ट्रप ने सत्ता संभालते ही अमरिका को ट्रांस प्रशांत पार्टनरशिप संधि से बाहर कर लिया और विदेशों में निवेश कर रहे बड़े औद्योगिक घरानों को कहा कि वे अपने निवेश वापस अपने देश में लाएं। इससे अब साफ हो गया है कि चुनाव के पहले जो ट्रंप कह रहे थे वे सिर्फ चुनावी जुमले नहीं थे, बल्कि वे उनकी गंभीर प्राथमिकता थी। उन्हें बड़े औद्योगिक घरानों को कहा है कि कंपनियों की आय पर लगने वाले टैक्स की दरों को वे कम कर देंगे, यदि उन्होंने उनकी बात मानी और यदि बात नहीं मानी तो तो उन्हें नतीजे भुगतने के लिए भी कहा जा रहा है।

ट्रंप की चेतावनियों का असर भी दिखाई पड़ रहा है। अनेक कंपनियों ने अब अमेरिकियों को रोजगार देना शुरू कर दिया है। राष्ट्रपति ने अपनी व्यापार प्राथमिकताएं भी स्पष्ट कर दी हैं। अब वे बहुपक्षीय व्यापार संबंधों को ज्यादा तरजीह नहीं देना चाहते। उसकी जगह वे द्विपक्षीय व्यापार संधियों में विश्वास करना चाहते हैं और उन सबंधों में भी वे अमरिकी हितों को बलिदान करने के पक्ष में नहीं हैं।

अमेरिका अब आयात की जगह घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रहा है और इसके कारण उसने व्यापार पर प्रतिबंध बढ़ाने शुरू कर दिए हैं और घरेलू उत्पादनों को बढ़ावा देने वाली नीतियों को अपनाना शुरू कर दिया है। इसके कारण चीन की विकास दर को खतरा पैदा हो गया है। ट्रंप ने चीन से होने वाले आयात पर 45 फीसदी सीमा शुल्क लगा देने की भी बात की है। सके कारण दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। चीन ने कहा भी है कि यदि अमेरिका ने उसके व्यापार पर हमला किया, तो वह भी जवाबी कार्रवाई करेगा।

लेकिन दोनों देशों की ताकतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में अमेरिका चीन पर भारी पड़ेगा। वह चीन की बांह को मरोड़ने की बेहतर स्थिति में है और चीन अपनी कार्रवाइयों से उसका ज्यादा नुकसान नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि अमेरिकी निर्यात का सिर्फ 7 फीसदी ही चीन आयात करता है, जबकि चीन के निर्यात का 18 फीसदी अमेरिका जाता है। अमेरिका चीन से ज्यादा ताकतवर और समृद्ध है। चीन के हमले का सामना करने की ताकत अमेरिका के पास है, लेकिन अमेरिकी हमले का सामना करने की ताकत चीन के पास नहीं है। कहने का मतलब है कि निर्यात की हानि होने के कारण चीन का नुकसान होगा और इससे वहां बेरोजगारी पैदा होगी।

ट्रंप की अमेरिका को महान बनाने और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेक इन इंडिया की नीति में समानता है। दोनों नेता अनेक मामले में एक ही धरातल पर खड़े दिखाई देते हैं, हालांकि दोनो देखने मे अलग लगते हैं। दोनों सर्वसमावेशी विकास चाहते हैं और विदेशी व्यापार की ताकतों से अपने अपने देशों को बचाना चाहते हैं। ट्रंप चीन और मेक्सिको से अमेरिकी हितों को बचाना चाहते हैं। वे नाफ्टा से भी बाहर आना चाहते हैं। वे एच1 बी वीजा को भी अब कमजोर करना चाहते हैं।

ग्लोबलाइजेशन को ट्रंप की नीतियों से प्रभावित होना स्वाभाविक है। उनकी संरक्षणवाद की नीतियां ग्लोबलाइजेशन के लिए मौत का फरमान हैं। इसके कारण चीन को अपने विकास की रफ्तार बनाए रखना असंभव हो जाएगा। चीन ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि वह ग्लोबलाईजेशन का सबसे बड़ा लाभान्वित देश है। इसके कारण ही वह मुक्त व्यापार का सबसे बड़ा पैरवीकार है।

चीन और अमेरिका के बीच बदल रहे इन संबंधों का लाभ भारत को उठाना चाहिए। इसके लिए उन्हें दोनों देशों के संबंधों और उनके नतीजे पर बारिकी से नजर रखनी होगी और दोनों देशों के साथ अपना व्यापारिक राजनय तेज और मजबूत करना होगा। (संवाद)