जब उनके नेता एमजी रामचन्द्रन की मृत्यु दिसंबर 1987 में हुई थी, तो उस समय पार्टी में अफरातफरी का माहौल था। एमजीआर ने अपने उत्तराधिकारी के नाम का एलान नहीं किया था। अपने अंतिम दिनों में उन्होंने जयललिता से दूसरी बना ली थी। उनकी मौत के बाद पार्टी के एक प्रभावशाली नेता आर एम विरप्पन ने जयललिता को सत्ता संघर्ष से दूर रखने की कोशिश के क्रम में एमजीआर की पत्नी जानकीए जो खुद भी एक सिने कलाकार थी, को मुख्यमंत्री बना दिया था।

लेकिन वह सिर्फ 24 दिनों तक ही मुख्यमंत्री रह पाईं, क्योंकि विधानसभा में उनको बहुमत नहीं हासिल हो सका था। जयललिता ने पार्टी मे विभाजन करा दिया था, जिसके कारण जानकी सरकार विधानसभा मे पराजित हो गई है। उसके बाद 1989 में हुए चुनाव में जयललिता के गुट को 27 और जानकी के गुट को मात्र 2 सीटें ही मिल सकी थी। करारी हार के बाद जानकी राजनीति से बाहर हो गईं और जयललिता को विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद मिल गया।

1991 का चुनाव जयललिता के लिए नया जीवन हासिल करने वाला था। उस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन बना रखा था। मतदान के कुछ दिन पहले तमिलनाडु में ही राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। उसका लाभ कांग्रेस सहित जयललिता की पार्टी को भी मिला और वह मुख्यमंत्री हो गईं। 1996 में वह चुनाव हार गईं। वह खुद विघानसभा में भी चुनकर नहीं जा सकी थीं। उसके बाद वे फिर जीती और हारजीत का सिलसिला चलता रहा।

पिछले चुनाव में वे लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल कर मुख्यमंत्री बनी। उसके पहले हुए लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने ऐतिासिक जीत हासिल की और वह लोकसभा में कांग्रेस के बाद दूसरी बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई।

एमजीआर की तरह जयललिता ने भी पार्टी के अंदर अपने बाद किसी को दूसरा स्थान नहीं दिया। उन्होंने किसी को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित नहीं किया। शशिकला उनकी बहुत नजदीकी थीं। वह उनके साथ उनके ही घर पर रहा करती थीं। इसके कारण शशिकला ने उनके अंतिम दिनों मंे अस्पताल में उनका ख्याल रखने का जिम्मा संभाल रखा था। उस नजदीकी के कारण ही पार्टी के अंदर वह एक बड़ी सख्सियत बन गई है और उनके कारण ही सत्ता आसानी से पनीरसेल्वम के हाथों में आ गई है। अब पार्टी का नेतृत्व शशिकला के हाथ में आने की पूरी संभावना है और मुख्यमंत्री भी उनके इशारे पर चल सकते हैं।

लेकिन अन्नाडीएमके पर भारतीय जनता पार्टी की भी आंखें लगी हुई हैं। जया की मौत के बाद कांग्रेस के साथ साथ भाजपा भी वहां अपने लिए संभावना तलाश रही है और इस समय मुख्यमंत्री और शशिकला को अपने साथ रखने की कोशिश कर रही है।

सवाल उठता है कि क्या जया के बाद उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ आ खड़ी होगी और एनडीए में शामिल होना चाहेगी? इस सवाल का जवाब कुछ दिनों के बाद ही मिलेगा। सबसे पहला मौका जीएसटी का है। जयललिता इसका विरोध करती रही हैं और यदि उनकी पार्टी ने संसद में इसका समर्थन किया, तो माना जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने मंसूबे में सफल हो रही है। वैसे भी अगले साल राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है और उस चुनाव में अन्नाडीएमके के सांसदों और विधायकों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होगी। भाजपा को यदि उनका समर्थन मिल गया, तो उस अपनी पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाना आसान हो जाएगा। (संवाद)