जब से अखिलेश यादव अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, उसी समय से उनका जनसमर्थन और मजबूत होता जा रहा है। वे अपनी पार्टी के सांसदों, विधायकों और अन्य कार्यकत्र्ताओं में ही लोकप्रिय नहीं हुए हैं, बल्कि कभी मुलायम सिंह के बहुत नजदीक रहे बड़े नेताओं का साथ भी उनको मिल रहा है।
85 साल के उदय प्रताप सिंह एक उदाहरण हैं। वे मुलायम सिंह के गुरु रह चुके हैं। वे कवि और साहित्यकार हैं। उन्हें मुलायम ने कई बार सांसद बनाया हैं। लेकिन उनका समर्थन भी अखिलेश यादव को ही मिल रहा है। वे बाप बेटे के झगड़े मे बाप का साथ छोड़ चुके हैं।
वही हाल बलवंत सिंह रामूवालिया का भी है। श्री रामूवालिया पंजाब के हैं। उन्हें पंजाब से उत्तर प्रदेश बुलाकर मुलायम ने मंत्री बनवा दिया। लेकिन अब वे भी मुलायम का साथ छोड़ चुके हैं और अब पूरी तरह मुलायम के साथ हैं।
वही हाल किरणमय नंदा का भी है। वे पश्चिम बंगाल के हैं। उत्तर प्रदेश से उनका कोई लेना देना नहीं है। समाजवादी पार्टी का भी पश्चिम बंगाल में कोई बजूद नहीं है। इसके बावजूद मुलायम सिंह ने उन्हें अपनी पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया और लंबे अरसे से मुलायम की कृपा से ही राज्य सभा के सदस्य हैं। पर वे भी मुलायम का साथ छोड़ चुके हैं। जिस सम्मेलन में अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया, उस बैठक की अध्यक्षता किरणमय नन्दा ही कर रहे थे।
राजनैतिक विश्लेषकों को उस समय बहुत बड़ा झटका लगा, जब मुलायम सिंह के साथ लंबे समय तक राजनीति करने वाले रेवती रमन सिंह भी अखिलेश के साथ खड़े दिखाई दिए। जिस सम्मेलन में अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया, उस सम्मेलन में भी वे मौजूद थे।
पार्टी का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान उन नेताओं से अलग हैं। वे बाप और बेटे के बीच लगातार सुलह की कोशिश में लगे हुए थे। उन्होंने किसी एक का पक्ष नहीं लिया। अमर सिंह से उनका 36 का आंकड़ा रहा है। इसके कारण उनके लिए मुलायम का साथ छोड़ना बहुत आसान था, लेकिन उन्होंने दोनों से नजीदीकी बनाए रखी और अब उन्होंने दोनों से समान दूरी बना ली है।
अपने 5 साल के कार्यकाल में अखिलेश यादव ने अपनी एक अच्छी छवि बना ली है। उनकी छवि विकास पर ध्यान देने वाले एक मुख्यमंत्री की रही है, जो अपराधियों को अपने से दूर रखना चाहता है।
अखिलेश की प्रशंसा कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के नेता भी कर रहे हैं। अब वे दोनों उनके साथ चुनावी गठबंधन करना चाहते हैं।
कांग्रेस की मुख्यमंत्री उम्मीदवार शीला दीक्षित ने भी अखिलेश की प्रशंसा की है और कहा है कि यदि कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन होता है, तो मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी से हटते हुए उन्हें खुशी होगी और वे अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहेंगी। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने भी अखिलेश से चुनावी समझौते के पक्ष में अपनी राय रखी है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते रहे हैं कि यदि उनकी पार्टी अकेली लड़ी, तब भी बहुमत प्राप्त कर लेगी और यदि उसने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, तो गठबंधन को 300 सीटें मिलेंगी।
बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता समाजवादी पार्टी से चुनावी गठबंधन चाहते हैं। कांग्रेस ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय लोकदल का भी यही हाल है। वह भी अखिलेश से चुनावी समझौता चाहता है। प्रदेश की अन्य अनेक छोटी पार्टियां भी अखिलेश के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से चुनावी समझौता कर चुनाव लड़ना चाहती है।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि समाजवादी पार्टी में विभाजन से पार्टी को नुकसान होगा, लेकिन अखिलेश ने कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनावी मोर्चेबंदी कर ली, तो मुस्लिम उनके पीछे इकट्ठे हो जाएंगे और अखिलेश एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाएंगे। (संवाद)
अखिलेश यादव का राजनैतिक कद बढ़ा
अन्य दलों के समर्थक भी मुख्यमंत्री के हुए मुरीद
प्रदीप कपूर - 2017-01-10 12:15
लखनऊः समाजवादी पार्टी के झगड़ों के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक कद्दावर नेता के रूप में उभरे हैं। सच कहा जाय तो आज समाजवादी पार्टी में उनका कद सबसे ज्यादा हो गया है। वे अपनी पार्टी के लोगों के ही चहेते नहीं रहे, बल्कि अन्य पार्टियों के समर्थक भी उनके मुरीद होते जा रहे हैं।