उस घोषणा के बाद संसद में उस पर चर्चा तो होनी ही थी, लेकिन घोषणा के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों से निबटने की तैयारी न तो सरकार ने की थी और न ही भारतीय रिजर्व बैंक ने। देश की बैंकिंग व्यवस्था उत्पन्न होने वाली स्थितियों का सामना करने के लिए कतई तैयार नहीं थी।

सरकार में शामिल लोगों को पता था कि संसद का यह सत्र हंगामेदार होगा। इसलिए उन लोगों ने इसके लिए पहले से ही तैयारी कर रखी थी। पहले उसने विपक्ष को भरोसे में लेने की कोशिश की और संसद का सत्र शुरू होने के पहले एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की।

सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मीडिया से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस बार सदन में बहुत अच्छी बहस होगी। सभी पार्टियां इस बहस में बहुत अच्छा योगदान करेंगी। उन्होंने कहा कि सभी पार्टियों को साथ लेकर चलने के सारे प्रयास किए जाएंगे ताकि सरकारी काम सफलतापूर्वक हो सके।

लेकिन सरकार की उस घोषणा के बावजूद संसद का सत्र चल नहीं रहा है और रोजाना हंगामे के साथ अगले दिन के लिए निलंबित हो जाता है।

इस सत्र में सरकार को अनेक विधेयक पास कराने हैं। उनमें एक भ्रष्टाचार से संबंधित विधेयक भी है। यह विधेयक 2013 से संसद में लंबित पड़ा हुआ है। 2015 का व्हिसिल ब्लोअर बिल भी पास कराना है और मैटरनिटी बेनफिट बिल भी पास करवाना है। जीएसटी से संबंधित अनेक विधेयकों को भी पास करवाना जरूरी है। जीएसटी के लिए कराधान का एक चार स्तरीय स्लैब तैयार किया गया है, उसे भी संसद से पारित करवाना है, क्योंकि आगामी 1 अप्रैल से ही जीएसटी को अमल में लाने की घोषणा सरकार कर चुकी है।

विधेयकों को पास कराने के अलावा अन्य अनेक ऐसे मसले हैं, जिनपर संसद में बहस होनी है। उनमें आतंकवादी हमले से लेकर कश्मीर की अशांति भी शामिल है। उरी हमले के बाद सेना ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया था। उस पर भी बहस होना था। इन सबके अलावा एक पद एक पेंशन पर भी चर्चा की उम्मीद की जा रही थी।

यही कारण है कि संसद को काम करना चाहिए था। वैसे भी साल भर में सिर्फ 100 दिन ही सदन बैठता है।संसद को चलाने के लिए सालाना 600 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। प्रति मिनट सदन चलाने का खर्च साढ़े चार लाख रुपये आता है। इतने खर्च होने के बावजूद यदि सदन नहीं चले, तो इसे उचित नहीं माना जाएगा।

सवाल उठता है कि विपक्ष सदन को चलने क्यों नहीं दे रहा है? कुछ लोग कहते हैं कि विपक्ष की चिंता वाजिब है और कुछ लोग कहते हैं कि खबर में आने के लिए वे सब वैसा कर रहे हैं। सदन की कार्यवाही का सीधे प्रसारण होता है। कहा जाता है कि उसके कारण भी सदन में हंगामा होता है, क्योंकि जनप्रतिनिधि अपने अपने क्षेत्र को यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे संसद में बहुत सक्रिय हैं।

यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। जब कांग्रेस की सरकार थी, तो भारतीय जनता पार्टी सरकार नहीं चलने देती थी। अब भाजपा सरकार में है और कांग्रेस विपक्ष में है। कांग्रेस अब वही कर रही है, जो विपक्ष में रहते हुए भाजपा किया करती थी। लेकिन इस सबसे देश का ही नुकसान होता है। (संवाद)