समाजवादी पार्टी के विभाजन के बाद कांग्रेस अखिलेश गुट के साथ समझौता कर सकती है। इससे उसे तो लाभ होगा ही, उसका एक असर यह भी होगा कि मुस्लिम मतदाता इस गठबंधन के साथ जुड़ते चले जाएंगे।
उधर बहुजन समाज पार्टी की अपनी सोशल इंजीनियरिंग का फाॅर्मूला है। उसका फाॅर्मूला टिकट वितरण में सामने आ गया। उसेन कुछ 97 मुसलमानों को अपनी पार्टी का टिकट दिया है और दलितों को दिए गए टिकट की संख्या 87 है। वैसे दलितों के लिए 85 सीटें आरक्षित हैं और वहां से सिर्फ उन्हीं को टिकट दिया जा सकता है। मायावती वेमुला की याद भी दलितों को दिलाती रहेंगी और यह बताती रहेंगी कि भाजपा के जिन दो नेताआंे को उनकी मौत के लिए दलित जिम्मेदार मानते हैं, वे आज भी मोदी सरकार में मंत्री हैं। गुजरात में दलितों की कथित गौरक्षकों द्वारा की गई पिटाई को भी वह मुद्दा बनाएगी। हालांकि मायावती के अनेक ओबीसी समर्थक उन्हें छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश की कुल 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। दो अन्य सीटों पर उसके समर्थक उम्मीदवार ही जीते थे। वह नरेन्द्र मोदी के कारण संभव हो पाया था और इस बार भी नरेन्द्र मोदी ही उत्तर प्रदेश में भाजपा का चेहरा हैं। मोदी नोटबंदी को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक धर्मयुद्ध के रूप में पेश कर रहे हैं। वे अपने आपको गरीबों का मसीहा होने का दावा कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव के पहले दौर का मतदान अब एक महीना से भी कम समय का रह गया है। इस चुनाव से पता चलेगा कि नरेन्द्र मोदी का जादू अभी शेष रह गया है अथवा नहीं। उसी के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि मोदी 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी को जीत दिला सकते हैं या नहीं।
इस चुनाव में मायावती की तकदीर का भी फैसला होने वाला है। इससे पता चलेगा कि मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति के क्षितीज पर अभी और चमकेगी या वह खुद अंधेरे में गुम हो जाएंगी। अखिलेश यादव के लिए भी यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, हालांकि उनको अभी लंबे समय तक राजनीति करनी है, इसलिए यदि उनकी हार हो भी जाती है, तो फिर प्रदेश की राजनीति में चमकने का उन्हें अवसर मिलता रहेगा। राहुल गांधी के लिए भी यह चुनाव कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है। जब से वे कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनाए गए हैं और पार्टी की कमान उनके हाथ में दी गई है, तब से उनकी पार्टी लगातार चुनाव हारती जा रही है। वैसे अखिलेश के साथ गठबंधन कर वे अपनी साख बचा सकते हैं।
भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके पास मुख्यमंत्री का कोई उम्मीदवार नहीं है। लेकिन उसके नेता उम्मीद कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला उनके और समाजवादी पार्टी के बीच होगा, लेकिन सपा के आंतरिक झगड़े के कारण बसपा को मुख्य मुकाबले में आने का मौका मिल रहा है। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला अखिलेश और मोदी के बीच
सपा के विभाजन ने भाजपा को अपनी रणनीति बदलने को बाध्य किया
हरिहर स्वरूप - 2017-01-16 12:02
उत्तर प्रदेश की पिछले दिनों की घटनाओं ने भारतीय जनता पार्टी को अब मुख्य धुरी के रूप में खड़ा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह एक ऐसा चुनाव है, जिसे वह किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहेगी। उसकी हार का मतलब होगा कि लोगों ने नोटबंदी को नकार दिया है। यदि ऐसा हुआ तो आने वाले सभी चुनावों में भाजपा की जीत कठिन हो जाएगी, क्योंकि उत्तर प्रदेश द्वारा नोटबंदी को नकारने का मतलब है देश द्वारा इसे नकार दिया जाना और आने वाले चुनावों में भी नोटबंदी भाजपा की जीत को दुष्कर बना सकती है।