नरेन्द्र मोदी के काला धन और भ्रष्टाचार समाप्त करने के इरादे से किसी को इनकार नहीं हो सकता है, लेकिन उनके इस कदम ने अर्थव्यवस्था में 86 फीसदी मुद्रा के चलन को एकाएक समाप्त कर लोगों के सामने कैश की समस्या पैदा कर दी है। गरीब लोगों के सामने तो अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
कुछ समय के बाद हमें यह भी पता चल जाएगा कि जिस घोषित उद्देश्य से यह सब किया गया, वह उद्देश्य हासिल हुआ भी या नहीं। अभी तो यही लग रहा है कि काले धन और भ्रष्टाचार पर इसका नाममात्र का असर पड़ने वाला है। इसीलिए यदि मोदी सरकार को काले धन के मोर्चे पर सफल होता दिखाई देना है, उसे एक के बाद एक कई कदम उठाने पड़ेगे और वैसा करते समय उनके दुष्परिणामों को भी स्वीकार करना पड़ेगा।
नरेन्द्र मोदी ने अच्छे दिन के वायदे किए थे, लेकिन उन्होंने पिछले दिनों जो किया है, उससे तो लोगों की आर्थिक कठिनाइयां और भी बढ़ गई हैं। मोदी सरकार के तीसरे साल मे लोग और भी बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हो रहे हैं।
विमुद्रीकरण के इस निर्णय को उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। चुनाव तो कुछ अन्य राज्यों में भी हो रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी के लिए कुछ खास मायने रखता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी जीत की संभावना को बनाये रखने के लिए मोदी के लिए 2017 का उत्तर प्रदेश चुनाव जीतना जरूरी है।
यदि चुनाव के लिए यह कदम उठाना ही था, तब भी मोदी को यह तो ध्यान रखना ही चाहिए था कि लोगों को इससे कम से कम परेशानी हो। उन्हें अर्थशास्त्रियों समेत कुछ अपने विश्वस्त लोगों से ही राय मशविरा करनी चाहिए थी कि इस कदम के साथ साथ और क्या कदम उठाए जाएं, जिनसे लोगों की परेशानियों को न्यूनतम किया जा सके।
यदि वे विशेषज्ञों से बात करते तो उन्हें पता चलता कि इस कदम को किस तरह उठाया जाय और क्या रणनीति अपनाई जाय, जिससे लोगों को बाजार में खरीद बिकी करने में परेशानी नहीं हो और कदम उठाने के पहले देख लिया जाता कि कितना नया करेंसी भारतीय रिजर्व बैंक के पास है।
नरेन्द्र मोदी के इस निर्णय से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी अवगत नहीं थे, इसका पता गवर्नर के प्रायोजित इंटरव्यू से लगता है, जिसमें गवर्नर उर्जित पटेल कह रहे हैं कि विमुद्रीकरण के लिए विशाल लाॅजिस्टिक्स की जरूरत पड़ती है और भारतीय रिजर्व बैंक ईमानदार लोगों के दर्द को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। उस इंटरव्यू में इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया कि स्थिति सामान्य होने में कितना वक्त लगेगा। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि स्थिति धीरे धीरे ठीक हो रही है।
वाणिज्य और व्यवसाय के तबाह हो जाने पर पूछे एक सवाल के जवाब में गर्वनर ने कहा कि एक झटके में 86 फीसदी करेंसी को बाजार से हटा लेना बहुत ही दुर्लभ काम होता है। उसके बाद उन्होंने यह बताना शुरू कर दिया कि स्थिति से निबटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक क्या क्या कर रहा है।
मोदी कह रहे हैं कि 50 दिनों में सबकुछ सामान्य हो जाएगा, लेकिन सच यह है कि स्थिति सामान्य होने में महीनों लग जाएंगे। जितनी करेंसी अवैध घोषित कर दी गई है, उतनी करेंसी बाजार में जबतक नहीं जा जाती, तबतक समस्या बनी रहेगी। (संवाद)
नुकसान को कम करने की मोदी की कोशिश
आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई है
एस सेतुरमन - 2016-11-29 14:26
1975 के आपातकाल के अलावा और कभी हमारे देश में वैसी स्थिति पैदा नहीं हुई थी, जैसी आज है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विमुद्रीकरण के निर्णय ने चैतरफा अशांति की स्थिति पैदा कर दी है और चारों तरफ तबाही ही तबाही देखी जा सकता है। इस निर्णय से न तो रोजगार का सृजन होने वाला है और न ही इससे समानता आने वाली है।