दोनों के इस गठबंधन का सबसे बड़ा असर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओ पर पड़ेगा। अब उनके वोट नहीं बिखरेंगे और वे एक साथ इस गठबंधन के पास जाएंगे। इसका असर प्रदेश की 100 सीटों पर पड़ेगा, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है।
इस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश के राजनैतिक समीकरणों को बदल डाला है। यह देश की राजनीति में आया एक बड़ा बदलाव है। एक राष्ट्रीय पार्टी एक क्षेत्रीय पार्टी की गोद में जा बैठी है। दोनो के नेता युवा है और सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े होने के बावजूद दोनों सत्ता विरोधी छवि के साथ प्रदेश के चुनाव का सामना कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में इस समय तिकोना संघर्ष देखा जा रहा है। यह संघर्ष सपा- कांग्रेस गठबंधन, भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पाटी के बीच है। तीनों मे से जो 30 फीसदी वोट पाएगा, जीत उसी की होगी। जाहिर है, तीनो 30 फीसदी वोट पाने के लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं।
कुछ समय पहले बहुजन समाज पार्टी इन तीनों में सबसे आगे दिखाई पड़ रही थी। लेकिन एकाएक अखिलेश यादव की छवि चमकने लगी और लगने लगा कि वे चुनावी दौड़ में सबसे आगे हो गए हैं। फिर समाजवादी पार्टी का अंदरूनी झगड़ा सामने आने लगा। मुलायम परिवार मे गृहयुद्ध छिड़ गया और लगने लगा कि उत्तर प्रदेश का मुकाबला अब भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच मे ही सिमट कर रह गया है।
उसके बाद समाजवादी पार्टी के अंदरूनी संघर्ष पर निर्वाचन आयोग का फैसला आया। उसने पूरा राजनैतिक परिदृश्य को ही बदल डाला। अखिलेश यादव के हाथ में समाजवादी पार्टी आ गई और मुलायम व शिवपाल ने उनके सामने समर्पण कर दिया। उससे अखिलेश एक बार फिर सितारे की तरह चमकने लगे। उसके बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन होने के बाद तो उनकी स्थिति बहुत ही बेहतर हो गई है। यही कारण है कि जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त होकर वे चुनाव लड़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश को मुख्यतौर पर तीन भागों में बांटकर देखा जा सकता है। मध्य उत्तर प्रदेश में 110 सीटें हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 150 सीटें हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 125 सीटें हैं। मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुकाबला मुख्य रूप से सपा- कांग्रेस गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के बीच में है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मायावती की बहुजन समाज पार्टी को मजबूत माना जाता रहा है।
सबसे पहले मतदात पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही हो रहे हैं। यहां बहुजन समाज पार्टी के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी भी मजबूत स्थिति में है। बसपा के मजबूत होने का कारण है मायावती की जाति जाटवों की संख्या का यहां ज्यादा होना, जबकि भारतीय जनता पार्टी अपनी सांप्रदायिक फैक्टरी यहां खूब चलाती है। लेकिन यहां दो फैक्टर ऐसे हैं, जो चुनावी नतीजों को बदल सकते हैं। पहला फैक्टर तो खुद अखिलेश का आकर्षण है, जिसके कारण मुस्लिम उनकी ओर मुखातिब हो सकते हैं।
दूसरा कारण यह है कि गैर दलित जाटव मायावती के खिलाफ भी जा सकते हैं। गौरतलब हो कि दलितों का 55 फीसदी जाटव हैं, जबकि गैर जाटव दलित 45 फीसदी हैं। यहां वाल्मिकियों की भी अच्छी खासी जनसंख्या है और वे भारतीय जनता पार्टी की ओर भी मुखातिब हो सकते हैं, क्योकि उनका भी सांप्रदायिककरण कर दिया गया है। मायावती ने मुसलमानों को भारी संख्या में अपनी पार्टी से टिकट दे दिया है। उसके कारण हिन्दुओ का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचा सकता है।
लेकिन मध्य उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गणित बिल्कुल अलग है। वहां कांग्रेस-सपा गठबंधन को ज्यादा चुनौती नहीं मिल रही है। यही कारण है कि अखिलेश जीत की ओर आश्वस्त होकर बढ़ रहे हैं। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    अखिलेश अपनी जीत के प्रति आश्वस्त
बसपा और भाजपा का सांप्रदायिक गणित काम नहीं आएगा
        
        
              हरिहर स्वरूप                 -                          2017-01-30 12:42
                                                
            
                                            लखनऊ में हो रहे नाटक गजब के थे। एक रोज खबर आई कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मे गठबंधन हो गया है। दूसरे दिन खबर आई कि दोनों के बीच चल रही बातचीत भी समाप्त हो गई है और गठबंधन अब लगभग असंभव हो गया है। उसके बाद अनेक टिप्पणीकारों ने गठबंधन न होने पर दनादन अपनी टिप्पणियां भी कर डालीं। लेकिन अबली सुबह को यह खबर आई कि दोनों पाटियों के बीच गठबंधन हो गया है। कांग्रेस 105 सीट पर लड़ेगी और समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर।