इसके पहले भी वोटिंग मशीनों के खिलाफ हारने वाली पार्टियां आवाज उठाती रही हैं। सच कहा जाय तो इन वोटिंग मशीनों का विरोध उसी समय से हो रहा है, जब से इनका इस्तेमाल हो रहा है। 2009 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए दुबारा सत्ता में आई थी, तब भारतीय जनता पार्टी के नेताआंे ने ही इस पर सबसे ज्यादा सवाल उठाए थे। वह चुनाव भारतीय जनता पार्टी लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में लड़ रही थी और श्री आडवाणी ने खुद भी इन मशीनों द्वारा जारी किए गए नतीजों को संदेह की दृष्टि से देखा था।
इतिहासा एक बार फिर दुहराया जा रहा है। इस बार 11 मार्च को नतीजे आने के तुरंत बाद ही बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने आरोप लगा दिया था कि मशीनो में छेड़छाड़ की गई है और भारतीय जनता पार्टी के पक्ष मे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव नतीजे उन मशीनों के साथ की गई छेड़छाड़ के कारण ही संभव हो पाया है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव ने भी मायावती का समर्थन किया और चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े कर दिए।
चुनावी नतीजों के दिन तो नहीं, लेकिन उसके कुछ दिनों के बाद ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी मशीनों पर सवाल उठाते हुए चुनावी परिणामों पर अपना असंतोष दर्ज किया। कांग्रेस इस मामले मे चुप रही, क्योंकि उसे पंजाब में प्रचंड बहुमत मिला था। भारतीय जनता पार्टी के नेता पंजाब के चुनावी नतीजों की ओर इशारा करते हुए कह रहे थे कि यदि वास्तव में मशीनों से छेड़छाड़ की जाती, तो वहां भी उसकी सरकार बन सकती थी। मणिपुर और गोवा का उदाहरण देते हुए भारतीय जनता पार्टी के नेता कह रहे थे कि यदि मशीनों का गलत इस्तेमाल होता, तो उन दोनों राज्यों मे भी उनकी पार्टी को बहुमत मिलना चाहिए था।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड चुनाव के नतीजों पर मायावती सवाल उठा ही रही थीं कि इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के नतीजों पर सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि मशीनों के द्वारा उनके वोट अकाली दल-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों की ओर स्थानांतरित कर दिए गए, जिनके कारण उनकी पार्टी को मात्र 25 फीसदी वोट मिले औ सीटों की संख्या 20 तक ही सीमित हो गई, जबकि तीसरा स्थान पाने वाला भाजपा अकाली गठबंधन उनकी पार्टी से भी ज्यादा मत हासिल करने में सफल गया। गौरतलब हो कि अकाली-भाजपा गठबंधन को 30 फीसदी वोट मिले।
केजरीवाल तो यह भी कहते हैं कि उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को अनेक बूथों पर दो या चार वोट ही मिले, जब उनकी पार्टी के वालंटियर्स की संख्या उनसे कहीं ज्यादा थी। मायावती की तरह केजरीवाल चुनावी नतीजों को निरस्त करने की मांग तो नहीं कर रहे, लेकिन उनकी मांग है कि जिन चुनाव क्षेत्रों में वोटर वेरिफाइड पेपर आॅडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) स्लिप का इस्तेमाल किया गया है, वहां उन स्लिप की गिनती की जाय और मशीनों से निकले नतीजों का उनके नतीजों से मिलान किया जाय। यदि मशीनें सही हैं और उनके साथ छेड़छाड़ नहीं हुई है, तो दोनों के नतीजे एक ही होंगे और यदि छेड़छाड़ हुई है, तो नतीजे अलग अलग होंगे।
गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश में भी 30 विधानसभा क्षेत्रों में वोटर वेरिफाइड आॅडिट ट्रेल स्लिप का इस्तेमाल किया गया है। उन 30 विधानसभा क्षेत्रों में से 25 में भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं। 4 में समाजवादी पार्टी और एक में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार जीते हैं। उन सभी 30 विधानसभा क्षेत्रों के वीवीपीएटी स्लिप निर्वाचन आयोग के पास है। उस स्लिप की मूल अवधारणा यह है कि मतदाता मतदान के बाद एक कागज पर यह देख ले कि जिस उम्मीदवार को उसने वोट दिया है, उसी उम्मीदवार को उसका वोट पड़ा है या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर निर्वाचन आयोग ने कुछ क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल किया है।
पर निर्वाचन आयोग ने केजरीवाल की मांग मानने से इनकार कर दिया है। इनकार शायद इस तकनीकी कारण से किया गया है कि आयोग जीते हुए उम्मीदवार को जीत का प्रमाणपत्र जारी करने के बाद फिर से मतों की गिनती नहीं कर सकता। इसलिए बेहतर होता कि मायावती के उम्मीदवार सर्टिफिकेट जारी करने के पहले ही वीवीपीएटी स्लिप की गिनती की मांग करते, लेकिन उन्होंने वैसा उस समय नहीं किया और अब शायद निर्वाचन आयोग को वे वैसा करने से बाध्य नहीं कर सकते, हालांकि कोर्ट में इस मामले को ले जाने का विकल्प अभी भी उनके पास है।
इस बार चुनावी मशीनों पर उठाए जा रहे सवाल बहुत ही व्यापक हैं और इस मसले को लेकर सड़कों पर भी प्रदर्शन हो रहे हैं। इसलिए अच्छा यही रहेगा कि निर्वाचन आयोग चुनाव की निष्पक्षता को साबित करने के लिए उन वीवीपीएट पर्चियों की गिनती करे। संविधान ने आयोग को निष्पक्ष चुनाव कराने का अधिकार दिया है। अब तक उसकी निष्पक्षता पर इतना बड़ा सवाल नहीं खड़ा हुआ है और देश की जनता आम तौर पर उसकी निष्पक्षता को स्वीकार भी करती रही है। लेकिन कुछ राजनीतिज्ञों के कारण उसकी निष्पक्षता सशंकित हो, यह हमारे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। इसीलिए यह निर्वाचन आयोग को खुद साहस दिखाना चाहिए और कुछ विधानसभा क्षेत्रों की पर्चियों की गिनती करवाकर यह साबित कर देना चाहिए कि इलेक्ट्राॅनिक वोटिंग मशीनों के साथ कोई भी गड़बड़ी नहीं की गई। (संवाद)
ईवीएम पर उठते सवाल
आयोग को वीवीपीएट की गिनती करनी चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-03-17 11:58
इलेक्ट्राॅनिक मतदान मशीनों पर सवाल हमेशा से उठाए जाते रहे हैं। सैकड़ो मामले अदालतों में उठाए गए हैं और अभी भी इनसे सबंधित दो सौ मामले अलग अलग अदालतों में लंबित हैं। पांच राज्यों में हुए विधानसभा के आमचुनावों के बाद तो राजनैतिक दलों ने इन मशीनों के खिलाफ अभियान चला रखा है। निर्वाचन आयोग उन तमाम आरोपों का खंडन कर रहा है। चूंकि मशीनों के खिलाफ उन पार्टियों के नेता आवाज उठा रहे हैं, जिनकी इन चुनावों में हार हुई है। इसलिए उम्मीद यही की जा सकती है कि आयोग जो कह रहा है, वही सच है और हारी हुई पार्टियों के नेता अपने हताशा को मशीनों के खिलाफ आवाज उठाकर अभिव्यक्ति दे रहे हैं।