सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि संसद में उनके दल के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव इस नोटबंदी का जमकर विरोध कर रहे हैं। उन्होंने प्रेस बयान जारी कर नोटबंदी के उस फैसले को ही गलत करार दिया है और विपक्षी नेताअें द्वारा इसके खिलाफ की जारी रही सभी कार्रवाई में कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। वे नोटबंदी के इस निर्णय के लिए नरेन्द्र मोदी की मशा पर सीधे सवाल खड़े कर रहे हैं। उनकी पार्टी के एक अन्य नेता केसी त्यागी वैसे तो नोटबंदी के पक्ष में बोलते हैं, लेकिन कभी कभी बिना तैयारी के लिए यह फैसला करनेे पर आलोचना भी कर देते हैं। वैसे केसी त्यागी अंततः वही करेंगे, जो नीतीश कुमार उन्हें करने के लिए कहेंगे। और नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि वे नोटबंदी के मसले पर पूरी तरह सरकार के साथ हैं और वे यह भी सवाल उठाने को तैयार नहीं कि बिना तैयारी किए इस फैसले को लागू करने की जल्दबाजी केन्द्र सरकार ने क्यों दिखाई?

आखिर नीतीश चाहते क्या हैं? इस मसले पर बिहार के सत्ताारूढ़ गठबंधन के दो अन्य घटक- कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल- पूरी तरह के केन्द्र सरकार के खिलाफ खड़ी हो गई है और कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष तो नीतीश सरकार से बाहर आने की तत्परता भी दिखा रहे हैं। लालू यादव भी नीतीश के इस कदम से खुश नहीं हैं, लेकिन नीतीश को इन सबकी कोई परवाह नहीं है।

इसका एक कारण यह हो सकता है कि नीतीश कुमार अब भारतीय जनता पार्टी से अपने रिश्ते ठीक करना चाहते हैं। वे पहले भी भारतीय जनता पार्टी के साथ थे, लेकिन प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के कारण वे नरेन्द्र मोदी का विरोध करते हुए भाजपा से अलग हो गए। लेकिन लालू के समर्थन से एक बार फिर बिहार की सत्ता में हैं, लेकिन लालू के समर्थन से सरकार चलाने के बाद उनकी वह चमक गायब है, जो कभी भाजपा के साथ सरकार चलाते समय उनके चेहरे पर हुआ करती थी।

इधर लालू यादव का उनपर दबाव रहता है और उस दबाव के कारण वे कुछ ऐसे निर्णय अपनी सरकार में हो जाने देते हैं, जो उनकी इच्छा के खिलाफ होता है। लेकिन अब वे लालू के दबाव से धीरे धीरे निकलने की केाशिश कर रहे हैं। कहा जाता है कि शहाबुद्दीन की जमानत इसीलिए हो पाई थी, क्योंकि राज्य सरकार ने उनकी जमानत अर्जी का सही ढ़ग से विरोध ही नहीं किया था। लेकिन बहुत आलोचना होने और खुद शहाबुद्दीन द्वारा चुनौती दिए जाने के बाद नीतीश अपने रौ में आ गए हैं। शहाबुद्दीन को उन्होंने फिर जेल तो भिजवाया ही, उसक अलावा भी अब वे निर्णयों मे लालू यादव के दबाव में पहले की तरह नहीं आ रहे।

इसी बीच नोटबंदी के मसले पर उन्हें लालू से और दूरी बनाने का मौका मिल गया है और भाजपा के साथ बिगड़े संबंधों को ठीक करने का मौका भी मिल गया है। यदि नीतीश लालू और कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा के साथ आ जाएं, तब भी वे बिहार के मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं, क्योंकि उनके जनता दल(यू) और भाजपा के विधायकों की सम्मिलित संख्या 124 हो जाती है, जो बहुमत से ज्यादा है। भाजपा के तीन सहयोगी दलों के पास भी 5 विधायक हैं।

नीतीश फिलहाल भाजपा का साथ तो नहीं जाना चाहेंगे, लेकिन वे उसे विकल्प के रूप में दिखाकर लालू की ओर से पड़ने वाले दबाव का सामना तो कर ही सकते हैं। नोटबंदी पर उनका जो रुख है, उसे इसी रूप में देखा जाना चाहिए। नीतीश को पता है कि उनके पास भाजपा से जुड़ने का विकल्प है, लेकिन लालू के पास वह विकल्प भी नहीं है, हालांकि कुछ महीने पहले चर्चा हो रही थी कि लालू भी भाजपा से अपना संबंध बेहतर कर रहे हैं।

नोटबंदी के मसले पर नीतीश कुमार ने अपने समर्थन को और कड़ा करते हुए इसके खिलाफ किए जाने वाले किसी बंद में शामिल होने से भी मना कर दिया। उनके दल के बिहार के कुछ नेता शरद यादव की तर्ज पर नोटबंदी का विरोध कर रहे थे और बंद में शामिल होने की बात भी कर रहे थे, लेकिन बैठक बुलाकर नीतीश ने साफ कर दिया है कि उनका दल विरोध में शामिल नहीं होगा। इसके कारण पार्टी के अंदर कुछ असंतोष भी है, लेकिन नीतीश न केवल मुख्यमंत्री हैं, बल्कि अपने दल के अध्यक्ष भी हैं। इसके कारण न केवल सरकार पर, बल्कि पार्टी पर भी उनका पूरा कब्जा है।

नोटबंदी का समर्थन कर नीतीश अपने आपको नैतिकता के ऊंचे धरातल पर भी खड़ा कर चुके हैं और उन लोगों के साथ अपनी पहचान मजबूत कर चुके हैं, जो भ्रष्टाचार और कालाधन मिटाने के किसी मुहिम में कुर्बानी देने को तैयार हैं।

नीतीश का एक आकलन यह भी हो सकता है कि मोदी सरकार नोटबंदी के बाद काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ और कोई मुहिम नहीं चलाएगी। वैसी हालत में नीतीश नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व को भी अपने सामने बौना करने की कोशिश करेंगे। वे अभी से कह रहे हैं कि सरकार को बेनामी संपत्ति के खिलाफ मुहिम चलानी चाहिए। प्रधानमंत्री भी वैसा करने का वायदा कर रहे हैं, लेकिन पिछले ढाई साल के उनके कार्यकाल में तो यही दिखाई दे रहा है कि वे बडे बड़े लोगों से सीधे टकराने में बच रहे हैं। भ्रष्टाचार के मसले पर उन्होंने अबतक न तो किसी बड़ै राजनेता के खिलाफ और न ही किसी बड़े पूंजीपति के खिलाफ कोई कारर्वाई की है। यदि मोदी ने उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, तो नीतीश उन पर हमले तेज कर सकते हैं। इस तरह वे लालू यादव और नरेन्द्र मोदी दोनों पर एक साथ दबाव बनाए रख सकते हैं। (संवाद)