जवान के उस आरोप के बाद एक निष्पक्ष अखबार में यह खबर छपी कि जवानों के लिए भेजी गई सामग्री को वहां के आसपास के दुकानों में सैनिक अधिकारियों द्वारा आधी कीमतों पर बेचा रहा है। खरीददारी करने वालों के हवाले से वह खबर प्रकाशित की गई थी। वह खबर श्रीनगर डेटलाइन से छपी थी। यदि यह सच है तो इसे बिल्कुल ही स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह घटना आंखें खोल देने वाली है। इसकी जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए।

सरकार जवानों के लिए करोड़ों रुपये उनके खाने पर खर्च करती है। उनकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनके लिए सामग्री की आपूर्ति की जाती है। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए जो उन्हें भेजा जाता है, वे उन्हें मिले भी। लेकिन यादव की शिकायत के बाद जो प्रतिक्रिया सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों और गृहमंत्रालय की तरफ से आ रही है, उससे तो यही लगता है कि इस मामले को रफा दफा करने की कोशिश की जा रही है।

सबसे पहले तो श्री यादव को उनके स्थान से हटाकर दूसरी जगह भेज दिया गया। उसके बाद उनके बारे में मीडिया में फैलाया जा रहा है कि वे अनुशासनहीन है और इस तरह की खुराफात पहले भी करते रहे हैं। उन्हें शराबी भी बताया जा रहा है, जबकि जवानों को शराब उपलब्ध कराने की व्यवस्था खुद सरकार करती है और माना जाता है कि ठंढी जगहों पर शराब सभी जवानों की आवश्यक आवश्यकता भी है।

जहां तक अनुशासनहीनता की बात है, तो शायद उसमें सच्चाई भी है, क्योकि एक जवान से उम्मीद की जाती है कि वह अपने संगठन की खामियों को सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं करे। लेकिन यदि उनके द्वारा की गई शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही हो, तो फिर उसके पास विकल्प ही क्या रह जाता है।

अभी जिस तरह का समय है और जिस तरह की टेक्नालाॅजी लोगों को उपलब्ध है, उसके तहत सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि बिना सार्वजनिक हुए जवान अपनी शिकायत अधिकारियों तक पहुंचा सकें और आंतरिक शिकायतों पर आंतरिह बहस भी चला सकें। यदि बीएसफ का अपना कोई वेबसाइट हो और उस वेबसाइट पर अपनी शिकायत डालने की व्यवस्था कर दी जाय, तो शिकायतों के सार्वजनिक होने से बचा जा सकता है। हां, ऐसी व्यवस्था हो कि उस वेबसाइट को बीएसफ के लोग ही देख सकें।

यदि इस तरह की व्यवस्था होती, तो शायद तेज को अपनी शिकायत लेकर सार्वजनिक मंच पर आने की जरूरत नहीं पड़ती। बीएसएफ के लोगों तक ही यह शिकायत सीमित रहती और उनके बीच में ही समाधान भी निकाल दिया जाता।

जिस तरह की समस्या की चर्चा तेज ने की है, वह सिर्फ बीएसएफ तक सीमित नहीं है। गृहमंत्रालय के तहत अन्य अर्दधसैनिक बल भी हैं। वहां भी इस तरह की समस्या हो सकती है। बीएसफ के अलावा सीआरपीएफ, सीआईएसफ, आईटीबीपी और होमगार्ड भी है। वहां भी हजारों जवानों को सरकारी खर्चे पर विशेष पोस्टिंग के दौरान खाना खिलाया जाता है।

उन जवानों की पोस्टिंग कभी कभी ऐसी जगहों पर होती है, जहां का माहौल बहुत ही प्रतिकूल होता है। वैसे माहौल में उन्हें विशेष किस्म का खाना खाना चाहिए। उन्हें सही खाना मिल रहा है या नहीं, इसकी भी समय समय पर जांच होती रहनी चाहिए और यदि खाने को लेकर कोई शिकायत है, तो उन शिकायतों के निबटारे की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन यहां तो शिकायत को ही हतोत्साह किया जाता है और शिकायत करना अनुशासनहीनता मानी जाती है। (संवाद)