लोगों के मनोरंजन के लिहाज से योगी सरकार के शुरुआती दिनों को सरकार की अच्छी शुरूआत कहा जा सकता है, लेकिन देश की सबसे बड़ी आबादी और बड़े भौगोलिक विस्तार वाले इस प्रदेश की समस्याएं इस तरह के मनोरंजनों से नहीं समाप्त हो सकती। इस तरह का मनोरंजन कभी लालू यादव भी बिहार में खूब किया करते थे। जब वे पहली बार वहां के मुख्यमंत्री बने थे, तो उसी तरह कभी भी किसी भी थाने पर छापामारी कर देते थे और किसी पुलिस वाले को सस्पेंड भी कर देते थे। खबर बन जाती थी। वे भी सफाई अभियान चलाया करते थे। गरीबों और दलितों के मुहल्ले में जाकर वे वहां के बच्चों को स्नान भी करवाते थे। उनके बढ़े हुए और बेतरतीब बालों को कटवाते भी थे। जाहिर है, वे अपने साथ हजामत बनाने वालों की टीम लेकर भी चलते थे। लालू यादव शराब पीने वालों की भी खबर लिया करते थे। वे छापा मारकर शराबियों को पकड़ते थे और उनसे कभी कान पकड़कर उठक बैठक कराते थे, तो कभी मुर्गा बना देते थे। आसपास के लोगांे का अच्छा मनोरंजन हो जाता है।
लेकिन इतिहास गवाह है कि मुख्यमंत्री के रूप में लालू की उस तरह की सक्रियता से बिहार की समस्याएं समाप्त नहीं हुईं। थानों में की गई छापेमारी से कानून व्यवस्था नहीं सुधरी और न ही पुलिस महकमों के भ्रष्टाचार में काई कमी आई। स्वच्छता अभियान चलाने से स्वच्छता भी नहीं हुई। शराबियों को उनकी बीवियों और टोला मुहल्ला के अन्य लोगों के सामने मुर्गा बनाने से शराब की समस्या भी बिहार में उस समय समाप्त नहीं हुई थी। हां, नीतीश सरकार ने शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर शराब से पैदा होने वाली समस्याओं को लगभग समाप्त कर दिया है।
लालू यादव ने अपने पहले कार्यकाल में एक और बड़ा काम किया था। वह था चरवाहा विद्यालयों की स्थापना। चरागाहों में ही चरवाहों की पढ़ाई की व्यवस्था करने की योजना थी। मीडिया के द्वारा भरपूर मनोरंजन लोगों का हुआ। लालू ने एक लालू प्रार्थना भी तैयार की थी, जिसे लालू प्रेयर कहा जाता था। दलितों और गरीबों के बच्चों के बीच वह प्रेयर बहुत ही हिट हुआ था। लेकिन आज चरवाहा विद्यालयों का कोई अता पता नहीं, जबकि आज भी चरवाहे बुरी हालतों में हैं।
बिहार को पलट कर देखें, तो साफ यही लगता है कि कमोवेश आदित्यनाथ योगी और उनके मंत्री लालू के पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं। लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि हंगामा करके प्रदेश की समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता। कुछ शराबियों को गिरफ्तार कर शराबियों, उनके परिवार और समाज की स्थिति नहीं सुधारी जा सकती और थानों पर मुख्यमंत्री की छापेमारी कानून व्यवस्था के ठीक होने की गारंटी नहीं है। 25 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश में लाख से ज्यादा थाने होंगे। आखिर किन किन थानों में कदम रखेंगे मुख्यमंत्री। एक व्यक्ति की सीमा होती है। इसलिए यदि मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था की समस्या से प्रदेश को मुक्त करना चाहते हैं, तो उन्हें नीतियों और उनके कार्यान्वयन के स्तर पर बदलाव करना पड़ेगा और इस तरह का बदलाव हंगामे के बीच में नहीं होता, बल्कि उसके लिए बैठकर विचार करना पड़ता है।
उत्तर प्रदेश देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है। जाहिर है, सबसे ज्यादा अपराध भी यहीं होते होंगे। इसका विस्तार भी बहुत ज्यादा है, इसलिए किसी एक मुख्यमंत्री की निजी सक्रियता से इस पर रोक भी नहीं लगाई जा सकती। एक चुस्त और दुरुस्त व भ्रष्टाचार से मुक्त पुलिस प्रशासन ही कानून व्यवस्था को पटरी पर ला सकता है। उसे चुस्त, दुरुस्त और भ्रष्टाचार से मुक्त कैसे बनाया जाय, इसके लिए योगी सरकार को उचित निर्णय लेने होंगे। एक निर्णय उन्होंने लिया है कि सरकार के सभी कार्यालयों में सीसीटीवी लगाया जाएगा। पता नहीं, उसके लिए सरकार के पास संसाधन हैं भी या नहीं, लेकिन यदि इसकी शुरुआत थाने से की जानी चाहिए। सभी थानों में खासकर उस जगह जहां पीड़ित अपनी शिकायत लेकर आता है और मुकदमा दर्ज कराना चाहता है, वहां सीसीटीवी की सबसे ज्यादा जरूरत है।
इसलिए सभी कार्यालयों मे सीसीटीवी की घोषणा करने से बेहतर है कि वे सभी थानों में सीसीटीवी लगावाएं और न सिर्फ उन्हें लगवाएं, बल्कि वे सीसीटीवी काम भी करे, इसकी जिम्मेदारी भी तय की जाए। अन्यथा सीसीटीवी लगने के बाद एक बार खराब होने के बाद शायद महीनों तक ठीक ही नहीं हों।
कानून व्यवस्था खराब होने के लिए पुलिस-अपराधी-राजनीतिज्ञ गठजोड़ जिम्मेदार रहा है। भ्रष्टाचार की भी इसमें भूमिका है। इसलिए यदि पुलिस महकमे से बेहतर प्रदर्शन की योगी उम्मीद करते हैं, तो उन्हें इस गठजोड़ को तोड़ना होगा। जिस तरह नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार की सत्ता में आने के बाद इस गठजोड़ को तोड़ा था, ठीक वैसा की काम योगी को करना होगा, क्योंकि सच यही है कि उत्तर प्रदेश पुलिस की हालत बिहार पुलिस से भी खराब हैं।
हंगामे का समय समाप्त हो गया हो, तो अब योगी को बैठकर योजना बनानी चाहिए, ताकि वे खराब कानून व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार की दो सबसे बड़ी समस्या से प्रदेश के लोगों को निजात दिला सकें। (संवाद)
योगी सरकार के शुरुआती दिन
हंगामा खड़ा करने से समस्या नहीं सुलझती
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-03-26 12:02
उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ योगी सरकार के शुरुआती दिन खासे हंगामेदार रहे हैं और सरकार की गतिविधियों को मीडिया खास कर टीवी मीडिया जबर्दस्त संज्ञान ले रहा है। टीवी मीडिया की मजबूरी है कि इसी तरह की खबरों को वह मनोरंजन बनाकर कर पेश करते रहे और भारतीय जनता पार्टी की रणनीति रही है कि उसकी गतिविधियां मीडिया में छाई रहे। आखिरकार योगी की सरकार भाजपा की ही सरकार है। इसलिए एक साथ ही योगी सरकार और टीवी मीडिया की चल निकली है। एंटी रोम्यो स्क्वाॅड हो, शराबियों की धड़पकड़ का या मंत्रियों द्वारा अपने दफ्तर में झाड़ू देना का, वे सारे दृश्य टीवी देखने वालों को आकर्षित करते हैं, क्योंकि उनमें मनोरंजन का पुट होता है। इस तरह खबरिया चैनल मनोरंजन चैनलों से प्रतिस्पर्धा करते हैं।