इसी सिलसिले में कांग्रेस ने एक दलित घोषणा पत्र जारी किया। उसने यह भी घोषणा की कि यदि प्रदेश में कांग्रेस की शीला सरकार बनी, तो इस घोषणा पत्र को लागू किया जाएगा।

उस घोषणा पत्र में कांग्रेस ने दलितों के लिए मुफ्त शिक्षा और मुफ्त आवास का आश्वासन दिया है। गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश मे दलितों की संख्या 21 फीसदी है और सरकार के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

कांग्रेस ही नहीं, अन्य राजनैतिक पार्टियां भी दलितों को पटाने के लिए अपनी अपनी रणनीति बनाने मे जुटे हुए हैं।

उस घोषणा पत्र में कांग्रेस ने कहा है कि यदि उसकी सरकार प्रदेश में बनती है तो केजी से लेकर पीजी तक दलितों की पढ़ाई का पूरा खर्च सरकार वहन करेगी। उसके लिए छात्रों को सीधे भुगतान किए जाएंगे।
कांग्रेस ने 50 दिनों के एक अभियान की शुरुआत भी की है, जिसका नाम रखा गया है, ’’ शिक्षा, सुरक्षा और स्वाभिमान’’ यात्रा। यह यात्रा प्रदेश के 5000 गावों को छुएगी। ये 5000 गांव प्रदेश में सभी 85 आरक्षित सीटों में फैले हुए हैं।

दलित घोषणा पत्र में कांग्रेस ने वायदा किया है कि सभी 851 प्रखंडों में एक एक आवासीय विद्यालय दलित छात्रों के लिए खोला जाएगा।

दलितों की सुरक्षा के लिए कांग्रेस ने वायदा किया है कि प्रत्येक थानों में सुरक्षा मित्रों की नियुक्ति की जाएगी और ये सुरक्षा मित्र सीधे जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात एक केन्द्रीय अधिकारी को रिपार्ट करेंगे।

घोषणा पत्र में वायदा किया गया है कि विकास मित्रों की भी नियुक्ति की जाएगी, जो केन्द्र और राज्य सरकारो सरकरों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उठाने में दलितों को मदद करेंगे।

उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए दलित घोषणा पत्र में कहा गया है कि प्रत्येक दलित के सरकार निजी और सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए सहायता राशि देगी।

दलित युवकों को रोजगार देने के लिए कांग्रेस ने प्रत्येक दलित युवक को 3 लाख रुपये का बैंक ऋण मुहैया कराने का आश्वासन दिया है।

कांग्रेस आगामी 10 जनवरी को लखनऊ मंे एक दलित सम्मेलन का आयोजन करने जा रही है। उस सम्मेलन को राहुल गांधी भी संबोधित करेंगे। उनमें प्रदेश के सभी दलित नेता शिरकत करने वाले हैं। दलितों को प्रदेश भर से वहां लाया जाएगा। उसमें एक लखनऊ घोषणा का प्रस्ताव भी पारित होगा।

गौरतलब हो कि राहुल गांधी ने लखनऊ में आयोजित एक दलित कार्यशाला में भी शिरकत की थी। उसमें उन्होंने दलितों को भरोसा दिलाया था कि प्रत्येक गांव में दलित नेतृत्व को खड़ा किया जाएगा।

दलित 1989 तक कांग्रेस का वोट बैंक रहे है। लेकिन उसके बाद कांशीराम के नेतृत्व में वे बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने लगे और उसकी ताकत बढ़ती चली गई और कांग्रेस के हाथ से यह दलित वोट बैंक जाता रहा।

मायावती तीन बार भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी और फिर 2007 में अपने अकेले दम पर मुख्यमंत्री बन गईं। 2012 में वह समाजवादी पार्टी से पराजित हो गई और 2014 के लोकसभा में उसका एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया, क्योंकि पिछड़े वर्गों के लोगों ने नरेन्द्र मोदी के प्रभाव में उनका साथ छोड़ दिया और दलित के मत इतने नहीं थे कि वे बसपा उम्मीदवारों को जीत दिला दे।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस मायावती से दलितों को कैसे अपनी ओर खींचती है।(संवाद)