अखिलेश का प्रभाव मुलायम के फैसलों पर इतना बढ़ गया है कि उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल और जनता दल (यूनाइटेड) से उत्तर प्रदेश में गठबंधन बनाने से इनकार कर दिया। गौरतलब हो कि पारिवारिक कलह के बीच ही मुलायम ने बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन बनाने की घोषणा कर दी थी और अपने भाई शिवपाल को उस काम पर लगा दिया था।

महागठबंधन के लिए शिवपाल ने दिल्ली जाकर राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह और जनता दल (यू) के नेता शरद यादव से मुलाकात की थी। कांग्रेस से भी गठबंधन होने की चर्चा जोर पकड़ रही थी और उसी बीच प्रशांत किशोर ने भी मुलायम से मुलाकात की थी।

पर अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी से गठबंधन किए जाने के खिलाफ हैं। उनकी इच्छा के अनुसार मुलायम ने यह स्पष्ट कर दिया कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी का किसी से गठबंधन नहीं होगा।

जब जनता दल से निकली पार्टियों को एक कर एक नई पार्टी बनाने की मुहिम शुरू हुई थी, तो उस मुहिम का भी अखिलेश यादव और चाचा रामगोपाल यादव ने विरोध किया था, हालांकि मुलायम सिंह को ही उस एकीकृत पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा रहा था।

बाद में बिहार में बने महागठबंधन से भी मुलायम सिंह सिर्फ इसीलिए बाहर हो गए, क्योंकि अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव यही चाहते थे। उस समय भी शिवपाल यादव की इच्छा महागठबंधन में शामिल होने की थी। उसे पूरा करने के लिए वे पटना में महागठबंधन की रैली में शामिल भी हुए थे और सोनिया गांधी के साथ मंच साझा किया था, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने वही किया, जो अखिलेश और रामगोपाल चाहते थे।

दरअसल अखिलेश यादव की विकास यात्रा की सफलता को देखते हुए मुलायम सिह ने अपना इरादा बदल लिया। उसके पहले वे शिवपाल का पक्ष ले रहे थे और अखिलेश यादव को लगातार नीचा दिखा रहे थे। अखिलेश का समर्थन करने वाले रामगोपाल यादव को उन्होंने पार्टी से निकाल दिया था। उनकी सहमति से शिवपाल यादव ने अखिलेश से जुड़े अनेक नेताओं को पार्टी से निकाल दिया।

पर अब रामगोपाल भी पार्टी में वापस ले लिए गए हैं। वे न सिर्फ पार्टी में वापस लिए गए हैं, बल्कि उनका पुराना रुतबा भी उन्हें वापस मिल गया है। वे पार्टी के महासचिव एक बार फिर बना दिए हैं और राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसदों के नेता भी वे बने रहेंगे।

आगरा से लखनऊ तक के एक्सप्रेसवे के उद्घाटन समारोह में भी अखिलेश ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया। उस समारोह में रामगोपाल तो थे, अमर सिंह को नहीं बुुलाया गया था। गौरतलब हो कि अखिलेश को फटकार लगाते हुए मुलायम ने अमर को पार्टी का महासचिव नियुक्त कर दिया था। उस समारोह से पता चलता है कि पार्टी के अंदर अमर सिंह के कद को छोटा करने में अखिलेश यादव सफल हो गए हैं।

अखिलेश के जिन समर्थकों को पार्टी से निकाल दिया गया है, उनसे भी मुलायम सिंह ने मुलाकात की और उन लोगों ने लिखकर मुलायम से माफी मांगी। गौरतलब हो कि उन नेताओं को निकालते हुए शिवपाल ने कहा था कि उन्होंने नेता जी (मुलायम सिंह) के खिलाफ नारेबाजी की थी।
कभी अखिलेश की खिंचाई करने वाले मुलायम अब अखिलेश की सरकार की बहुत प्रशंसा कर रहे हैं। उन्होंने देश का सबसे बड़ा एक्सप्रेसवे रिकार्ड समय में बनाने के लिए मुख्यमंत्री की बहुत प्रशंसा की।

यानी प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर भी अखिलेश का रुतबा बहुत बढ़ गया है और पारिवारिक कलह में वे बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आ गए हैं। (संवाद)