झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख विधानसभा में विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने उन कानूनों मे संशोधन के खिलाफ अंतिम दम तक आंदोलन करने का फैसला किया है और इसके तहत वे प्रदेश भर में तीन दिनों का शुरुआती आंदोलन करने जा रहे हैं। आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन सत्तारूढ़ भाजपा का सहयोगी संगठन है। उसने कहा है कि सरकार के उस प्रस्तावित संशोधन को उसका समर्थन नहीं हासिल है। उन्होंने कहा कि उनके विधायक दल की बैठक में उस पर पार्टी की रणनीति तैयार करने के लिए फैसला किया जाएगा।
जिस तरह से रघुबर सरकार भूस्वामित्व के मुद्दे पर निर्णय ले रही है और उसपर जिस तरह की प्रतिक्रिया हो रही है, उससे तो यही लगता है कि सरकार पर यह निर्णय भारी पड़ेगा। विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी का कहना है कि सरकारी अपनी बात पर अड़ी हुई है और उसे जनभावना की परवाह नहीं है।
अंग्रेज के जमाने से ही दो कानून बने हुए हैं, जो आदिवासी, दलित और ओबीसी के लोगों की जमीन की बिक जाने से रक्षा करते हैं। प्रदेश में आदिवासियों की संख्या 26 फीसदी है और यदि उनमें दलित और ओबीसी को जोड़ दिया जाय, तो वे 90 फीसदी तक हो जाती है। वैसे यह कानून वहां के स्थानीय लोगों की जमीन बिक्री को ही नियंत्रित करता है, लेकिन ऐसे लोगों की आबादी भी 75 फीसदी से ज्यादा ही होगी।
एक कानून का नाम छोटानागपुर भूस्वामित्व कानून और और दूसरे कानून का नाम संथाल परगना भूस्वामित्व कानून है। ये कानून अंग्रेजो के समय ही 1908 में बने थे। उस समय यह बंगाल प्रदेश का हिस्सा था। 1912 में बिहार का निर्माण हुआ और झारखंड बनने तक छोटानागपुर और संथालपरगना बिहार का ही हिस्सा था। इस दौरान इस कानून से छेड़छाड़ नहीं की गई। लेकिन झारखंड बनने के बाद ही इन कानूनों को नगर लगने लगी।
जनजातीय सलाह परिषद की बैठक मेें झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्यों ने इन दोनों कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव का विरोध किया, लेकिन उनके विरोध के बावजूद परिषद में वह पारित हो गया। परिषद की बैठक की अध्यक्षता खुद मुख्यमंत्री रघुबर दास कर रहे थे। संशोधन पास होने के विरोध में झामुमो के दीपक बरुआ और जोबा मांझी ने परिषद से इस्तीफा दे दिया। गौरतलब है कि उनके इस्तीफा के पहले परिषद मे 19 सदस्य थे।
जाहिर है कि भाजपा की सरकार झारखंड में भूमि संरक्षण कानूनों को कमजोर करने पर आमादा है। ऐसा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। कानूनों के कमजोर करने के बाद स्थानीय लोगों की जमीन बाहरी उद्योगपतियों के हाथों में बेचा जाना आसान हो जाएगा।
इस संशोधन को विधानसभा के शरदकालीन सत्र में सदन में पेश किया जाएगा, हालांकि इन संशोधनों को पास कर कानूनों मे बदलाव का अधिकार विधानसभा को भी नहीं है। इस बीच आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा कि उन कानूनों में किसी प्रकार का बदलाव उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा। वे सरकार की स्थानीयता की नीति के भी खिलाफ हैं। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    झारखंड मे जमीन अधिकरण के खतरे
मुख्यमंत्री भूमि अधिकार कानून में बदलाव के लिए आतुर
        
        
              अरुण श्रीवास्तव                 -                          2016-12-06 13:57
                                                
            
                                            रांचीः झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्यों ने जनजातीय सलाहकार परिषद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इस्तीफा लगभग 100 साल पुरान भूमि अधिकार कानूनों को संशोधित करने की ओर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम के खिलाफ दिया है। विपक्षी पार्टियां और जनजातीय समूहों ने राज्य सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमो के खिलाफ अपना आंदोलन और तेज करने का फैसला किया है।