तमिलनाडु की दूसरी प्रमुख पार्टी आॅल इंडिया अन्ना डीएमके, जो अभी सत्ता में हैं, भी नेतृत्व परिवर्तन के दौर से गुजर चुकी हैं। उसकी नेता जयललिता अब इस दुनिया में नहीं रही और उनकी जगह उनकी दोस्त शशिकला ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली है।
डीएमके में यह बदलाव पांच दशक के बाद हुआ है। पिछले पांच दशक से इसका नेतृत्व करुणानिधि कर रहे थे। जब करुणानिधि ने डीएमके का नेतृत्व संभाला था, लगभग उसी समय पार्टी में विभाजन हुआ और एमजी रामचन्द्रन ने आॅल इंडिया अन्ना डीएमके का गठन किया। उनके निधन के बाद जयललिता इस पार्टी की सुप्रीमो हो गईं। इस तरह करुणानिधि ने अन्नाडीएमके के दो नेताओं के कार्यकाल को देखा। उनके खिलाफ वे चुनाव लड़ते रहे। वे कभी हारे और कभी जीते। अब जयललिता इस दुनिया में नहीं रही, लेकिन करुणानिधि भी अब अपनी उम्र के उस फेज में पहुंच गए हैं, जिसमें वे राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं रह सकते और उसकी जिम्मेदारियां भी पूरी तरह से उठा नहीं सकते। लिहाजा, उन्होंने पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी अपने बेटे स्टालिन को सौप दी है।
जयललिता की मौत के बाद उनकी पार्टी अभी भी सक्रमण के दौर से गुजर रही है और वैसी हालत में डीएमके उसे विभाजित करने की कोशिश कर सकती है। डीएमके को वहां सरकार बनाने के लिए मात्र 20 विधायकों की ही जरूरत है। पर आॅल इंडिया अन्ना डीएमके के पास 135 विधायक हैं और उसमें विभाजन करने के लिए उसे दो तिहाई विधायकों की जरूरत पड़ेगी। इतनी संख्या जुटाना इस समय मुश्किल है। डीएमके नेता चाहेंगे कि आॅल इंडिया अन्ना डीएमके खुद ही अपने भार से गिर जाय। केन्द्र सरकार की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी भी नहीं चाहती कि इस समय चेन्नई में किसी तरह की छेड़छाड़ की जाय। इस समय सभी इंतजार करो और देखो की नीति पर चल रहे हैं।
डीएमके का स्टालिन युग अभी शुरू ही हुआ है। करुणानिधि द्वारा उन्हें अपना वारिस चुने जाने के बाद इस युग की शुरुआत हुई है। स्टालिन पिछले 44 साल से प्रदेश की राजनीति में हैं। वे राजनीति में अपने पिता की छाया की तरह थे। उनके बड़े भाई अड़ागिरी और बहन कनीमोड़ी भी पिता की विरासत पर दावा कर रहे थे, लेकिन विरासत स्टालिन के हाथ ही लगी।
इसके बावजूद पार्टी के प्रमुख खुद करुणानिधि ही हैं। स्टालिन चाहते हैं कि उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाय, लेकिन करुणानिधि से स्पष्ट कर दिया है कि जबतक वे जिंदा हैं, तबतक वे इस पद पर बने रहेंगे। स्टालिन ज्यादा से ज्यादा पार्टी के उपाध्यक्ष बनाए जा सकते हैं।
जहां तक आल इंडिया अन्ना डीएमके का सवाल है, तो उसने एक ऐसी करिश्माई नेता को खो दिया है, जिसने पार्टी को 1991, 2001, 2011 और 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दिलाई। लेकिन उन्होंन अपनी पार्टी में किसी को दूसरे स्थान पर नहीं रहने दिया। नेताओं की दूसरी पंक्ति तक उन्होंने विकसित नहीं की। शशिकला उनकी जगह पार्टी की प्रमुख बन गई हैं और ओ पनीरसेल्वम प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं। पनीरसेल्वम दो बार जयललिता के जीवनकाल में भी मुख्यमंत्री बन चुके हैं। दोनों बार जब जयललिता को जेल जाना पड़ा था, तो उन्होंने खुद पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन सच यह भी है कि दोनों जयललिता की कमी को अलग अलग नहीं पूरी कर सकते।
हो सकता है कि ओ पनीरसेल्वम पार्टी में उभरकर जयललिता का स्थान ले लें या यह भी संभव है कि शशिकला उन्हें उनकी जगह दिखा दें। शशिकला की राजनीति के बारे में लोगों को पता नहीं है। इस लिए यह नहीं कहा जा सकता कि वे जयललिता की तरह पार्टी पर नियंत्रण रख सकती हैं अथवा नहीं। दोनों एक साथ सत्ता के कारण बने हुए हैं, क्योंकि कोई विधायक नहीं चाहता कि प्रदेश में तुरंत चुनाव हो जाए।
अब देखना दिलचस्प होगा कि नये दौर की यह राजनीति कौन सा रूप अख्तियार करती है।(संवाद)
नये दौर में तमिलनाडु की राजनीति
अब शशिकला का मुकाबला स्टालिन से
कल्याणी शंकर - 2017-01-04 12:59
तमिलनाडु में बदलाव की हवा बह रही है। यहां की दोनों प्रमुख पार्टियों का नेतृत्व बदल गया है। डीएमके के नेता करुणानिधि अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं और अपनी पार्टी के अध्यक्ष भी है, लेकिन व्यावहारिक रूप में पार्टी के कोषाध्यक्ष स्टालिन ही पार्टी के सर्वेसर्वा हो गए हैं। करुणानिधि ने उन्हें अपना राजनैतिक वारिस घोषित कर दिया है और पार्टी में वे सबका समर्थन भी हासिल कर चुके हैं। कहीं से अब उनका विरोध नहीं रहा।