लेकिन केजरीवाल द्वारा यह साफ कर दिए जाने के बाद कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और पंजाब का मुख्यमंत्री कोई पंजाबी ही होगा, राजनैतिक विवाद समाप्त हो गया। मनीष सिसोदिया के उस बयान का पंजाब के चुनाव पर असर पड़ना लाजिमी है। आखिर सिसोदिया ने वैसा कहा क्यों? क्या वास्तव में आम आदमी पार्टी की इस तरह की कोई योजना है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि वहां आम आदमी पार्टी ने अपना कोई मुख्यमंत्री चेहरा पेश नहीं किया है। उसने अपने कुछ बड़े नेताओं को भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद पार्टी से बाहर कर दिया था। नवजोत सिंह सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होना चाहते थे, लेकिन उनकी शर्त थी कि उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाय। पर उनकी इच्छा का पूरी करने से पार्टी ने स्वीकार कर दिया। उन्हें तो यहां तक कह दिया गया कि या तो वे खुद चुनाव लड़ें या उनकी पत्नी चुनाव लड़ें। दोनों को एक साथ टिकट नहीं मिलेंगे, क्यांेंकि आम आदमी पार्टी का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता।
सवाल उठता है कि सिद्धु को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश क्यों नहीं किया गया? यदि कोई और उम्मीदवार इस पद के लिए केजरीवाल या पार्टी की नजर मंे होता तो बात समझी जा सकती थी, लेकिन यहां तो कोई उम्मीदवार ही नहीं है। फिर दिक्क्त क्या थी? क्या ऐसा तो नहीं है कि केजरीवाल वास्तव में पंजाब में मुख्यमंत्री बनने में दिलचस्पी रखते हैं? वे दिलचस्पी रख सकते हैं, क्योंकि वे 2019 के चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावा करते हुए नरेन्द्र मोदी का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बनना चाहते हैं और चुनाव मे भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा बनाना चाहते हैं।
यह सच है कि दिल्ली में केजरीवाल इसलिए मुख्यमंत्री हैं, क्योंकि दिल्ली में और देश में भी भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में विशेष प्रकार का गुस्सा है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए ही केजरीवाल राजनीति में आए हैं। इसके साथ यह भी सच है कि नरेन्द्र मोदी भी भ्रष्टाचार के कारण कांगे्रसे की अलोकप्रियता के कारण ही देश के प्रधानमंत्री बने हैं। यानी दोनों नेता अपने अपने वर्तमान पदों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में हुए बड़े आंदोलन के कारण विराजमान हैं। लेकिन भ्रष्टाचार अभी भी जारी है। नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे यह लगे कि वे भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए गंभीर हैं। नोटबंदी की उनकी घोषणा को भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ अबतक का किया गया सबसे बड़ा हमला माना गया था, लेकिन उस घोषणा के दो महीने बीत जाने के बाद साफ हो गया है कि उससे न तो भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही काला धन कम हुआ। उल्टे बैंकों में और भ्रष्टाचार बढ़ गए और नये काले धन का सृजन हुआ। यानी नोटबंदी ने भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया, बल्कि उसे और बढ़ा दिया।
भ्रष्टाचार के आंदोलन का नेतृत्व कर चुके केजरीवाल को यह पता है कि देश में अभी भी यह बड़ा मुद्दा है और नरेन्द्र मोदी इस पर कुछ कर नहीं पा रहे हैं। इसलिए अगले चुनाव में भ्रष्टाचार के खिलाफ झंडा उठाने वाला कोई चेहरा सामने आ जाय, तो जनता उनके साथ हो सकती है। केजरीवाल वह चेहरा बनना चाहते हैं, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुए वह यह चेहरा नहीं बन सकते। यह सच है कि केजरीवाल सरकार के कार्यक्षेत्र में आने वाले विभागांें में इस समय भ्रष्टाचार अपने निम्नतम स्तर पर है। बिजली बोर्ड और जल बोर्ड में होने वाला भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो चुका है। परिवहन विभाग से भी दलाल भाग खडे हुए हैं। दिल्ली सरकार के अन्य दफ्तरों में भी अब दलाल नहीं देखे जाते।
पर समस्या यह है कि केजरीवाल सरकार का अधिकार क्षेत्र बहुत सीमित है। वे जब तक राजनैतिक भ्रष्टाचारियों को कानून के शिकंजे में नहीं लाते, तब तक भ्रष्टाचार के चैंपियन होने का श्रेय उनको नहीं मिलेगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुए वे किसी भ्रष्ट राजनेता पर हाथ नहीं डाल सकते, क्योंकि दिल्ली सरकार का अंटी करप्शन ब्यूरो अब उनके पास नहीं है। यदि वह उनके पास रहता तो शायद शीला दीक्षित और अरुण जेटली जैसे नेताओं पर वे कार्रवाई कर चुके होते।
जाहिर है, जो काम वे दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में नहीं कर सकते, वह वे पंजाब का मुख्यमंत्री बनकर कर सकते हैं। यदि वे वहां के मुख्यमंत्री बन गए और अमरींदर सिंह के पूर्व कार्यकाल और बादल के पिछले 10 सालों के कार्यकाल के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई कर अपराधियों को सजा दिला देते हैं, तो राष्ट्रीय स्तर पर वे निश्चय ही नरेन्द्र मोदी का विकल्प बन सकते हैं।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या बहुमत पाने के बाद केजरीवाल वहां का मुख्यमंत्री बन सकते हैं? वे हरियाणा में पैदा हुए और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। दिल्ली में तो पूरे देश के लोग आकर बसे हुए हैं, इसलिए यहां हरियाणवी या बिहारी होना कोई मायने नहीं रखता, लेकिन पंजाब के लिए इसे पचा पाना कठिन है। वैसे कहा जा रहा है कि उनकी पत्नी मूल रूप से पंजाब से है और उन्होंने आयकर विभाग से इस्तीफा दे दिया है। तो क्या केजरीवाल की पत्नी वहां से मुख्यमंत्री बनेगी? (संवाद)
पंजाब चुनाव में केजरीवाल
क्या वे वहां का मुख्यमंत्री बन सकते हैं?
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-01-13 11:47
दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि पंजाब के लोग यह मानकर मतदान कर सकते हैं कि यदि उनकी आम आदमी पार्टी की सरकार बनती है, तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल होंगे। उन्होंने यह बात ’अगर मगर’ के लहजे में की थी, लेकिन उसके बाद राजनैतिक तूफान खड़ा होने लगा और अकाली दल के नेता ही नहीं बल्कि दिल्ली की राजनीति करने वाले भाजपा नेता भी इस पर कड़ी टिप्पणी करने लगे। केजरीवाल मूल रूप से हरियाणा के हैं और पंजाब हरियणा में लंबे समय से विवाद चल रहा है। इसलिए अकाली नेताओं को मौका मिल गया और उन्होंने केजरीवाल के हरियाणा मूल की दुहाई देकर पंजाब के लोगो को सतर्क करना शरू कर दिया। और इधर दिल्ली में भाजपा विधायक दल के नेता विजेन्द्र गुप्ता ने केजरीवाल पर दिल्ली से भागने की कोशिश करने का आरोप लगाना शुरू किया।