इस घोषणा के पहले सबकुछ गुप्त रखा गया था। कहा तो यहां तक गया कि वित्तमंत्री अरुण जेटली को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई थी। वित्त मंत्री क्या, अब तो यह भी कहा जा रहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को भी पहले से जानकारी नहीं थी, जबकि रुपया जारी करने का जिम्मा रिजर्व बंैक का ही होता है और देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण भी उसी का रहता है।
सबकुछ गुप्त रखे जाने को यह कहकर न्यायसंगत ठहराया गया कि प्रधानमंत्री नहीं चाहते थे कि काले धन के मालिकों को उनकी घोषणा की कोई भनक लगे और वे समय रहते अपने काले धन को सफेद बना ले। देश के लोगों को भी यही लगा कि नरेन्द्र मोदी ने पूरी ईमानदारी और सावधानी बरतते हुए सबकुछ किया और इस कदम के कारण खरबों खरब रुपये के काले धन मिट्टी में मिल जाएंगे और उसकी जगह नये नोट छाप कर सरकार या तो अपने खजाने में रख सकेगी अथवा उनमे से कुछ राशि शून्य बैलेंस वाले जनधन खातों में डलवा देगी।
विपक्ष आरोप लगाता रहता है कि चुनाव के पहले मोदीजी ने कहा था कि विदेशों से काला धन लाकर वे देश के सभी लोगों के खाते में 15-15 लाख रुपये डालेंगे। भाजपा के कार्यकत्र्ता यह बात सोशल मीडिया में फैला रहे थे कि नोटबंदी की इस घोषणा के कारण बर्बाद हुए काले धन के बराबर का नोट छपवाकर केन्द्र सरकार जनधन योजना वाले खातों में डलवा देगी। भले लोगों को खाते में 15 लाख रुपये नहीं मिले, पर यदि उन्हें 15 हजार भी अपने खाते में मिल गए, तो विपक्षी नेताओं का मुह बंद हो जाएगा।
लेकिन अब साफ हो गया है कि काला धन को नोटबंदी की इस घोषणा ने खरोंच तक नहीं लगाई है। यह सच है कि रद्द किए गए कुछ हजार करोड़ रुपये बैंकों में नहीं आ पाएंगे, लेकिन कुछ रुपये तो वैसे भी फट और गल जाते हैं। अब चूंकि घोषणा विफल हो गई है, इसलिए नोटबंदी को रहस्य बनाकर रखने का मास्टर स्ट्रोक भी प्रशंसा के लायक नहीं रहा। घोषणा के पहले लोग अपने काले धन को सफेद करते यह घोषणा के बाद कर दिया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। हां, रहस्य बनाकर सबकुछ करने से देश की अर्थव्यवस्था का भारी नुकसान हो गया और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। यानी कुल मिलाकर नुकसान ही नुकसान हुआ है। फायदा हुआ ही नहीं।
नकली नोटों के समाप्त होने का दावा किया जा सकता है, लेकिन नकली नोट समाप्त करने के लिए इस तरह घोषणा को गुप्त रखने की कोई जरूरत नहीं थी। सरकार नये नोट छापकर धीरे धीरे पुराने नोटों को हटाते जाती। इस तरह सारे पुराने नोटों की जगह नये नोट बाजार में आ जाते और पुराने नोटों की नकल कर जो नकली नोट बाजार में चलाए जा रहे थे, वे समाप्त हो जाते। ऐसा पहले भी होता रहा है। पुरानी सीरीज के नोटों को हटाकर सरकार नई सीरीज के नोटों को बाजार में लाती रही है और इससे किसी का नुकसान नहीं होता है। पुराने नोट जिनके पास होते हैं, उन्हें पूरा मौका मिल जाता है उन्हें बदलने का।
सरकार ने पूरी तैयारी के साथ यह घोषणा नहीं की थी, इससे लोगों का नुकसान तो हुआ ही, इसके कारण काला धन समाप्त करने का प्रधानमंत्री का लक्ष्य भी पराजित हो गया। प्रधानमंत्री को समझना चाहिए था कि जिस देश में सिनेमा के टिकटों ओर रेल टिकटों तक की कालाबाजारी होती है, उस देश में जब करेंसी का अभाव हो जाएगा, तो उसकी कालाबाजारी क्यों नहीं होगी? भारत में भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या है और समाज का कौन ऐसा प्रोफेशन है, जो उससे प्रभावित नहीं है। इसका अनुमान तो लगाया ही जा सकता था कि जिन बैंक वालों के पास नई करेंसी होगी, वे भी उसका इस्तेमाल पुराने नोट वाले काले धन को सफेद कर कमीशन खा सकते हैं। उस लूपहोल को बंद करने की कोई तैयारी सरकार के पास नहीं थी। उसका नतीजा यह हुआ कि बैंको के बाहर लंबी कतार लगी रही और पीछे से लोग नई करेंसी से काले धन को सफेद करते रहे।
बैंको ने तरह तरह के तिकड़म अपनाए। जिन लोगों ने अपना आधार या अन्य पहचान दिखाकर अपने 4 हजार रुपये बदलवाए उन्हीं पहचानों का इस्तेमाल कर अन्य लोगों के काले धन को सफेद किया गया। एटीएम मशीनों में डाले जाने वाले रुपये भी काले धन के पुराने नोटों से बदले गए। बैंकों ने नोट बदलने के पहले आधार व अन्य पहचान पत्र की काॅपी बंेंकों को दी थी। उनका इस्तेमाल कर फर्जी बैंक एकाउंट खोल दिए गए और उनमें काले धन के पुराने नोटों को जमा कर उनकी असली मालिको के खाते में डाल दिया गया या उन नकली खातों से ही नये नोट निकाल लिए गए। डिमांड ड्राफ्ट का इस्तेमाल भी किया गया। पुराने नोट मे 50 हजार से कम के डिमांड ड्राफ्ट तैयार किए गए और उन्हें कैंसिल करके उनके मालिको को नये नोट दे दिए गए। यह उस समय हुआ, जब बैंक से कोई व्यक्ति अपनी जमा धन राशि को एक सप्ताह मे 24 हजार ही निकाल सकता था। वैसे समय में एक व्यक्ति ने 49-49 हजार के बैंक ड्राफ्ट बना और कैंसिल कराकर 70 लाख रुपये बैंक की एक ही शाखा से निकाल लिए।
इस तरह की धोखाधीड़ी बैंकों में होती रही। काला धन सफेद होता रहा और नई करेंसी का एक बड़ा हिस्सा बाजार में सरकुलेशन के लिए पहुंच ही नहीं सका और इसके कारण बाजार में भी मुर्दानगी छाई रही। इस तरह से मोदी के अरमानों पर पानी फेरने मे बैंक के भ्रष्ट अधिकारियों ने भी भूमिका निभाई।(संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    नोटबंदी विफल क्यों?
भ्रष्ट बैंककर्मियों ने भी मोदी के अरमान पर पानी फेरे
        
        
              उपेन्द्र प्रसाद                 -                          2016-12-14 11:09
                                                
            
                                            जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुराने 500 और 1000 रुपयों के नोटों को बंद कर उनकी जगह 2000 और 500 रुपये के नये नोट लाने का फैसला किया था, तो उसे काले धन पर अबतक का किया गया सबसे बड़ा हमला माना गया था। यह समझा जा रहा था कि 3 लाख करोड़ से 5 लाख करोड़ रुपये बैंक में आएंगे ही नहीं और काला धन रखने वालों के वे पैसे मिट्टी में मिल जाएंगे। लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं। 85 फीसदी नोट बैंकों मे वापस आ चुके हैं और आने वाले 15 दिनों में और नोट भी आते रहेंगे। इसका मतलब है कि काला धन के खिलाफ की गई यह घोषणा विफल हो चुकी है।