इन्दिरा गांधी की तरह जयललिता भी तानाशाही के लिए जानी जाती थी और वे भ्रष्टाचार के आरोपों से भी मुक्त नहीं थीं। इसके बावजूद उनकी छवि एक ऐसी नेता की थी, जो गरीबों के लिए काम करती हो और जिसने अपना सारा जीवन ही कमजोर वर्गों के लिए हाजिर कर दिया हो। अपनी पार्टी की चुनावी सफलता के लिए उन्होंने गरीबों के हित में अनेक कार्यक्रम चलाए, जिनसे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता गया है।

इसलिए कहा जाता है कि उनके उत्तराधिकारियों को भी उनकी लोकप्रियतावादी नीतियों केा आगे बढ़ाते रहना होगा। हालांकि उन्हें इसका भी ख्याल रखना होगा कि मुफ्त की योजनाओं का लाभ उन्हें ही मिले, जो जरूरतमंद हैं। इसके साथ साथ उन्हें प्रदेश के औद्योगिक विकास पर भी ध्यान रखना होगा ओर इन्फाॅर्मेशन टेक्नालाॅजी को बढ़ावा मिलता रहे, इसकी भी फिक्र करनी होगी।

यानी उनके उत्तराधिकारी को गरीबों के हित में चलाई जा रही योजनाओं को भी जारी रखना होगा और प्रदेश के औद्योगिक विकास को भी तरजीह देनी होगी। दोंनो एक साथ सुनिश्चित करना कोई आसान काम नहीं है।

अभी मुख्यमंत्री के रूप में ओ पनीरसेल्वम ने शपथग्रहण किया है। पता नहीं वह कितने दिनों तक मुख्यमंत्री के पद पर रह पाएंगे। वह पहले भी दो बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं और उन्हें कहीं से कोई चुनौती नहीं मिल रही थी, पर दोनों बार वे जयललिता की पसंद थे और उनके सिर पर जयललिता का हाथ रहा करता था। इसलिए कोई उनके खिलाफ नहीं खड़ा हो सकता था।

पर अब स्थिति बदल गई है। अब जयललिता नहीं हैं। उनके खिलाफ कुछ लोग उठ खड़े हो सकते हैं। शशिकला नटराजन के बारे में कहा जा रहा है कि अभी तो उन्होंने पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया है, पर आने वाले दिनों में उनकी तरफ से ही मुख्यमंत्री को समस्या पैदा हो सकती है। उसके अलावा मुनिस्वामी थमीदुराई हैं। वे इस समय लोकसभा में डिपुटी स्पीकर हैं, लेकिन प्रदेश की राजनीति में पनीरसेल्वम को उनकी ओर से भी चुनौती मिल सकती है।

मुख्यमंत्री कितना सफल होते हैं, यह उनकी योग्यता पर निर्भर करेगा कि वह कितनी दक्षता के साथ सरकार चलाते हैं और किस समझदारी के साथ अपने प्रतिद्वंद्वियों को समस्या पैदा करने से दूर रखते हैं।

तमिलनाडु की राजनीति में अब जयललिता की पार्टी को डीएमके के स्टालिन का सामना करना होगा। करुणानिधि ने उनको अपना वारिस घोषित कर दिया है और उन्होंने पार्टी को संभाल भी लिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में करुणानिधि भले ही पार्टी का चेहरा रहे हों, लेकिन चुनाव तो स्टालिन ने ही लड़ा था। उस चुनाव में उनकी पार्टी केा 31 फीसदी से भी ज्यादा वोट आए और 89 सीटों पर जीत भी मिली।

अबतक तमिलनाडु में दो पार्टियों के बीच ही मुकाबला हुआ करता था, हालांकि अन्य पार्टियो का भी वहां अस्तित्व है। लेकिन जयललिता की मौत के बाद दो दलीय व्यवस्था अब समाप्त हो जाएगी, क्योंकि अन्नाएडीएमके अब पहले जैसा मजबूत नहीं रह पाएंगी। (संवाद)