मणिपुर में आर्थिक जाम लगा दिया गया है। इसका मतलब यह है कि मणिपुर घाटी जाने वाले दोनों मुख्य रास्तों को बंद कर दिया गया। उन्हीं दोनों रास्तों से भारत की मुख्य भूमि के साथ मणिपुर का जुड़ा है और उन्हीं की मार्फत आवश्यकता की सभी वस्तुएं मणिपुर घाटी तक पहुंचती है।
इस तरह का वह कोई पहला प्रतिबंध नहीं है। अतीत में भी इस तरह के प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं और कभी कभी तो महीनों तक रास्ते को बंद कर दिया जाता है। उस तरह के बंद को रोकने के लिए ही इबोबा सिंह ने सात नये जिले बनाए हैं, लेकिन जिलों के गठन के बाद एक बार फिर मणिपुर को बंद का सामना करना पड़ा।
बंद के कारण प्रदेश के लोगों की स्थिति बहुत ही दयनीय बन जाती है। खाने पीने की चीजों तक का अभाव हो जाता है। दवाएं तक मिलने में समस्या पैदा हो जाती है। इंधन की दिक्कत हो जाती है। इस बार प्रतिबंध के कारण 200 रुपये प्रति लीटर तक पेट्रोल बिक रहा था।
जिलों का गठन कांग्रेस की सिंह सरकार ने बहुत सोच विचार कर किया था। अगले साल के शुरुआती महीनों में ही मणिपुर में विधानसभा का आम चुनाव होने वाला है। लंबे समय से वहां कांग्रेस की सरकार है। इबोबा सिंह 2002 से ही वहां के मुख्यमंत्री हैं। उनके नेतृत्व में कांग्रेस वहां से तीन बार जीती है। चैथी बार उनके नेतृत्व में कांग्रेस एक बार फिर विधानसभा का चुनाव लड़ेगी।
चुनावी हार से बचने के लिए ही इबोबा सिंह की सरकार ने नये जिलांें का गठन किया है। इस निर्णय से प्रदेश के बहुसंख्यक मेती आबादी ही नहीं, बल्कि पहाड़ी कुकी आबादी भी खुश है, लेकिन नगा आबादी नाराज हो गई है और उसने आर्थिक नाकेबंदी कर दी।
दरअसल नगाओं ओ कुकियों के बीच भयानक संघर्ष चलता रहता है। नगा और कुकी ही नहीं, मेती भी कुकियों और नगाओं से लड़ते रहते हैं, लेकिन इस बार कुकी और मेती एक साथ हैं।
मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटें हैं और उनमें से करीब तो तिहाई घाटी की सीटों पर बहुसंख्यक मेतियों की तूती बोलती है। नये जिलो के गठन से मेती लोग खुश हैं। समस्या सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि समस्या का एक पक्ष भारतीय जनता पार्टी भी है।
भारतीय जनता पार्टी की असम में सरकार बन गई है। नगालैंड में भी वह नगालैंड पीपल्स पार्टी के साथ मिलकर सरकार चला रही है। अब वह अपना आधार मणिपुर में फैलाना चाह रही है, जहां कांग्रेस की सरकार है। मणिपुर में मेती आबादी चुनाव के लिहाज से ज्यादा मायने रखती है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी नगा वोटों का मोह छोड़कर वहां मेतियों को लुभाने में लगी हुई है। इसके कारण नगा और भी नाराज हो गए हैं। वे एक साथ प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार दोनों से नाराज हो गए हैं। इस नाराजगी के कारण ही वे इस तरह की आर्थिक नाकेबंदी पर उतर आए हैं।
केन्द्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप के बाद नाकेबंदी हटा ली गइ्र्र है और अभी कुछ शांति देखी जा रही है, लेकिन इसके स्थायी रहने की संभावना बहुत ही कम है। इसका कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी भी अब नगा लोगों की परवाह नहीं कर रही है और उनकी समस्याओ के प्रति उसके द्वारा सहानुभूति दिखाने के आसार बहुत कम हैं, क्योंकि उसे भी मणिपुर में चुनाव जीतने की राजनीति करनी है। लेकिन अशांति बनी रही, तो वहां चुनाव कराना भी मुश्किल हो जाएगा। (संवाद)
राजनैतिक प्रतिस्पर्धा ने मणिपुर को अशांत किया
भाजपा की राजनैतिक विवशता स्थिति बिगाड़ रही है
बरुण दासगुप्ता - 2016-12-28 13:13
भारत के सबसे पूर्व में स्थित मणिपुर पिछले 9 दिसंबर से उबल रहा है। उस दिन प्रदेश की इबोबो सिंह सरकार ने 7 नये जिलों के गठन की घोषणा की थी। उस घोषणा के बाद प्रदेश में जिलों की कुल संख्या 16 हो गई है। लेकिन नगा लोगों को सरकार का वह फैसला पसंद नहीं आया। उसे वे नगाओं की एकता को तोड़ने वाला कदम मानते हैं और उसके कारण उसका विरोध कर रहे हैं।