उनकी गलती यह है कि उन्होंने विभाजन के बाद भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में बसना पसंद किया, क्योंकि जहां वे पहले रह रहे थे, वहां से वह जगह ज्यादा नजदीक थी। जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है और उसके तहत उसका अपना संविधान है। वह संविधान बाहरियों को वहां की नागरिकता प्रदान नहीं करता। भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती है।
विडंबना देखिए। ये लोग लोकसभा के लिए तो मतदान कर सकते हैं, लेकिन विधानसभा के लिए मतदान नहीं कर सकते हैं, जबकि वे जम्मू और कश्मीर राज्य में रहते हैं और वहां की व्यवस्था उन पर लागू होती है। उनका अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलती। जैसे 10वीं के बाद उन्हें छात्रवृति नहीं मिलती। नरेन्द्र मोदी सरकार ने पिछले दिनो इन शरणार्थियो ंके लिए कुछ रियायतों की घोषणा की। उनमें से एक अद्र्ध सैनिक बलों में उनकी नियुक्ति के लिए विशेष अभियान चलाने की थी। प्रदेश में उन्हें नियुक्ति में बराबर का हक मिले इसके लिए भी एक घोषणा हुई। उनके बच्चों को केन्द्रीय विद्यालयों मंे नामांकन के भी कुछ प्रावधान किए गए।
लेकिन शिकायत यह है कि ये रियायतें और सुविधाएं उन्हें मिल नहीं रही हैं, बल्कि सिर्फ सरकारी घोषणाओं तक ही सीमित हैं। उनके खिलाफ भारी भेदभाव होता है। पिछले दिनों केन्द्र की मोदी सरकार ने उनके लिए 2000 करोड़ रुपये का विकास पैकेज दिया और उसके बाद उनके बारे में मीडिया में कुछ खबर आई।
दो लाख आबादी वाले इन लोगों के परिवारों की संख्या 36,384 है और वे जम्मू के अलग अलग इलाकों में बिखरे हुए हैं। कठुआ और राजौरी क्षत्र में उनकी संख्या ज्यादा है।
सवाल सिर्फ सहायता या विकास पैकेज का नहीं हैं। उन्हें पूर्ण नागरिकता मिलनी चाहिए। बिना पूर्ण नागरिकता मिले वे गर्व के साथ भारतीय के रूप में नहीं रह पा रहे हैं। उनके मानवाधिकारो का खुला उल्लंघन हो रहा है। 6 दशक बीतने के बाद भी उनको नागरिक अधिकार पूरी तौर पर मिल नहीं पा रहे।
वे जम्मू और कश्मीर में रह रहे हैं। 60 साल से कम उम्र के लोग तो पैदा ही भारत में हुए हैं और उनका प्रांत जम्मू और कश्मीर है। लेकिन फिर भी उन्हें जम्मू ओर कश्मीर की प्रजा क्यों नहंी माना जा रहा है?
भारतीय जनता पार्टी और उसका पहला अवतार जनसंघ उनके हितों कीब ात करती रही हैं। अब तो उसी की केन्द्र में सरकार है। इस समय उनको न्याय नहीं मिलेगा, तो फिर कब मिलेगा? (संवाद)
जम्मू और कश्मीर के दो लाख हिन्दू देशविहीन
प्रधानमंत्री का विकास पैकेज नाकाफी
देवसागर सिंह - 2016-12-03 14:09
यह बहुत ही दुख की बात है कि पिछले 6 दशकों से जम्मू और कश्मीर में रह रहे 2 लाख लोग तकनीकी तौर पर अभी किसी भी देश के नहीं हैं। वे किसी भी देश के नागरिक नहीं हैं। भारत ने उन्हें अभी तक पूर्ण नागरिकता नहीं दी है। उनमें से अधिकांश हिन्दू हैं। ये वो लोग हैं, जो 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आ गए थे। उनमें से ज्यादातर लोग तो पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर के ही हैं।