शंघाई सहयोग संगठन में मूल रूप से 6 देश ही थे। चीन के अलावा उसमें रूस उज्वेकिस्तान, कजाकस्तान, किर्गीस्तान और ताजीकिस्तान थे। अब इसमें भारत और पाकिस्तान भी शामिल हो रहे हैं। इस तरह यह 8 यूरेशियाई देशों का संगठन हो गया है। इस शिखर सम्मेलन में भारत आतंकवाद के मसले को भी उठा सकता है, क्योंकि इसमें चीन, पाकिस्तान और रूस भी होंगे। ये सभी देश अफगानिस्तान की घटनाओं में दिलचस्पी रखते हैं। इस सम्मेलन में जेहादी संगठनों द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद से निबटने के उपायों पर भारत चर्चा करवा सकता है। यह सच है कि इस मसले पर भारत और पाकिस्तान के परस्पर विरोधी विचार होंगे, लेकिन साफ साफ बहस होने के कारण इस समस्या के समाधान को ढूंढ़ने में सहायता मिल सकती है।

भारत इस संगठन का सदस्य बनकर काफी फायदा उठा सकता है, लेकिन इसके लिए उसे सक्रिय और सतर्क रहना होगा और संगठन की गतिविधियों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना होगा। यह सच है कि यह संगठन चीन के दिमाग की उपज है और इसकी नीतियो के निर्धारण में रूस और चीन की भूमिका सबसे ज्यादा रहेगी, लेकिन आने वाले समय मंे बदली हुई अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के बीच भारत की भूमिका भी मायने रखेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के कारण दुनिया अब पहले जैसी नहीं रह पाएगी। इसमें क्षेत्रीयता का बोलबाला होगा और इस युग में क्षेत्रीय सहयोग का एक बड़ा मंच शंघाई सहयोग संगठन हो सकता है। इसे ज्यादा प्रासंगिक बनाने में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

भारत और चीन के बीच कुछ खटपट होते रहने के बावजूद दोनों देशों के संबंध मजबूत हो रहे हैं और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व चीनी राष्ट्रपति झी पिंग दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंध बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। ऐसा करते हुए दोनों लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को भी अलग रखने को तैयार दिख रहे हैं। दोनों देश आर्थि सहयोग के अनेक मसलों पर आपस में बात कर रहे हैं। दोनों देशों के व्यापारिक संबंध लगातार बढ़ रहे हैं और चीन की कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं।

शंघाई सहयोग संगठन एक असैनिक ब्लाॅक है, लेकिन यह संगठन अपने आपको मजबूत रखते हुए मजबूती से अपनी बात दुनिया के सामने रख सकता है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इस संगठन को एशिया व्यापी बनाने का प्रस्ताव रखा है और वे ईरान को भी इसका पूर्ण सदस्य बनाए जाने के पक्ष में है। यदि ईरान इसमें शामिल कर लिया जाता है तो यह ब्लाॅक एक बड़ा आर्थिक और सैनिक ताकत भी बन सकता है।

भारत दुनिया की तीनों बड़ी शक्तियों के साथ लगातार संपर्क में है। मध्य एशियाई देशों से भी इसका संपर्क लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य एशियाई देशों की पिछले दो सालों में बहुत यात्राएं की हैं। चीन और रूस भी इन मध्य एशियाई देशों में अपने निवेश को बढ़ा रहे हैं। इन देशों में तेल और गैस के भंडार हैं। भारत में तेल और गैस के भंडार कम है, लेकिन उपभोग बहुत ज्यादा है। भारत द्विपक्षीय सहयोग के साथ साथ शंघाई सहयोग संगठन के मंच का इस्तेमाल भी इन देशों से संबंध गहरा बनाने में कर सकता है। (संवाद)