शपथग्रहण के बाद कुछ आदेश जारी करते हुए मुख्यमंत्री योगी का दिल्ली जाना यह साबित करता है कि मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के लिए उन्हें अपने केन्द्रीय नेताओं का आदेश लेना होगा। जाहिर है, उन्हें पूर्ण स्वायत्तता नहीं मिली है और उनके दोनों उपमुख्यमंत्रियों की हैसियत सरकार में उस तरह की नहीं रहने वाली है, जिस तरह की हैसियत की आशंका मायावती जता रही हैं। यानी योगी मुख्यमंत्री तो बन गए हैं, लेकिन उनके पर लगने अभी बाकी हैं। उन्हें न केवल केन्द्र के अपने नेताओं से निर्देश लेते रहने होंगे, बल्कि अपने दो उपमुख्यमंत्रियों को भी विश्वास में रखे रहना होगा। तीनों के बीच किसी प्रकार की खटपट हुई, तो फिर अंतिम फैसला हाईकमान ही करेगा।
शपथग्रहण क तुरंत बाद मीडिया में खबर आई कि अधिकारियों के पदस्थापन और तबादले का काम प्रधानमंत्री के नजदीकी नौकरशाह नृपेन्द्र मिश्र करेंगे। पता नहीं, इसमें कितनी सच्चाई है, लेकिन यदि इसमें थोड़ी भी सच्चाई है, तो योगी सरकार के लिए यह अशुभ है, क्योंकि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल भूभाग और बड़ी आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री के सामने असीम चुनातियां होती हैं और उन चुनौतियों का सामना मुख्यमंत्री कैसे करते हैं, यह उनकी कार्यकुशलता पर निर्भर करती है। किसी भी व्यक्ति की कार्यकुशलता बाहरी या ऊपरी हस्तक्षेप से बुरी तरह प्रभावित होती है, यह एक मानी हुई स्थापित बात है।
पिछली अखिलेश सरकार की एक कमजोरी यही थी कि अखिलेश को काम करने का पूरा मौका नहीं मिलता था। उनके पिता मुलायम सिंह यादव जब तब उन्हें निर्देश देते रहते थे। कहा तो यह भी जाता है कि अधिकारी गण भी सीधे मुलायम से आदेश लेते थे और कई बार तो अखिलेश को खुद पता नहीं रहता था कि उनकी सरकार ने कौन से निर्णय कर डाले हैं। मुलायम के अलावा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव भी मुख्यमंत्री की तरह काम करते थे। आजम खान भी अपने काम में पूरी तरह स्वायत्त थे। उन सबके कारण अखिलेश यादव का अपनी सरकार पर पूरा नियंत्रण नहीं था। जिससे प्रशासन कमजोर हो रहा था।
क्या योगी भी अखिलेश जैसा मुख्यमंत्री साबित होंगे? क्या उनके दोनों उपमुख्यमंत्री उनके ऊपर हावी रहेंगे या अपने पद के अनुशासन से अनुशासित होंगे? इन सवालों का पता तो आने वाले दिनों में ही लगेगा, लेकिन इतना तो यह है कि योगी सरकार के सामने एक से बढ़कर एक चुनौतियां हैं। कुछ चुनौतियां तो वे हैं, जिनका सामना अखिलेश सरकार भी कर रही थी। इनके अलावा कुछ अन्य चुनौतियां ऐसी हैं, जो चुनाव के पूर्व किए गए भाजपा नेताओ के वायदे और चुनाव घोषणा पत्र में की गई घोषणाओं से जुड़ी हुई हैं। उन सब चुनौतियों पर खरा उतरना योगी सरकार के लिए अपने आप में एक बड़ी चुनौती होगी।
सबसे बड़ी चुनौती को कानून व्यवस्था की बहाली ही है। उत्तर प्रदेश बहुत ही विस्तृत प्रदेश है और बिगड़ी कानून व्यवस्था यहां की सदाबहार समस्या रही है। योगी के शपथग्रहण के तुरंत बाद ही एक बसपा नेता की हत्या हो गई। वह नेता राजा भैया के खिलाफ चुनाव लड़कर पराजित हो गया था। वैसे अभी तक उस हत्या के राजनैतिक होने की कोई बात नहीं चल रही है, बल्कि पेशेवर कारणों को ही उस हत्या का जिम्मेदार माना जा रहा है, लेकिन शपथग्रहण के साथ ही एक हाई प्रोफाइल मर्डर सरकार के लिए अशुभ संकेत है और यह बताता है कि इस मोर्चे पर सरकार को कितनी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
कहा जाता है कि पुलिस और प्रशासन व्यवस्था का पूरी तरह से पिछले कुछ सालों में राजनैतिककरण हो गया है और राजनीतिज्ञों, अपराधियों व पुलिस वालों के बीच एक नापाक गठजोड़ बन गया है, जिसके कारण कानून व्यवस्था खराब बनी रहती है और अनेक शिकायतों को तो थाने में दर्ज भी नहीं किया जाता है। योगी सरकार की चुनौती उस गठजोड़ को तोड़ने की होगी। उसे तोड़े बिना कानून व्यवस्था की समस्या समाप्त नहीं होगी।
उसका उदाहरण बिहार है। राबड़ी सरकार के बाद जब नीतीश सरकार ने सत्ता संभाली थी, तो वहां भी इसी तरह का गठजोड़ कायम था, जिसे नीतीश कुमार ने तोड़ दिया था। पुलिस को राजनीतिज्ञों के दबाव से मुक्त कर दिया था। जिसका परिणाम अच्छा निकला था और कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत हद तक सुधर गई थी। हालांकि बिहार में अब फिर उसी तरह का गठजोड़ बनने लगा है और वहां भी कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो रही है।
कानून व्यवस्था के साथ ही भ्रष्टाचार भी उत्तर प्रदेश की एक ऐसी समस्या है, जिस पर नियंत्रण पाना आदित्यनाथ योगी की सरकार के लिए आसान नहीं होगा। आदित्यनाथ योगी के मुख्यमंत्री के रूप में चयन के पीछे एक कारण यह भी माना जा रहा है कि उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। उनका अपना कोई घर परिवार भी नहीं है, जिसके कारण वे भ्रष्ट हो सकें। इस मामले में उनकी तुलना नरेन्द्र मोदी से की जा सकती है।
इसलिए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में वे कामयाब भी हो सकते हैं। शपथग्रहण के बाद मंत्रियों और अधिकारियों से संपत्ति घोषित करने की बात करके उन्होंने संकेत दिया है इस मोर्चे पर वे काफी गंभीर हैं, लेकिन इस तरह की घोषणाएं पहले भी राजनेता और नौकरशाह करते रहे हैं, पर उसके कारण भ्रष्टाचार रुका नहीं है। इसलिए योगी को भ्रष्टाचार पर सीधे हमले करने होंगे। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार
कानून व्यवस्था की बहाली और भ्रष्टाचार पर लगाम मुख्य चुनौती
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-03-21 13:03
योगी सरकार की शुरुआत अच्छे ढंग से हुई है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने सभी मंत्रियों और अधिकारियों को अपनी अपनी संपत्तियों का ब्यौरा देने को कहा है और पुलिस को सख्त हिदायत दी है कि कहीं सांप्रदायिक तनाव और हिंसा नहीं हो। इलाहाबाद के दो बूचड़खानों को सील किया गया है, लेकिन वे दोनों अवैध रूप से चल रहे थे। वैध रूप से चल रहे बूचड़खानों को भी सत्ता में आने के पहले दिन ही बंद करने के वायदे भाजपा नेताओ ने किए थे। गनीमत है कि वैसा अभी तक नहीं हुआ है और कानूनी रूप से चल रहे बूचड़खाने, जिनमें हजारों लोग काम करते हैं, अभी बचे हुए हैं। उम्मीद है कि उनसे संबंधित निर्णय लेते समय योगी सरकार विवके से काम लेगी।