उस समय स्थिति विस्फोटक हो गई जब केरल प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष के मुरलीधरन ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक प्रभावी विपक्ष के रूप में काम करने मे विफल हो गया है।

उसके बाद तो मुरलीधरन के ऊपर निजी हमले होने लगे। उनके व्यक्तिगत जीवन की बखिया उधेड़ी जाने लगी और यह काम किया कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता राजमोहन उन्नीथन ने, जो इस समय प्रदेश के वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष वी एम सुधीरन के काफी नजदीकी हैं।

लेकिन बात वहीं तक नहीं थमी। मुरलीधरन के समर्थकों ने कांग्रेस प्रवक्ता उनीथन पर शारीरिक हमले की कोशिश की। यह वाकया कोल्लम में हुआ। उस समय उनीथन कांग्रेस की 131वीं जयंती मनाने के लिए वहां गए हुए थे।

उस घटना से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ए के एंटोनी बहुत ही नाराज हुए। कांग्रेस आलाकमान भी उस पर बहुत उत्तेजित हुआ। केरल के कांग्रेस प्रभारी मुकुल वासनिक ने केरल के कांग्रेसी नेताओं की सार्वजनिक बयानबाजी पर ही रोक लगाने के आदेश जारी कर दिए। लेकिन उस तरह के आदेश का केरल में कभी कांग्रेस ने पालन करने की जरूरत ही नहीं समझी है।

कांग्रेस की यह बीमारी बहुत अंदर तक घुस गई है। उसे ठीक करने के लिए अब कोई छोटे मोटे उपचार से काम नहीं चलेगा। उसके लिए अब बड़ा आॅपरेशन करना पड़ेगा। तभी प्रदेश कांगेस का स्वास्थ्य सामान्य हो सकता है।

कांग्रेस में बेचैनी का तात्कालिक कारण जिला समितियों के नये अध्यक्षों की नियुक्ति है। उन नियुक्तियों मे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के गुट की उपेक्षा हो गई थी। श्री चांडी अपने जितने लोगों को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, उतने लोग जिला कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बन पाए। उसे लेकर ओमन चांडी भी काफी नाराज चल रहे हैं।

और उसके बाद श्री चांडी ने असहयोग का रुख अपना लिया है। उदाहरण के लिए केरल प्रदेश कांग्रेस कमिटी चाहती है कि पार्टी में नाराजगी पर चर्चा करने के लिए राजनैतिक मामलों की कमिटी की बैठक की जाय, लेकिन चांडी उस बैठक में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसा करके वे जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों में की गई अपनी उपेक्षा के लिए अपना रोष व्यक्त कर रहे हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की हार हो गई थी। उस हार के बाद से ही चांडी के सितारे गर्दिश में हैं। हार के बाद वे कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे। और यदि अध्यक्ष नहीं भी बन पाए, तो किसी न किसी रूप में उसपर अपना नियंत्रण रखना चाहते थे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।

चांडी जिला कमिटियों का पुनर्गठन भी नहीं चाहते थे। वे चाहते थे कि नीचले स्तर से प्रदेश स्तर तक की कमिटियों को फिर से बनाया जाय। उन्हें लगता है कि यदि संगठन पर उनका कब्जा नहीं रहा, तो पार्टी के अंदर वे अपने पुराने रुतबे को कायम नहीं रख पाएंगे। लेकिन चांडी के रास्ते में अनेक बाधाएं हैं।

यह कहना कठिन है कि कांग्रेस की राजनीति आने वाले समय में और कौन सा मोड़ लेती है। लेकिन एक बात निश्चित है और वह यह है कि यदि पार्टी ने अपनी गलतियों से सबक नहीं लिया, तो पार्टी का भविष्य बहुत आसान नहीं है। (संवाद)