राज्य में 33 जिला हैं। सभी जिलों के पंचायत प्रमुखों के लिए चुनाव हुए थे। सभी के नतीजे भी आ गए हैं। कांग्रेस ने 33 में से 24 जिला पंचायत प्रमुखों के पदों पर सफलता हासिल कर ली है।

मुख्य विपक्षी भाजपा के उम्मीदवार शेष 9 जिलों के पंचायत प्रमुख के रूप में स्ािापित होने में सफल हुए हैं। भाजपा को इन चुनावों से बहुत उम्मीदें थी। उसे लग रहा था कि वह इसमें हार के सिलसिले को तोड़ने में कामयाब हो जाएगी। लेकिन उसे एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा है। इस हार के बाद भाजपा में मायूसी छा गई है।

जोधपुर, उदयपुर और जयपुर जैसे महत्वपूर्ण जिलों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया है। जयपुर तो राज्य की राजधानी है ही, जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलौत का गृह जिला है। कोटा और नागौर जिले में बाजी भाजपा के हाथ लगी है। कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका बुंदी में लगा है।

यह पहला मौका था जब कानून बनने के बाद पंचायत प्रतिनिधियों के प्रत्यक्ष चुनाव हो रहे थे। यह इस मामले मे भी पहला चुनाव था कि महिलाओ के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित थीं। सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवार कांग्रेस ने खड़े किए थे। उसने कुल 518 महिला उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि मुख्य विपक्षी भाजपा ने कुल 499 उम्मीदवार खड़े किए थे। चुनाव तीन चरणों में हुए थे।

कांग्रेस को तो भाजपा के ऊपर बढ़त मिल ही गई, इसके बावजूद इस चुनाव से उसे कुछ सीख लेने की जरूरत है। अनेक जगहों पर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ मत डाले। पार्टी ने उक जा्रच समिति का गठन् किया है, जो यह बताएगी कि किन परिस्थितियों में पार्टी के सदस्यों ने पार्टी के आदेशों का उल्लंघन किया।

ये चुनाव महत्वपूर्ण थे, क्योंकि पंचायतों के प्रतिनिधियों की भूमिका मनरेगा कार्यक्रमों के क्रियान्ययन में महत्वपूर्ण होगी। (संवाद)