वैसे यह भी मीडिया रिपोर्ट है कि टूट गई बातचीत को पटरी पर लाने के लिए खुद सोनिया गांधी ने पहल की थी और उसके बाद ही दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हो सका था। लेकिन सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल और कांग्रेस महासचिव व यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने गठबंधन का सारा श्रेय प्रियंका गांधी को दे डाला। इसके पीछे की राजनीति बिल्कुल साफ है। ये दोनों नेता यह संदेश देना चाह रहे थे कि प्रियंका गांधी अब राजनीति मे सक्रिय हो चुकी हैं। उनकी राजनैतिक सक्रियता की मांग बहुत पुरानी है। सच तो यह है कि जिस समय राहुल गांधी का सक्रिय राजनीति में प्रवेश भी नहीं हुआ था, उसके पहले से ही कांग्रेसी प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग कर रहे थे। उनकी मांग के विपरीत जब राहुल ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया, तो अनेक कांग्रेसियों को निराशा हाथ लगी, क्योंकि उन्हे लग रहा था कि पतन की ओर लगातार बढ़ रही कांग्रेस को प्रियंका गांधी का करिश्मा ही बचा सकता है।
देर से ही सही, प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में प्रवेश की घोषणा अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं ने कर दी है। उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव प्रियंका गांधी के लांचिंग का चुनाव है। कांग्रेसी नेताओं ने समझदारी दिखाई है कि प्रियंका को उत्तर प्रदेश की राजनीति की रणभूमि में अखिलेश की कवच और समाजवादी पार्टी की ढाल के साथ उतारा गया है। यदि कांग्रेस को सभी सीटों पर लड़ाते हुए प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारा जाता, तो उनकी फजीहत होना तय था, क्योंकि कांग्रेस की हालत वहां बेहद खराब है। वैसे चुनाव पूर्व होने वाले मतदाता सर्वेक्षण प्रायोजित होते हैं और वे सच्चाई से निर्देशित नहीं होते, बल्कि प्रायोजको के पैसे से निर्देशित होते हैं, इसलिए उसे आमतौर पर गभीरता से नहीं लेना चाहिए। पर कांग्रेस की जो दशा इन प्रायोजित चुनाव पूर्व मतदाता सर्वेक्षणों में दिखाई पड़ रही थी, वह गलत नही थी। अधिकांश सर्वेक्षण बता रहे थे कि कांग्रेस को 10 सीटें मिलना भी आसान नही है।
जाहिह है, यदि प्रियंका कांग्रेस के लिए प्रचार भी करतीं, तो ज्यादा से ज्यादा उसे 20 सीटें मिल पाती और इस तरह कांग्रेस के तुरुप का पता बुरी तरह पिट जाता। लेकिन कांग्रस और प्रियंका ने खुद समझदारी दिखाते हुए समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनावी रण में शामिल होने का फैसला किया। पार्टी को तो फायदा होगा अखिलेश के कारण, लेकिन उसका श्रेय प्रियंका गांधी के धुंआधार और करिश्माई भाषण को दिया जाएगा। वैसे कांगे्रस के अंदर से यह भी खबर आ रही है कि शायद प्रियंका प्रचार करें ही नहीं। यानी अभी भी राहुल गांधी नहीं चाहते हैं प्रियंका राजनीति में सक्रिय होकर उनके लिए परेशानी का सबब बनें।
यदि यह मान भी लिया जाय कि प्रियंका पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो रही है, तो यह भी माना जाना उचित होगा कि अब कांग्रेस के बुरे दिन लद गए और उसके पतन का दौर समाप्त हो गया? आखिर प्रियंका गांधी में ऐसा क्या है, जिसके कारण वह कांग्रेस को फिर बुलंदियों पर पहुंचाने की क्षमता रखती हैं? भारतीय जनता पार्टी नेता विनय कटियार ने तो उनकी एक खूबी उनकी खूबसूरती को बता दिया और कहा कि उनकी अपनी भाजपा में उनसे भी ज्यादा खूबसूरत चेहरे हैं, इसलिए उनकी पार्टी को प्रियंका से कोई खतरा नहीं है। उस तरह की सोच अपनी जगह है, लेकिन यदि आप कांग्रेसी नेताओं से बात करें, तो वे बताते हैं कि प्रियंका मे करिश्मा है और लोग उनमें उनकी दादी इन्दिरा ंगांधी की झलक देखते हैं। चूंकि इन्दिरा गांधी एक सफल नेता थीं, इसलिए प्रियंका भी सफल नेता होंगी।
इन्दिरा की छवि दिखने वाली बात आज के समय में बिल्कुल ही हास्यास्पद है, क्योंकि इन्दिरा को इस दुनिया से बिदा हुए 32 साल से भी ज्यादा हो गए हैं। जिन्होने इन्दिरा गांधी को देखा और समझा है, उनकी उम्र आज 50 साल से भी कहीं बहुत ज्यादा हो गयी है। आज के युवा, जिन्होंने इन्दिरा को देखा ही नहीं, वे प्रियंका गांधी मे इन्दिरा की छवि कैसे देख लेंगे? सच्चाई यही है कि आज के चुनावी नतीजे आज के युवा तय करते हैं और उन्हें अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने के लिए प्रियंका को उनके साथ जुड़ना होगा। राहुल गांधी भी उनके साथ जुड़ने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अन्ना आंदोलन के बाद राहुल गांधी युवाओं के उपहास के पात्र बन गए हैं।
प्रियंका गांधी देश के मसलों और युवाओं की समस्याओं पर अपना मुह नहीं खोलतीं। वह भ्रष्टाचार और काला धन पर भी अपना मुह नही खोलती। आरक्षण जेसे विभाजनकारी मुद्दे पर भी उन्होने कभी कुछ नहीं बोला। आर्थिक नीतियांे और किसानों की हो रही आत्म हत्याओं पर भी वह चुप ही रही हैं। उनका राजनैतिक दर्शन क्या है, यह भी किसी को नहीं पता। अपने भाषणों मे वे विवादित मसलों का जिक्र करते हुए शब्दों का सतर्क इ्रस्तेमाल करना जानती भी हैं या नहीं, इसके बारे में भी नहीं पता। इसलिए यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि कांग्रेस के अन्दर वह एक दूसरा राहुल गांधी साबित होगी या अपनी अलग ऐसी पहचान बना पाएगी, जिससे देश की जनता उनकी ओर आकर्षित हो पाएंगे। (संवाद)
क्या प्रियंका कांग्रेस का पतन रोक पाएंगी?
वैसे राजनीति में सक्रिय होने का समय अच्छा चुना है
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-01-28 11:17
प्रियंका गांधी के कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आने की चर्चा जोरों पर है। उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच चल रही गठबंधन की बातचीत टूट चुकी थी, तो कहते हैं कि प्रियंका ने आगे आकर असंभव सा दिखने वाले गठबंधन को संभव बना दिया और कांग्रेस को अपनी ताकत से कहीं बहुत ज्यादा सीटें दिलवा दीं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 29 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और लोकसभा चुनाव में तो दोनों शीर्ष नेता सोनिया गांधी और राहुल के अलावा अन्य सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। सोनिया और राहुल की जीत भी समाजवादी पार्टी के समर्थन के कारण संभव हुई थी। मुलायम सिंह यादव ने उन दोनों के खिलाफ अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था और उनकी पार्टी के सदस्यों ने कांग्रेस के दोनों नेताओ को जीत सुनिश्चित कराने मे मदद की थी।