केन्द्र के मानव संसाधन मंत्रालय ने एक कार्यक्रम जारी किया है। उसका नाम है ’बिटिया साक्षरता अभियान’। उसके तहत वित्तीय संस्थानों को कहा गया है कि वे छात्राओं को लोन दें, ताकि प्रधानमंत्री के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके। इस कार्यक्रम का एक अंग यह भी है कि छात्राओं को ज्यादा अंक दिए जाएं।

इससे कैशलेस नागरिकों का एक वर्ग खड़ा हो जाएगा। इस स्कीम में बताया जाता है कि कैशलेस समाज के क्या फायदे हैं और इससे काले धन को कैसे समाप्त किया जा सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों को कहा है कि वे किसी भी तरह के कैश भुगतान का इस्तेमाल न करें। कैंपस मे काम करने वाले मजदूरों को भी कैश न दें अथवा कोई ऐसे वेंडर को भी वहां जगह नहीं दें, जो कैश में भुगतान लेता हो।

सरकार के इस कदम से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। संघ परिवार को पता है कि हिन्दू राष्ट्र के ढांचे को भारतीय समाज के परंपरागत अर्धसामंतवादी मूल्यों के प्रभाव में रहते हुए नहीं तैयार किया जा सकता। भारतीय आमतौर पर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से नफरत करते हैं। इसलिए संघ को लगता है कि जबतक बैंकिंग सेक्टर और भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तौर पर बदला नहीं जाता, तब तक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना नहीं की जा सकती। और इसे बदलने के लिए युवा पीढ़ी से ही शुरुआत करनी चाहिए।

संघ ने मोदी सरकार के बनते ही अपने सांप्रदायिक एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया था। उसने घर वापसी अभियान चलाया। बीफ खाने के खिलाफ आंदोलन चलाया। उस तरह के अन्य अनेक कार्यक्रम भी चलाए। उग्र राष्ट्रवाद को उसने मुद्दा बनाया। फासीवादी ताकतों ने हमेशा इस तरह के मुद्दे को उठाया है।

विमुद्रीकरण का देश व्यापी विरोध हो रहा है। खासकर देहातों के लोग इससे काफी नाराज हैं। लगभग सभी विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ हैं। इससे देश को भारी नुकसान हो रहा है, लेकिन फिर भी नरेन्द्र मोदी अपनी जिद्द पर अड़े हुए हैं।

भारत द्वारा विकसित पूंजीवादी देशों की नकल करना निश्चय ही दुर्भायपूण कदम है। ऐसा करके वह अपने सांस्कृतिक मूल्यों का ही नाश कर रहा है। चापलूसी अब शिष्टाचार बनती जा रही है। संघ के लोग कांग्रेस को सभी समस्याओं की जड़ बता रहे हैं। अन्य स्रोतों से आ रहे प्रतिरोध के खिलाफ भी वे आग उगल रहे हैं। नोटबंदी तो सिर्फ एक मुखौटा है। असली उद्देश्य अपने फासीवादी एजेंडे को आगे बढ़ाना है।

नोटबंदी का मूल उद्देश्य देश की आर्थिक संस्कृति को बदलना है। संघ भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी पूरी तरह बदल देना चाहता है। जबतक ऐसा नहीं किया जाएगा, दक्षिणपंथी ताकतें अपने डिजायन को सही आकार नहीं दे पाएंगी। जब से मोदी की सरकार बनी है मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने के अपने एजेंडे को जबर्दस्ती आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रतिरोध राजनीति और अर्थतंत्र की ओर से आ रहा है।

वे कैशलेस अर्थव्यवस्था की वकालत कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इसके कारण कैसे काला धन समाप्त होगा। वे पिछली सरकारों पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने काला धन समाप्त करने के लिए कुछ किया ही नहीं। एकाएक बैंको को भारत राष्ट्र की चिंता होने लगी है।

लोगों के साथ सरकार और बैंक दोनों फा्रॅड कर रहे हैं। सरकार कह रही है कि कैश की कमी नहीं है और बैंकों को काफी कैश सप्लाई किए जा रहे हैं। दूसरी तरह 85 फीसदी एटीएम मशीनों से कैश नहीं निकल रहे। बैंक कैश नहीं होने का रोना रो रहे हैं, जबकि सरकार पर्याप्त कैश होने का दावा कर रही है। अब दोनों मे से कौन झूठ बोल रहे हैं? शायद दोनों ही झूठ बोल रहे हैं।(संवाद)