मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री के रूप पहले यह कीर्तिमान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नाम था। 7 दिसंबर 1993 से 7 दिसंबर 2003 तक मुख्यमंत्री के पद रहते हुए प्रदेश में 10 साल एक दिन का शासन दिग्विजय सिंह ने किया था। कांग्रेसी एवं गैर कांग्रेसी किसी भी मुख्यमंत्री ने अब तक इतने लंबे समय के लिए मुख्यमंत्री के पद पर नहीं रह पाए थे। यहां तक कि कोई गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने 5 साल तक का कार्यकाल अलग-अलग समय में मुख्यमंत्री रहते हुए भी पूरा नहीं किया था। 29 नवंबर 2005 को बाबूलाल गौर के बाद मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने नया रिकॉर्ड बना दिया है।
शिवराज सिंह चौहान ने अपने 11 साल के कार्यकाल की सफलता के पीछे अपने शासन काल में प्रदेश के विकास के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाओं का हाथ बताया है। 11 साल पूरे होने पर शिवराज सिंह ने कहा कि उन्होंने गरीब एवं कमजोर वर्ग के लिए कई योजनाएं बनाई है। महिलाओं के विकास के लिए गर्भ से लेकर उनकी शादी तक की कई योजनाएं प्रदेश में लागू है। लाडली लक्ष्मी योजना को प्रदेश में लागू करना उनके पसंदीदा कामों में से एक रहा है। उन्होंने बताया कि 11 साल के कार्यकाल में व्यापमं, डंपर और अन्य मामलों के बावजूद कभी नहीं लगा कि उनकी कुर्सी खतरे में हैं। वे आगामी सालों में नमामि देवी नर्मदे योजना पर ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं। इसमें नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर सघन पौधारोपण की योजना है। वे सभी वर्ग के गरीब बच्चों को मुफ्त उच्च शिक्षा देने और प्रदेश के बेघरों को कानून बनाकर घर उपलब्ध कराने की योजना पर अमल करने की बात कर रहे हैं।
दिग्विजय सिंह के 10 साल के लंबे कार्यकाल के बाद सत्ता में वापस लौटी भाजपा ने सुश्री उमा भारती को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। कुछ महीने बाद ही उन्होंने एक न्यायालयीन मामले में इस्तीफा दे दिया, तब मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल गौर ने पद संभाला। उस समय तक किसी ने यह नहीं सोचा था कि वरिष्ठ नेताओं की कतार में पीछे रहे शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। नवंबर 2005 में एक जोरदार राजनीतिक हंगामे के बीच तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाने के बावजूद किसी को यह भरोसा नहीं था कि वह उस पद पर साल-दो साल भी टिक पाएंगे। उन्हें कमजोर प्रशासनिक पकड़ वाले एवं राजनीतिक विरोधियों से घिरे मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन बहुत ही धीमी गति से संभल-संभल कर आगे बढ़ते हुए उन्होंने सरकार एवं पार्टी में अपना कद बहुत बड़ा कर लिया। स्थिति यह बन गई कि 2008 में ‘‘फिर भाजपा, फिर शिवराज’’ के नारे के साथ भाजपा को विधान सभा चुनाव में जाना पड़ा। भाजपा ने इस चुनाव में अनुमान से ज्यादा सीटें हासिल की, जिसे शिवराज की जीत बताया गया। तब यह तय हो गया था कि चैहान प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री होंगे, जो 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे।
2008 में भी भाजपा की जीत के बावजूद किसी ने अनुमान नहीं लगाया था कि वे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बन जाएंगे, जिनका कार्यकाल सबसे ज्यादा समय का होगा। 2013 के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा ने षिवराज को आगे करके चुनाव में जीत हासिल की और मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज बरकरार रहे। अब राजनीकि प्रेक्षक यह अनुमान लगा रहे हैं कि प्रदेश में विपक्षियों के लगातार कमजोर पड़ते जाने के कारण शिवराज को निकट भविष्य में कोई राजनीतिक नुकसान की संभावनाएं नहीं दिखाई दे रही है। (संवाद)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ने पूरा किया 11 साल का कार्यकाल
विशेष संवाददाता - 2016-11-29 14:31
मध्यप्रदेश की राजनीतिक उठापठक को झेलते हुए शिवराज सिंह चौहान 11 साल तक मुख्यमंत्री के पद पर रहने का कीर्तिमान बना चुके हैं। 29 नवंबर, 2015 के पहले के कुछ महीने शिवराज के लिए बहुत ही मुश्किल भरे थे, जब व्यापमं का मामला जोरों पर था और मुख्यमंत्री पद से उनकी विदाई के कयास तेज थे। केन्द्र में भेजे जाने से लेकर संगठन में दायित्व दिए जाने तक की चर्चाएं राजनीतिक गलियारे में थी। पर शिवराज न तो तब हटाए गए और न ही अब। अब तो यह कयास लगाया जाने लगा है कि इनके मुख्यमंत्री के रूप में लंबे कार्यकाल को शायद ही कोई तोड़ पाए।