सत्तारूढ़ दल के लिए उस समय दिल्ली प्रदेश की सरकार काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि वहां उस समय राष्ट्रपति शासन था और सरकार के सर्वेसर्वा नजीब जंग ही थे। भारतीय जनता पार्टी अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को उस पद पर बैठा कर सत्ता का अगले विधानसभा चुनाव में जीत के लिए इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन जंग को तब नहीं हटाया गया। राष्ट्रपति शासन को हटाकर जल्द चुनाव भी नहीं कराए गए। उलटे भारतीय जनता पार्टी कोशिश करती रही कि किसी तरह वह कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के विधायकों में फूट डालकर अपनी सरकार बना ले। लेकिन वैसा करने में भारतीय जनता पार्टी सफल नहीं हुई और अंत में फरवरी 2015 में विधानसभा के चुनाव हुए, जिसमे भारतीय जनता पार्टी को शर्मिंदाजनक हार का सामना करना पड़ा। 70 में से उसकी सिर्फ 3 सीटों पर ही जीत हुई थी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव मंे अरविंद केजरीवाल ने नरेन्द्र मोदी के तिलिस्म को तोड़ डाला।
लेकिन हारने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में उस हार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। उसने एक तरह से संकल्प कर रखा था कि वह केजरीवाल सरकार को काम नहीं करने देगी और इसमें उसने उपराज्यपाल का इस्तेमाल किया। उपराज्यपाल का इ्रस्तेमाल करने में उसे परेशानी भी नहीं हुई, क्योकि अव्वल तो उपराज्यपाल का अपने पद पर बने रहना केन्द्र सरकार की मर्जी पर निर्भर था और दूसरे अरविंद केजरीवाल ने भी अपने स्तर पर उपराज्यपाल से संबंध बेहतर बनाकर रखने की कोशिश नहीं की। यह सच है कि जब केजरीवाल सत्ता से बाहर थे और विधानसभा भंग कर दिल्ली में विधानसभा चुनाव की मांग कर रहे थे, तो जंग की तरफ से उन्हें निराशा हाथ लगी थी और वे उनसे बहुत नाराज हो गए थे। पर दुबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें जंग से कामचलाऊ संबंध बनाकर रखने की कोशिश तो करनी ही चाहिए थी, लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से जो कुछ किया, उसके कारण जंग से उनका तनाब बढ़ता ही गया।
अरविंद केजरीवाल जंग पर हमलावर होते रहे और जंग ने प्रतिशोध में आकर या केन्द्र सरकार के इशारे पर या दोनों कारणों से केजरीवाल सरकार के साथ ऐसा वर्ताव किया, जो लोकतांत्रिक मर्यादा के अनुकूल नहीं था। उन्होंने केजरीवाल सरकार के अधिकारों पर हमले तेज कर दिया और उसमें उन्हें केन्द्र सरकार का पूरा सहयोग मिल रहा था। जंग ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अपनी मातहत सरकार बनाने की कोशिश की, जबकि एक चुनी हुई सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होती है और उसकी जवाबदेही का जरिया विधानसभा होता है। लेकिन उसे उसकी ताकतों से हीन करने की हर संभव कोशिश जंग ने की। उन्हांेने पूरी लोकतांत्रिक मर्यादा को तार तार कर दिया।
केन्द्र सरकार और जंब के बीच अच्छी समझ बनी हुई थी। एक कमिटी के द्वारा उन्होंने केजरीवाल सरकार के आदेशों की समीक्षा करवाई थी और कहा जाता है कि उन आदेशों में दोष निकालकर वे केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई की भी सोच रहे थे। भारतीय जनता पार्टी भी अरविंद केजरीवाल को पंजाब और गोवा के चुनावों से दूर रखने के लिए ऐसा कुछ करने की सोच रही थी। ऐन उसी वक्त में जंग का इस्तीफा दे देना एक बड़ी पहेली बन गया है कि सबकुछ ठीक ठाक रहते हुए भी उन्होंने अपना पद क्यों छोड़ दिया।
पद छोड़ने का एक कारण तो यही हो सकता है कि केन्द्र सरकार चाहती होगी कि वे अपना पद छोड़ दें। लेकिन जब वे केन्द्र का काम बखूबी कर रहे थे, तो फिर केन्द्र क्यों चाहेगा कि वे उस पद को छोड़े? दूसरा कारण तो यह होगा कि शायद केन्द्र उनसे वह करने को कह रहा होगा, जो करना वे पसंद नहीं कर रहे होंगे। हो सकता है कि केन्द्र चाहता हो कि पंजाब और गोवा चुनाव के पहले वे केजरीवाल पर मुकदमा करवा दें या कोई और ऐसा काम करें, जिसे करने के लिए जंग की जमीर ने इजाजत नहीं दी हो।
एक तीसरा कारण भी हो सकता है, जिसका संबंध नगर निगम के चुनाव से हो सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने एक बिहारी मनोज तिवारी को दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष बना दिया है। बिहार के लोगों की संख्या दिल्ली में बहुत ज्यादा है। उनको अपने पाले में करने के लिए ही भाजपा ने मनोज तिवारी को अपना दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। लेकिन सच यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी संगठन में नीचे से ऊपर तक पंजाबियों की ही तूती बोलती है। मनोज तिवारी के कारण वे पार्टी के कामों को लेकर ढीले पर पड़ सकते हैं। इसलिए उनको उत्साहित बनाए रखने के लिए किसी पंजाबी को दिल्ली का उपराज्यपाल बनाने के लिए जंग को भाजपा हटाना चाहती होगी।
कारण चाहे जो भी आने वाले समय में केन्द्र के साथ दिल्ली की केजरीवाल सरकार का टकराव बढ़ने के आसार और भी बढ़ गए हैं। जंग फिर भी भारतीय जनता पार्टी से किसी तरह जुड़े नहीं रहे हैं। उन्हें कांग्रेस ने नियुक्त किया था, लेकिन पद पर बने रहने के लिए और केजरीवाल के व्यवहार से आहत होने के कारण वे दिल्ली की चुनी हुई सरकार को कमजोर कर रहे थे, लेकिन जब भाजपा से जुड़ाव रखने वाला कोई व्यक्ति उपराज्यपाल बनेगा, तो आगे क्या होगा, इसका अंदाज लगाना कठिन नहीं है। (संवाद)
जंग का इस्तीफा और उसके बाद
केजरीवाल सरकार से केन्द्र का टकराव और बढ़ने की आशंका
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-12-24 10:05
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग का इस्तीफा निश्चय ही चौंकाने वाला है। इसकी उम्मीद शायद ही कोई कर रहा होगा। वे 2013 में इस पद पर नियुक्त हुए थे और उनका कार्यकाल अभी डेढ़ साल बाकी था। जाहिराना तौर पर केन्द्र सरकार के साथ उनके संबंध ठीकठाक थे, हालंाकि उनकी नियुक्ति पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में हुई थी। नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपना कार्यकाल संभालते ही उन अनेक राज्यपालों और उपराज्यपालों को पदों से हटा दिया था, जिनकी नियुक्ति मनमोहन सिंह सरकार ने की थी। लोग उम्मीद कर रहे थे कि शायद नजीब जंग भी अपने पद से हटा दिए जाएं, क्योंकि वे भी पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में ही नियुक्त हुए थे।