया जाय। तृणमूल कांग्रेस के नेता और जलपाइगुड़ी सेंट्रल कोआॅपरेटिव बैंक के अध्यक्ष ने बताया कि 14 नवंबर को भारतीय रिजर्व बैंक से एक आदेश आया कि उनका बैंक पुराने 500 और 1000 रुपये के नोटों की लेनदेन न करे। उसके तीन दिनों के बाद एक और आदेश आया कि उनका सहकारी बैंक किसी और बैंक से भी पुराने नोट को स्वीकार न करे।
इसके कारण उस सहकारी बैंक के लिए अब किसानांे को खेती के लिए लोन देना असंभव हो गया है। इसका कारण यह है कि उसे नये नोट भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से नहीं दिए जा रहे हैं और जो पुराने नोट बैंक के पास है, वे रद्द कर दिए गए हैं।
इसके साथ साथ किसानों द्वारा पहले से लिए गए लोन की वापसी भी असंभव हो गई है, क्योंकि उनके पास पुराने नोट हैं, जिन्हें अब सहकारी बैंक अब स्वीकार नहीं कर सकते।
इसके कारण सहकारी बैंकों का कामकाज पूरी तरह ठप हो चुका है। चक्रवर्ती जिस सहकारी बैंक के अध्यक्ष हैं, उसका सालाना टर्नओवर 160 करोड़ रुपये हैं और 50 हजार लोग उस पर आश्रित हैं।
उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को इस गतिरोध की जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जलपाइगुड़ी की खराब दशा को ठीक करने के लिए केन्द्र सरकार को जल्द से जल्द हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि केन्द्र ने स्थिति को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो वे अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं के साथ भारतीय रिजर्व बैंक पर धरना देने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
इस सिलसिले में ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने भी राज्यसभा में विमुद्रीकरण के मसले पर चर्चा करते हुए कहा था कि सहकारी बैंक ग्रामीण वित्तीय व्यवस्था की रीढ़ हैं और उसे मजबूत करने के लिए केन्द्र को जल्द से जल्द कुछ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश भर से खबर आ रही हे कि लोग कैश की कमी से परेशान हैं।
समस्या सिर्फ उत्तरी बंगाल तक ही सीमित नहीं है। ईंट भट्ठों में भी काम ठप हो गया है। मालदा जिले से मिली एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां 25 हजार लोगों की हालत दयनीय हो गई है।
इसके कारण निर्माण कार्यों पर भी असर पड़ा है। सड़कों की मरम्मत की अनेक सरकारी परियोजनाएं भी इससे प्रभावित हो रही हैं। (संवाद)
विमुद्रीकरण का उत्तरी बंगाल पर बुरा असर
ग्रामीण अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई है
आशीष बिश्वास - 2016-11-22 10:24
कोलकाताः पश्चिम बंगाल के उत्तरी जिलों पर केन्द्र की नोटबंदी के फैसले का बहुत बुरा असर पड़ रहा है। सबसे ज्यादा खराब असर खेती पर पड़ रहा है। रोजाना हो रहे नुकसान करोड़ों का है, क्योंकि इसके कारण उत्पादन और रोजगार दोनो प्रभावित हो रहे हैं।