लेकिन वे सफल नहीं हो सके। इसका असली कारण यह है कि कांग्रेस आलाकमान ने उनके प्रस्ताव में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। 14 या 15 लोकसभा संदस्यों का सहयोग पाने के लिए 5 को मंत्री बनाना कांग्रेस के लिए महंगा सौदा था और उसने जनता दल (यू) के सांसदों को निराश कर दिया। और ललन सिंह का यह प्रकरण जनता दल (यू) में किसी विभाजन का साक्षी नहीं बन पाया।

बिहार की राजनीति जाति को लेकर बहुत ही संवेदनशील है। इसलिए नीतीश ने ललन सिंह की ही जाति के व्यक्ति को उनकी जगह अध्यक्ष बना दिया है। ललन सिंह और उनके कुछ समर्थक मुख्यमंत्री पर जातिवादी होने की आरोप अब नहीं लगा पाएंगे और अगर लगाएंगे भी तो उसमें कोई दम नहीं होगा। शिवानंद तिवारी, प्रभुनाथ सिंह और ललन सिंह नीतीश पर अगड़ी जाति के लोगों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि वे पिछड़े वर्गो को तरजीह दे रहे हैं। जबकि पिछड़े वर्गों के लोगों में आम धारणा थी कि सरकार तो नीतीश की है, लेकिन शासन ललन चला रहे थे। जिस जाति के ललन सिंह हैं, उसकी संख्या बिहार की कुल संख्या के 3 प्रतिशत भी नहीं है, लेकिन सत्ता के अधिकांश पदों पद उसी जाति के लोग दिखाई दे रहे थे। बिहार में कहावत बन गई थी कि सरकार कुर्मी का शासन भूमिहार का। इसके कारण नीतीश कुमार की छवि को भारी नुकसान हो रहा था। बिहार में पिछड़े वर्गो के लोगों की संख्या 68 फीसदी है। चुनाव में हारजीत का दारोमदार उनके समर्थन और विरोध पर ही निर्भर करता है।

बिहार में लालू यादव की लुटिया ही इसीलिए डूबी कि उन्होंने अपनी जाति के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों की उपेक्षा की थी। जबतक उन्हें पिछड़ों को समर्थन मिलता रहा, चैतरफा विरोध के बावजूद वे चुनाव जीतते रहे थे। उनके विरोघी आपस में पूरी तरह एकजुट होने के बाद भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाते थे। बिहार की अगड़ी जातियों ने लालू को हटाने के लिए क्या कुछ नहीं किया थाण् लेकिन जबतक उन्हें पिछड़ों को समर्थन मिलता रहा, वे चुनाव जीतते रहे। लेकिन पिछड़ों की उपेक्षा करके उन्होंने अपनी राजनीति खराब कर ली। नीतीश की सरकार में भी पिछड़े अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे थे। पिछले 18 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों में नीतीश की पार्टी की हार के पीछे पिछड़े वर्गोे के लोगों के बीच उनकी गिरती साख एक बड़ा कारण थी। संभवतः उसी हार से सीख लेकर नीतीश ने ललन सिंह से अपनी दूरी बनानी शुरू कर दी, जिसका अंजाम उनके अध्यक्ष पद से अस्तीफके के रूप में सामने आया है।

नीतीश कुमार की सरकार के ऊपर सबसे बड़ा आरोप प्रशासन में भ्रष्टाचार को लेकर लगता है। बिहार में भ्रष्टाचार निश्चय ही किसी भी मुख्यमंत्री के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। लालू राबड़ी सरकार के दिनों में तो भ्रष्टाचार के कारण मुख्यमंत्री का आदेश तक अमल नहीं हो पाता था। नीतीश ने विकास कार्यों में बाधा पहुंचाने वाले भ्रष्टाचार पर तो बहुत हद तक अंकुश लगा दिया हैण् लेकिन जहां लोगों का साबका प्रशासन से पड़ता है वहां अभी भी भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है। ललन सिंह के बारे में कहा जाता था कि नौकरशाहों की ट्रांस्फर पोस्टिंग में उन्हीं की चलती है। इसमें बहुत हद तक सचाई भी थी। जाहिर है भ्रष्ट प्रशासन के पीछे ललन सिंह की भूमिका की भी चर्चा हुआ करती थी। इसके कारण भी नीतीश के लिए यह जरूरी हो गया था कि वे ललन सिंह को राजकाज में हस्तक्षेप करने नहीं देे।

ललन नीतीश पर लोकतांत्रिक तरीके से काम नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं। इसमें सचाई हो सकती है, लेकिन यह आरोप ललन क्या इसीलिए लगा रहे हैं कि नीतीश की कार्य शैली स व बाकई नाखुश हैं? नीतीश के काम करने के जिस तरीके पर एमराज जताया जा रहा है, वह उनका बहुत पुराना तरीेका रहा है। जो उनको जानते हैं, उन्हे यह पता है कि इसी तरीके से वे पहले भी काम करते हैं। सवाल उठता है कि यह तरीका ललन को पहले क्यों नहीं चुभ रहा था? सच कहा जाय तो राजनीति में ललन सिंह जो कुछ भी आज हैं, वह नीतीश के काम करने के उसी तरीके के कारण हैं, जिसका आज वे विरोध कर रहे हैं।

इस साल चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार की पार्टी में ललन सिंह जैसे और भी कई नेता हैं, जो समय समय पर अपना असंतोष व्यक्त करते रहेंगे। उससे राजनीति में गर्मी बनी रहेगी। इस तरह का असंतोष सांसदों और पूर्व सांसदों की ओर से ज्यादा दिखाई देगा, जिन्हे खुद चुनाव नहीं लड़ना है। लेकिन चुनावी महायुद्ध का निर्णय इन असंतोषों से नहीं, बल्कि नीतीश सरकार की उपलब्धियों और नाकामियों ये होना है। बिहार की जनता में नीतीश सरकार के लिए जो अच्छी धारणा बनी थी, वह समाप्त हीं हुई है। पिछली सरकारों से बेहतर सरकार के रूप में नीतीश सरकार के वे भी प्रशंसा करते हैं जो उनके विरोधी हैं। प्रशासन में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार नीतीश सरकार के खिलाफ एक मात्र बड़ा मुद्दा उनके विरोधियों के पास आज है। यदि चुनाव के पहले के महीनों में नीतीश ने सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ तेज अभियान चलाया और भ्रष्ट अघिकारियों की संपत्ति जग्त करनी शुरू कर दी, तो उनके खिलाफ यह मुद्दा भी उनके विरोधियों के हाथ से निकल जाएगा। (संवाद)