यह भी साफ हो गया है कि देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। आने वाले समय और भी खराब साबित होने वाले हैं। करोड़ों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। जिस नोटबंदी को भ्रष्टाचार विरोधी बताया गया था, उसी नोटबंदी के कारण भ्रष्टाचार को नये पंख लग गए हैं। देश के लोग त्राहि त्राहि कर रहे हैं। प्रधानमंत्री पर अपने इस नोटबंदी के फैसले को सही साबित करने का जबर्दस्त दबाव है, लेकिन वे जब भी इस मसले पर मुह खोलते हैं, उनके मुह से कुछ ऐसा निकलता है, जिससे वे फंस जाते हैं। अपनी पुरानी बातांे को वे खुद ही गलत साबित कर देते हैं। पहले उन्होने कहा था कि परेशानी सिर्फ कुछ दिनों की ही होगी। जब वे ’’कुछ दिन’’ बीत गए, तो उन्होंने लोगों से 50 दिनो का वक्त मांग और कहा कि यदि 50 दिनों में आपकी सारी परेशानियां समाप्त नहीं हुई, तो आप मुझे किसी भी चैराहे पर खड़ा कर देना और जो भी सजा देना, मैं मंजूर लूंगा।
फिर प्रधानमंत्री को अहसास हो गया कि 50 दिनों में भी लोगों की परेशानियां नहीं समाप्त होने वाली है, तो उन्होंने अपनी कही गई बात से पलटी मारी और कहा कि 50 दिनों तक परेशानियां बढ़ेगी और फिर उसके बाद धीरे धीरे घटती जाएगा। 50 दिन बीत गए हैं। परेशानियां बनी हुई हैं। महीने का पहला सप्ताह 50 दिन बीतने के बाद शुरू होता है और उसमें परेशानियां और बढ़ रही हैं। यानी 30 दिसंबर के बाद परेशानियां कम होने की प्रधानमंत्री की बात भी गलत साबित हो रही है।
जाहिर है विपक्ष के लिए हमले का विस्फोटक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद उपलब्ध करा रहे हैं, लेकिन विपक्ष एकजुट होकर उसका लाभ नहीं उठा पा रहा है। संसद के सत्र को विपक्ष ने अवश्य चलने नहीं दिया, लेकिन उसके बाद उसमें दरार आ गई है। जनता दल(यू) तो नोटबंदी का समर्थन कर रहा था। बीजू जनता दल भी इसका समर्थन कर रहा था। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस विरोध के मुख्य मोर्चे पर है। मायावती भी इसकी तीखी आलोचना कर रही है। वाम दल भी इसके खिलाफ हैं, लेकिन जब मिलजुल कर कोई कदम उठाने की बात की जाती है, तो वे सब एक मंच पर नहीं आते।
कांग्रेस कोशिश कर रही है कि उसके नेता राहुल गांधी मोदी के खिलाफ सबसे बड़े नेता के रूप में सामने आएं और उनका नेतृत्व विपक्ष स्वीकार कर लें। पर यह कांग्रेस की सिर्फ चाह भर है। राहुल गांधी विपक्षी पार्टियों को अपने साथ कर पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। वे बैंठक बुलाते हैं, लेकिन उसमें सभी पार्टियों की शिरकत नहीं होती। इसका एक कारण यह है कि बैठक बुलाने के पहले वे अन्य पार्टियों को विश्वास में नहीं लेते। इसके कारण अनेक पार्टियों उनकी बैठकों में नहीं आतीं।
कांग्रेस में वह सबकुछ है, जिसके कारण वह विपक्ष का नेतृत्व कर सकती है। आखिर इसका क्या कारण हो सकता है? इसका एक कारण तो यह है कि कांग्रेसी नेताओं मे दूसरी पार्टियों तक पहुंचने की कुशलता की कमी है। इसका दूसरा कारण यह है कि उनके नेताओं का पुराना अहंकार अभी भी बना हुआ है, जिसके कारण वे अन्य पार्टियों के नेताओं के साथ सही तरीके से संवाद नहीं कर पाते। इसके कारण राहुल गांधी विपक्ष की धुरी नहीं पा रहे हैं। (संवाद)
मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास नेता नहीं
विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने में राहुल विफल
कल्याणी शंकर - 2016-12-30 11:01
नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी के 50 दिन पूरे हो गए हैं। सारा देश कतार में खड़ा है। लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नोटबंदी के घाषित उद्देश्यों मे से एक भी पूरा नहीं हो रहा है। यह सच है कि जब नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी, तो शुरू में उन्हें लोगों का अपार समर्थन मिला था। इसे काले धन पर अबतक का किया गया सबसे बड़ा हमला माना गया था, लेकिन अब फिजा बदल गया है। इसकी विफलता सामने आ गई है। इसके कारण देश को जो आर्थिक तबाही सामना करना पड़ रहा है, वह भी सबके सामने है। लेकिन इस सबके बावजूद विपक्ष एक जुट नहीं हो पाया है।