म्यान्मान के रखाइन प्रांत में सेना पिछले 9 अक्टूबर से ही उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। उसके कारण कम से कम 100 लोग मारे जा चुके हैं। सेना को इसलिए बुलाना पड़ा, क्योंकि हिंसक हथियारबंद रोहिंग्या मुसलमानों ने सेना की एक टुकड़ी पर हमला कर दिया था और उनमे 17 की हत्या कर दी थी। वहां अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी काम कर रही हैं, जो पीड़ित लोगों की सहायता करने काम करती हैं। उन्हें खराब परिस्थिति होने के कारण काम करने में कठिनाई हो रही है। उनका कहना है कि सेना के हाथों मारे जाने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 100 से बहुत ज्यादा है। अबतक 600 लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। दो महीने से वहां रात भर का कफ्र्यू जारी रहता है।
म्यान्मार सरकार ने 1982 से ही 13 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को राज्यविहीन घोषित कर रखा है। इसके कारण उनके मानवाधिकारों का भारी हनन हो रहा है। जबतक सेना के लोग उनपर हमलावर होने का आरोप लगाकर उनपर हमला कर देते हैं। निहत्थे रोहिंग्याई बांग्लादेश भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन वहां सीमा सुरक्षा गार्डों द्वारा वे वापस म्यान्मार में धकेल दिए जाते हैं। हजारों लोग नावों द्वारा थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया तक पहुंच रहे हैं। वहां कुछ समय के लिए उन्हें शरण मिल जाती है, लेकिन फिर वे समुद्र में धकेल दिए जाते हैं।
अनेक लोग समुद्री तटों से भारत में प्रवेश कर रहे हैं। कुछ तो भूसीमा से भी यहां आ जाते हैं। पश्चिम बंगाल में अकेले 1000 अवैध तरीके से घुसे रोहिंग्या मुसलमानों को गिरफ्तार कर जेल मे डाल दिया गया है। सरकार ने म्यान्मार के राजनयिकों से संपर्क किया और उनके बारे में बातचीत की, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका।
म्यान्मार एशियान समूह का सदस्य है। एशियान समूह के अन्य सदस्य देश म्यान्मार पर रोहिंग्या समस्या को लेकर दबाव डाल रहे हैं। लेकिन शांति के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाली आंग सान सू की उस मसले पर चुप हैं। उनकी चुप्पी की मलेशिया द्वारा तीखी आने की जा रही है। गौरतलब हो कि म्यान्मार की सत्ता अभी सू की के हाथों में ही है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने रोहिंग्या मुसलमानों को दुनिया का सबसे ज्यादा पीड़ित समुदाय घोषित कर रखा है।
एशियान देशों के भारी दबाव में आकर म्यान्मार ने सभी सदस्य देशों की बैठक बुलाई है। लेकिन पर्यवेक्षकों को लग रहा है कि समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला है। इसका कारण यह है कि म्यान्मार की सरकार रोहिंग्या मुसलमानों का अस्तित्व स्वीकार करने को ही तैयार नहीं है।
म्यान्मार की नेता सू की को इंडोनिशया की अपनी यात्रा स्थगित करनी पड़ी, क्योंकि वहां म्यान्मार के दूतावास पर गुस्साए लोगों ने हमला कर दिया था और उनके खिलाफ भी लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उनका बयान बहुत उत्साहित करने वाला नहीं है। उन्होंने कहा था कि सेना ने उनके द्वारा हिंसा फैलाने के बाद ही उन पर हमला किया है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर म्यान्मार सरकार ने एक टीम को वहां का दौरा करने की इजाजत दी, ताकि जमीनी हकीकत का जायजा लिया जा सके। उस टीम में भी ज्यादातर लोग म्यान्मार के ही थे। पाया गया कि सैंकड़ों घरों को जला दिया गया था। महिलाओं सहित अनेक लोगों को गोलियों से उड़ा दिया गया था। टीम के दौरे के बावजूद अंतरराष्ट्रीय संगठनों को वहां राहत कार्य चलाने की इजाजत नहीं दी गई।
बांग्लादेश में 2 लाख रोहिंग्या शरणार्थी पहले से ही रह रहे हैं। अब वह शरणार्थियों को अपने देश में घुसने ही नहीं देता। अनेक शरणार्थी भारत आ गए हैं। सबसे ज्यादा तो पश्चिम बंगाल में ही रहे रहे हैं, लेकिन आंध प्रदेश, उड़ीसा, दिल्ली, जम्मू, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी वे रह रहे हैं। भारत सरकार ने उनके लिए अभी तक कोई नीति नहीं बनाई है। लेकिन रोहिंग्या इसलिए थोड़ी राहत महसूस कर रहे हैं कि उनपर यहां दया की जा रही है। (संवाद)
रोहिंग्या भागकर भारत आ रहे हैं
उन शरणार्थियों पर भारत की कोई स्पष्ट नीति नहीं है
आशीष बिश्वास - 2016-12-22 12:31
म्यान्मार में हो रहे उत्पीड़न से जान बचाकर वहां के रोहिंग्या मुस्लिम भारत आ रहे हैं। अब तो उनके आने की रफ्तार और भी बढ़ गई है। 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत में होने की तो पुख्ता जानकारी है और यह भी जानकारी है कि उन्होंने 7 प्रदेशों में शरण ले रखी है। लेकिन जो लोग उन शरणार्थियों की खोज खबर रखते हैं, उनका मानना है कि शरणार्थियों की संख्या 40 हजार से बहुत ज्यादा है।