वर्तमान मुद्रा संकट के दो ही उपाय हैं। एक उपाय तो यह है कि जल्द से जल्द और ज्यादा से ज्यादा नये नोटों की छपाई हो। लेकिन छपाई की भी सीमा है। देश के चार पिं्रटिंग प्रेस हैं, जहां रुपया छपता है। वहां चैबिसों घंटें छपाई का काम चल रहा है, लेकिन वहां से जो नोट छपकर आ रहे हैं, वे मांग के सामने ठहर नहीं पाते और संकट को समाप्त नहीं कर पाते। फिर भी जितने ज्यादा नोट छापे जा सकते हैं, उतने छापे जाने चाहिए।

दूसरा उपाय भुगतान में नोटों पर निर्भरता को कम करना है। इसकी आवश्यकता आज मुद्रा संकट के इस दौर में बहुत ही शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है। कैश के अभाव के कारण बिना कैश का भुगतान कुछ तो बढ़ा ही है। जैसे चेक से भुगतान कुछ बढ़ गया है। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और रुपे कार्ड से भी भुगतान बढ़ा है। नेट बैंकिंग में भी कुछ इजाफा हुआ है। पेटीएम जैसे मोबाइल बैलेट का इस्तेमाल भी लोग कर रहे हैं। लेकिन इस तरह का इस्तेमाल वे ही लोग कर रहे हैं, जिनके पास पहले से ये सब मोजूद थे और जिन्हें इसके इस्तेमाल की जानकारी थी। पर हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ही सीमित है। उनके द्वारा कैशविहीन भुगतान की ओर बढ़ने के बावजूद मुद्रा का यह संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा।

यदि केन्द्र सरकार ने नोटबंदी के पहले ही कैशलेस विनिमय और भुगतान के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर लिया होता और ज्यादा से ज्यादा लोगों को विनिमय के इस तरीके के इस्तेमाल से अवगत करा दिया होता, तो वह अफरातफरी देखने को नहीं मिलती, जो हम आज देख रहे हैं। क्रयशक्ति समाप्त होने और कम होने के कारण लोगों को परेशानियां तो हो रही हैं, अनेक आर्थिक गतिविधियां ठिठक सी गई हैं। जहां काम होता था, उनमें से अनेक जगहों पर काम ठप है, क्योकि कामगार को भुगतान करने के लिए कैश नहीं है और कामगार भूखा सोने के लिए बाध्य हो रहा है।

किसान परेशान है। वे बुआई करने में अपने आपको अक्षम पा रहा है। जाहिर है, इसका असर खेती के उत्पादन पर पड़ेगा और इसके कारण किसानों की बदहाली और बढ़ेगी। किसान ही नहीं खेतो मे काम करने वाले मजदूर भी बेहाल होंगे। क्रयशक्ति के अभाव में व्यवसायी परेशान हैं। बाजार मेेेेे या तो बंदी का माहौल है अथवा अनेक काम बंद हो गए हैं। उपभोक्ताओं की कमी तो बाजार में हो ही गई है, व्यवसायियों के पास भी वैध रकम का अभाव है, जिसके कारण उनके पास माल की आपूर्ति बाधित हो रही है।

सबसे खतरनाक तो यह है कि उत्पादन और व्यापार की श्रृंखला ही टूट रही है। एक बार पर्याप्त कैश बाजार में आ जाने और कैशलेस विनिमय की व्यवस्था स्थापित हो जाने के बाद भी उत्पादनए व्यापार और आपूर्ति का चेन बनाने में समय लगेगा। संक्रमण का यह फेज लोगों पर भारी पड़ेगा।

देर से ही सही, सरकार को अहसास तो हुआ कि कैशलेस विनिमय भी एक माध्यम हो सकता है, जिसके कारण विमुद्रीकरण से उपस्थित समस्या का हल निकाला जा सकता है। सरकार इसके लिए कोशिश कर रही है। हालांकि इस कोशिश को आग लगने के बाद कुआं खोदने की कोशिश ही कही जा सकती है। कुआं खोदने से आग नहीं बुझती, क्योंकि कुएं में पानी आने में भी समय लगता है। यही हम कैश संकट के दौर मे कैशलेस विनिमय के लिए की जा रही कोशिशों को कह सकते हैं।

यानी नुकसान जो होना है, वह होकर रहेगा और नुकसान चैतरफा होगा। अर्थव्यवस्था का लगभग हरेक अंग, शायद बैंकों को छोड़कर, इस नोटबंदी से प्रभावित होने वाला है। कुछ राज्यो मे कर्मचारियों को तनख्वाह मिलने में भी दिक्कत हो सकती है। अनेक कंपनियों द्वारा अपने कर्मचारियों को भुगतान करने में भी दिक्कत हो रही है। संगठित क्षेत्र में तो चेक या अकाउंट ट्रांसफर द्वारा कर्मचारियों को भुगतान हो भी रहा है और समस्या भुगतान होने के बाद हो रही है, जहां कर्मचारी छुट्टी लेकर अपने खाते से कैश निकालने के लिए कतार में लग जाते हैं, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है, क्योंकि वहां आमतौर पर भुगतान कैश से होता है। यदि चेक जारी भी कर दिया जाय, तो अनेक कामगारों के पास अपना खाता ही नहीं है, जिसमें चेक जमा करके वे उसे कैश करा सकें।

इसलिए कैशलेस विनिमय की यह मुहिम नोटबंदी की मार से त्रस्त लोगों को फिलहाल कोई राहत नहीं देने वाली, लेकिन जब इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हो जाएगा और लोग कैशलेस विनिमय करना सीख जाएंगे, तो इसका बहुत फायदा होगा। इससे हमारे नीति निर्माताओ को फायदा होगा और बाजार की सही जानकारी प्राप्त कर वे नीतियों को सही दिशा में दे सकते हैं। इससे बाजार को भी फायदा होगा, क्योंकि कैशलेस विनिमय कैश विनिमय से ज्यादा आसान और सस्ता होता है और इसमें समय की भी बचत होती है। इससे सरकार के खजाने को भी फायदा होगा, क्योंकि टैक्स से बचना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि विनिमय के रिकार्ड सरकार को आसानी से हासिल हो जाएगा। इसके कारण समाज में अपराध की दर भी कम हो सकती है, हांलांकि एक दूसरे प्रकार के अपराध के बढ़ने की आशंका है, जिसका हल बेहतर टेक्नालाॅजी से ही निकाला जा सकता है। कैशलेस व्यवस्था मे भ्रष्टाचार भी कम हो जाएगा, क्योंकि भ्रष्ट व्यक्ति कैशलेस भुगतान, जिसका रिकार्ड दर्ज हो जाता है, से बचना चाहेगा। इसलिए आग लगने की हालत में भी कुआं खोदने में कोई बुराई नहीं है। (संवाद)